यह ब्लॉग मूलतः आलंकारिक काव्य को फिर से प्रतिष्ठापित करने को निर्मित किया गया है। इसमें मुख्यतः शृंगार रस के साथी प्रेयान, वात्सल्य, भक्ति, सख्य रसों के उदाहरण भरपूर संख्या में दिए जायेंगे। भावों को अलग ढंग से व्यक्त करना मुझे शुरू से रुचता रहा है। इसलिये कहीं-कहीं भाव जटिलता में चित्रात्मकता मिलेगी। सो उसे समय-समय पर व्याख्यायित करने का सोचा है। यह मेरा दीर्घसूत्री कार्यक्रम है।
रविवार, 14 मार्च 2010
सौंदर्य उपासना
उठ गयी आज जल्दी सजनी
सब केश खुले से खुले बिखरे
सो रही उसी पर थी रजनी.
कर ग्रंथि केश मुख धोन चली
मद नयन भरे से भरे दिखते
धो रही शीत चख कुंद कली.
(जब मैंने प्रातः उठने पर सौंदर्य को मुख धोते देखा)
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