काँप रहा तन
थर-थर-थर-थर
मैं बिस्तर में सिमट गया
तन फिर भी शीतल
तभी कहीं से आया लघु
एक स्वप्न प्यारा
पिय ने मेरी दशा देखकर
मारी स्नेह धारा
उस गरमी से दहक उठा
मेरा शीतल तन
चलि*
उर में जो ठहर गई थी
मेरी धड़कन
पौं फटने में रहे
मात्र अब थोड़े ही पल
और अधिक बन गया भुवन
शीकर में शीतल
भोर भई
भानु भी भय से
भाग रहे भीरु बन
कड़क शीत में
कर-पिया से
माँग रहे स्नेह तन
भानु
पिया के आँचल में
छिप गया सिमटकर
हुआ कपिल रंग
था अब तक जो
भगवा दिनकर
स्नेह ताप से गर्म किया
दिनकर ने निज तन
उर में छाई धुंध
छँटी और बढ़ा सपन
ह्रदय धुंध हटते ही पिय का
स्नेह हटा निज उर से
सम्भवतः छिप गया
ओट पाकर के
निज उर-सर से
व्याकुल हो पूछा तब मैंने
"उर-सर! कहाँ छिपा है
'पिय का ऋण'
जिससे ठंडा निज
तन-मन बहुत तपा है
आप बता दें तो मिल जाए
ढाँढस मेरे हिय को।
आज नहीं तो
कल उधार
लौटाना है पिय को।"
आगे का स्वप्न कहीं लापता हो गया है। मिलते ही आपसे मिलवाने लाऊँगा।
14 टिप्पणियां:
हो जग का कल्याण, पूर्ण हो जन-गण आसा |
हों हर्षित तन-प्राण, वर्ष हो अच्छा-खासा ||
शुभकामनायें आदरणीय
बहुत ही सुंदर ....नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएं
सुंदर !
नव वर्ष शुभ और मंगलमय हो !
सुन्दर सपने देखते रहिये और बांटते रहिये |
नया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
नई पोस्ट नया वर्ष !
नई पोस्ट मिशन मून
बहुत सुंदर प्रस्तुति...!
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए
RECENT POST -: नये साल का पहला दिन.
लापता को प्रस्तुत किया जाये, भाई+
@ रविकर जी,
शुभकामनायें समय से स्वीकार कर ली थीं।
बस 'पावती' देर से भेज रहा हूँ। 'खाली लोग' अपनी व्यस्तता इसी तरह से दर्शाते हैं। :)
डॉ मोनिका जी,
आपकी मंगलकामनाओं को पुत्री-स्नेह में व्यय कर रहा था अभी तक समाप्त नहीं हुईं।
'धन्यवाद' विलम्ब से करने का सही कारण दिया है ना मैंने ? :)
दिलबाग जी ,
आभारी हूँ आपने मंच तो दिया लेकिन शरद का कम्पन कुछ इतना अधिक था कि रजाई से निकलने का देर से मन किया। :)
@ सुशील जी ,
सुन्दरी के आगे 'सुन्दर' जैसे प्रशंसासूचक शब्द विलम्ब से सुनायी पड़ते हैं। :)
@ काली प्रसाद जी,
लगता है आपने मेरे स्वप्न का भलीभाँति आनंद लिया। यह अनुभव मेरे 'वक्ता' मन को शांति देता है। यह शान्ति मेरे लिए स्वास्थ्यकारी है और कल्याणकारी भी। बतरस प्रेमियों को मुझे बाँटने में सदा सुख होता है। आभारी हूँ आपने मुझे इतने अधिक आशीर्वाद दिए। :)
@ धीरेन्द्र जी,
मेरे लिए तो आज का दिन भी वैसा ही है जैसा तब था और स्नेह में भी वैसी ही ताज़गी है जैसी नए साले के पहले दिन में थी। शुभकामनाएँ दिन विशेष पर ही मिलें ऐसे बहाने 'दर्शन पिपासुओं' को भाते नहीं।
@ प्रतिभा जी ,
आभारी हूँ आपकी हार्दिक बधाई पाकर। :)
संजय भाईसाहब ,
लापता जरूर है लेकिन अभी स्वप्न बाक़ी है। बचाकर इसीलिये तो रखा है कि दो बार में सुनाकर दो-दो बार प्रशंसा ले सकूँ। :)
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