मंगलवार, 25 मई 2010

नर की लज्जा बदरंग गाय

लज्जा नारी का नहीं कवच
लज्जा तो आभूषण कहाय.
लज्जा स्वाभाविक भाव नहीं
लज्जा तो पहनी ओढ़ी जाय.

लज्जा नारी का मूलतत्त्व
फिर भी गुण आभूषण कहाय.
मैंने लज्जा को कवच कहा
मेरी लज्जा अब मुँह छिपाय.

नारी की लज्जा आभूषण
नर की लज्जा बदरंग गाय.
जो दूध बहुत देती फिर भी
मारी पीटी दुत्कारी जाय.

[छंद ज्ञान के समर्थक "ओढ़ी" और "दुत्कारी शब्दों में एक-एक मात्रा घटाकर भी लिख-पढ़ सकते हैं]

15 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

wah sahi kaha...bahut hi sundar kavita...ant ki panktiyaan bahut achchi lagi...

kunwarji's ने कहा…

"नारी की लज्जा आभूषण
नर की लज्जा बदरंग गाय.
जो दूध बहुत देती फिर भी
मारी पीटी दुत्कारी जाय."

विचार करने पर विवश करती आपकी ये पंक्तियाँ!सही तुलना....शब्दों का सही प्रयोग...

कुंवर जी,

ZEAL ने कहा…

Can 'lajja' be a common virtue of men and women both?

@- "बदरंग गाय"

"dudharu honi chahiye".

Who cares for colour?

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

दिव्या जी,
मुझे लिखने के बाद समझ तो आया ही था कि आप कहाँ चोट करेंगे.
बहरहाल, बदरंग दुधारू गाय दूध केवल मालिक को ही देती है. उसके घूमने-फिरने के दौरान दुत्कारी तो वो अन्यों के द्वारा जाती है. प्रमाणतः रूप की सत्ता सर्वप्रभावी है.
[Who cares for colour?] अब इसे नारी के सन्दर्भ में लें- यदि रंग-रूप की परवाह कोई नहीं करता तो नारी के लिये अलंकारों की उपयोगिता उतनी नहीं जितना उसके गुणवती, शीलवती और लज्जावती होने में है.
क्या आप अब नारी की लज्जा को 'कवच' कहना उचित ठहराएँगे? या फिर मैं उसको संयम कहूँ?

Arvind Mishra ने कहा…

सोह न बसन बिना वर नारी

ZEAL ने कहा…

I still believe that 'Lajja' enhances the beauty of a woman but it has nothing to do with her protection.

A woman can guard herself by her Intellect and presence of mind which includes her education, upbringing and her awareness.

Above all, A woman doesn't need any sort of 'Alankaran' to feel good. Since ages, women are fooled and pampered by men . A man emotionally blackmails a woman by his fake praises and a woman in return submits herself to the man . She rarely uses her intellect in judging his intentions. Her so called 'Lajja' becomes her enemy. Only her wisdom can save her to fight the flood of emotions induced by a person.

An aware and wise lady possess the biggest virtue of wisdom which guards her everywhere in all situations. She doesn't require any 'alankaran' as kawach to survive.

A woman must know her place. She must earn education, knowledge and awareness. She should feel proud of herself. She must admire herself. She must be in love by herself.

Once in love with onself we do not need any sort of tags ( alankaran).

Above all Beauty lies in the eyes of beholder. Only a sober, somber and sauve man can induce the feeling of 'lajja' in a woman. Because it requires a very strong man to bring womanhood in a woman.

Usually men want a woman to surrender before them, but this offends a woman. She denies to surrender. But a loving and caring man can make a woman submit herself to him with utmost trust in him. So there is a huge difference in submission and surrender.

I will conclude by saying..."survival of the fittest".

And Who is fittest?

One who is wise and aware !

So Only wisdom can be anyone's 'Kawach", irrespective of gender.

Regards,
Divya

Amit Sharma ने कहा…

बिलकुल सही बात उठाई है आपने, नारी कि लज्जा उसका कवच ही है आभूषण नहीं. क्योंकि आभूषण सिर्फ दिखाने के लिए होते है, सौन्दर्य बढ़ाने के लिए होते है. जबकि कवच या वस्त्र सुरक्षा के लिए होते है. अगर कोई नारी लज्जा को मात्र आभूषण के लिए ही अंगीभूत करती है तो दिखावा ही है क्योंकि समय के फेर में आभूषण उतर भी सकते है और नर उसके भावों का गलत अर्थ लेकर सुरक्षा से खिलवाड़ भी कर सकता है ,या नारी स्वयं भी लज्जा रुपी आभूषणो का आवरण हटा कर अपने शील कि सुरक्षा किसी समय विसर्जित कर सकती है.
जबकि लज्जा स्त्री के वस्त्र या कहे कि कवच है तो कतई अतियोशक्ति नहीं होगी, इसे ऐसे समझे कि शरीर पे लज्जा रूपी वस्त्रों का कवच नहीं है और मात्र लज्जा को आभूषणो कि भांति धारण किया है तो क्या शील कि रक्षा हो पायेगी या स्त्री सुन्दर लगेगी बिलकुल नहीं.
जैसा कि तुलसी बाबा ने कहा है कि---
वसन हीन न सोह सुरारी सब भूषण भूषित बर नारी

ZEAL ने कहा…

The poet didn't mention in his poem that the nari is not wearing 'vasan'

noone looks civilized without 'vasan', irrespective of gender.

By including 'vasan', the focus has been shifted from 'Lajja' as security or ornament.

ZEAL ने कहा…

शरीर पे लज्जा रूपी वस्त्रों का कवच नहीं है और मात्र लज्जा को आभूषणो कि भांति धारण किया है ...

There is contradiction [virodhabhaas] in the above statement.

"Lajja cannot be worn as ornament to pretend.

we are talking about 'lajja as a natural virtue , not as pretense.

Arvind Mishra ने कहा…

अच्छी चर्चा -इससे कौन इनकार करेगा की शिक्षा और विवेक की कोई सानी नहीं है - एक पढी लिखी और विवेकवान नारी ही प्रणम्य है ,शील संकोच सोने में सुहागा है !

Amit Sharma ने कहा…

दिव्याजी विरोधाभाष नहीं है सिर्फ कमेन्ट को छोटा रखने के फेर में, समझ का भ्रम है.
१.शरीर पे लज्जा रूपी वस्त्रों का कवच नहीं है. ------यह मेरी सहमती है कि लज्जा नारी का कवच है .
२.मात्र लज्जा को आभूषणो कि भांति धारण किया है-------- यह लज्जा को कवच बताने के विरोधियों का तर्क है कि लजा नारी का आभूषण है.

अब पूरे वाकया को यों समझे कि मान लीजिये कि लज्जा नारी का कवच या वस्त्र नहीं है और उसे सिर्फ आभूषण ही माना जाये तो नारी सिर्फ ऐसी लगेगी जैसे--"वसन हीन न सोह सुरारी सब भूषण भूषित बर नारी"

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ अरविन्द जी, वक्तव्य संतुलित और सारगर्भित है.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

दिव्या जी, आपके लेखन और सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक चिंतन ने सचमुच मुझे आपके विचारों का कायल कर दिया है. फिर भी ना जाने क्यों एक हेठी है जो झुकने नहीं देती और अमित जी विचारों को भी तवज्जो देते रहना चाहती है. मुझे आपकी भाषा को अनुवाद करके समझना पड़ता है और आपके मस्तिष्क के कवच के भीतर अर्थों तक झांकना पड़ता है. आपने कवच का स्थान बदल लिया और हमें अर्थों को पाने में असुविधा होने लगी. फिर भी इस तरह की लज्जा हमें भी स्वीकार्य नहीं जहाँ स्त्री के विवेक को छिपाना पड़े . आपके चिंतन को नमन और अमित जी की सांस्कृतिक आस्था को प्रणाम.

ZEAL ने कहा…

@-फिर भी ना जाने क्यों एक हेठी है जो झुकने नहीं देती ..

Jo jhuk gaya wo purush nahi reh jata....Devta ban jata hai !

ZEAL ने कहा…

pratul ji,

http://zealzen.blogspot.com/2010/07/blog-post_16.html

aapke vichaaron ka swagat hai , kripya post par aane ki kripa karein.

आभार ।