शनिवार, 6 दिसंबर 2014

सो जा बिटिया रानी!

 
सो जा बिटिया रानी !
आँखों में आई रहने को सपनों की सेठानी। 
पलकों का पल्लू करने की माने रीति पुरानी।
आगे-पीछे घूम रही है थपकी नौकर-रानी।
सो जा बिटिया रानी, सो जा बिटिया रानी।
 
 
प्रेरणा स्रोत : आदरणीय रंगराज अयंगर जी

6 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत प्यारी लोरी...

Alpana Verma ने कहा…

बहुत मधुर लोरी है .

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

प्यारी सी लोरी , सुन्दर

Madabhushi Rangraj Iyengar ने कहा…

आज ही देखी.

भहुत अच्छा लग कि किसी के प्रेरणा स्त्रोत बने. अच्ची कविता दी है प्रतुलजी आपने.

पूरी कविता इसनी हा है या और हा पढ़ना चाहूँगा.कृपया प्रेषित करे laxmirangam@gmail.com

अयंगर

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

सभी आगंतुक टिप्पणीकारों के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ।
आदरणीय कैलाश जी, अल्पना जी, मयंक जी, मोनिका जी और रंगराज अयंगर जी ने अपनी उपस्थिति से इस एक कक्षीय शाला की शोभा न्यून नहीं पड़ने दी।
अयंगर जी, बिटिया के लिए कुछ भी करना बहुत सुखद है। लोरी अभी एक गुनगुनाहट भर है। लोरी का विस्तार करूँगा जरूर। बेटी नानी घर गई है, महीने भर वहीँ खेलेगी।

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत प्यारी लोरी