गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014

पुरा-स्मृति

भूल गए हो क्रिया 'बाँधना'
जबसे गाँठ पड़ी मन में 
कोमल धागे खुले रह गए 
इस बारी फिर सावन में। 
 
छोड़ दिया है आना-जाना 
घर में और विचारन में 
नेह निमंत्रण बुले रह गए 
इस बारी फिर आँगन में। 
 
संबंधों में मिष्टी घोलना 
होता है अपनेपन में 
चषक-पियाले धुले रह गए 
इस बारी उद्यापन में। 
 
लौट आने की शुभ्र सूचना 
दे देते उच्चारन में !
करतल-बंदी सुले रह गए 
आवेशित हो तारन में। 
 
डुबकी ली थी स्मृति में तेरी
डूब गया मझधारन में
बुद बुद बुद बुलबुले रह गए
स्वर यह भी संचारन में। 
 


* करतल-बंदी = मोबाइल 
 
 
 

3 टिप्‍पणियां:

काव्यसुधा ने कहा…

वाह ! बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति ... सुंदर दर्शन ॥
KAVYASUDHA ( काव्यसुधा )

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

उत्कृष्ट भाव सम्प्रेषण

Kailash Sharma ने कहा…

छोड़ दिया है आना-जाना
घर में और विचारन में
नेह निमंत्रण बुले रह गए
इस बारी फिर आँगन में।
...वाह..भावों की उत्कृष्ट प्रवाहमयी प्रस्तुति...