सोमवार, 11 नवंबर 2013

ये कैसा प्रयोग किया ?

प्रियंवदे! तुम गए मुझ पर वियोग किया।
माँ पिता बहिन भाई सबसे संयोग किया।
हम रहे काम में व्यस्त पाप से योग किया।
क्षुद्र-विकारों से मानस का भोग किया।
दिन-रात तनावों ने श्वासों का रोग दिया।
दूर हमीं से जाकर -- ये कैसा प्रयोग किया ?

6 टिप्‍पणियां:

Majaal ने कहा…

अंदाज़े बयाँ और :)

लिखते रहिये !

रविकर ने कहा…

शुभकामनायें आदरणीय-
बढ़िया प्रस्तुति-

रविकर ने कहा…

मैना उड़ती दूर तक, तोता सहे वियोग |
नाहक ऐसे भाव से, नित्य बढ़ाये रोग |

नित्य बढ़ाये रोग, योग के खोज रास्ते |
कर ले नवल प्रयोग, शान्तिमय चित्त वास्ते |

लगा ईश में ध्यान, व्यर्थ दे रहा उलहना |
उड़ जहाज से जाय, लौट कर आये मैना ||

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ राजेश कुमारी जी, आपने १२ / ११/ १३ को चर्चामंच पर स्वागत किया और मैं ११ / १२ / १३ को हरकत में आया। ब्लॉगजगत वाली व्यावहारिकता निभाने में प्रयासरत हूँ।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ मज़ाल जी, इतना तो जानता ही हूँ कि आप स्नेह के कारण पुरानी विमर्शी मित्रता को महत्व देने के कारण से ही सामान्य कथन को 'अंदाज़े बयाँ और' कहकर विशेष दर्ज़ा दे रहे हैं।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ रविकर जी, आपकी तत्काल प्रतिक्रिया ठीक 'बिहारी' कवि की भाँति है जो असरकारक रही। एक दर्शन पिपासु को काव्य साधक से मार्गदर्शन मिल जाए इससे श्रेष्ठ प्रसाद नहीं। आभारी हूँ कि काव्य-जगत में चलने वाले प्रत्येक छोटे-बड़े कर्म पर दृष्टि रखते हैं और इस कारण मेरी छुद्रताएँ (छिछला काव्य) भी प्रकाशित हो जाती हैं।