नहीं बचा
जब कोई बहाना
मिलने का, तब मीत बुलाना
चाहा मन में, बात सोचकर -
छेड़ूँ क्यों ना प्रेम तराना।
नहीं रोक
पाएगा प्रियतम
नयनों का तब वर्षा गाना
यदि सफल न हो पाई तो
मरकर चाहूँ प्रियतम पाना।
हो जाऊँ
ज्वर से मैं पीड़ित
ज्वार उठें ह्रदय में मेरे
तट के नाविक नैया लेकर
भाटा आने पर आ घेरें।
मैं तो फँसना
बहुत दिनों से
चाहूँ थी पिय के बंधन में
जाल फेंककर जल्दी प्रियतम
ले लें मुझको आलिंगन में।
2 टिप्पणियां:
प्रेम में सब मंजूर हैं मन को। .
बहुत सुन्दर
बहुत बढ़िया ।
एक टिप्पणी भेजें