संयम की प्रतिमा बन जाओ
जितनी चाहे जड़ता खाओ
आगमन हुवेगा जब उसका
भूलोगे अ. आ. इ. ई. ओ.
दृग फेर चाहे मुख पलटाओ
या निर्लज हो सम्मुख आओ
पहचान हुवेगी जब उसकी
सूझेगा केवल वो ही वो.
मन की बातें न झलकाओ
पीड़ा को मन में ही गाओ
उदघाटित हो जाएगा जब
हंसेगे सब हा. हा. हो. हो.
(आदरणीया संयम मराठा जी को समर्पित)
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