भूल गए हो क्रिया 'बाँधना'
जबसे गाँठ पड़ी मन में
कोमल धागे खुले रह गए
इस बारी फिर सावन में।
छोड़ दिया है आना-जाना
घर में और विचारन में
नेह निमंत्रण बुले रह गए
इस बारी फिर आँगन में।
संबंधों में मिष्टी घोलना
होता है अपनेपन में
चषक-पियाले धुले रह गए
इस बारी उद्यापन में।
लौट आने की शुभ्र सूचना
दे देते उच्चारन में !
करतल-बंदी सुले रह गए
आवेशित हो तारन में।
डुबकी ली थी स्मृति में तेरी
डूब गया मझधारन में
बुद बुद बुद बुलबुले रह गए
स्वर यह भी संचारन में।
* करतल-बंदी = मोबाइल
3 टिप्पणियां:
वाह ! बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति ... सुंदर दर्शन ॥
KAVYASUDHA ( काव्यसुधा )
उत्कृष्ट भाव सम्प्रेषण
छोड़ दिया है आना-जाना
घर में और विचारन में
नेह निमंत्रण बुले रह गए
इस बारी फिर आँगन में।
...वाह..भावों की उत्कृष्ट प्रवाहमयी प्रस्तुति...
एक टिप्पणी भेजें