प्रथम बार
था मौन संयमित
कोकिल का कल गान
संभवतः कर रहा
पिकानद आने का अपमान।
अंधकार
छिपकर भी विचलित
खोता था पहचान
उषा-सुंदरी आयी
करता अंगहीन प्रस्थान।
शयन-कक्ष
में रमणी व्याकुल
करने को वपु-दान
पर प्रियतम से कर बैठी थी
वह पहले ही मान।
कोप-भवन
से निकल कोकिले!
पंचम स्वर आलाप
मान मिटे रमणी आवे
पी आलिंगन में आप।
12 टिप्पणियां:
अतुलनीय वर्णन ....वासंतिक भाव
अहम हर सुख को हर लेता है ....सुंदर रचना
अति सुन्दर.
अंधकार छिपकर भी विचलित खोता था पहचान उषा-सुंदरी आयी करता अंगहीन प्रस्थान।
इन पंक्तियों ने ख़ास आकर्षित किया.
बसंत के आगमन का प्रभाव देर-सवेर पड़ेगा ही .. कोयल भी गायेगी ..रूठी रमणी भी मान जायेगी.
बहतु सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
शयन-कक्ष
में रमणी व्याकुल
करने को वपु-दान
पर प्रियतम से कर बैठी थी
वह पहले ही मान।
कोप-भवन
से निकल कोकिले!
पंचम स्वर आलाप
मान मिटे रमणी आवे
पी आलिंगन में आप।
निःशब्द करती रचना
बहुत सुन्दर वर्णन ...
@ आदरणीय डॉ. मोनिका जी, 'संतुलित सराहना' विषय में छिपे सौन्दर्य को उद्घाटित करती है। किसी भी रचना पर आपकी उपस्थिति से इसका अनुमान सहजता से लगाया जा सकता है।
@ आदरणीया संगीता स्वरूप जी, आपकी 'सारगर्भित टिप्पणी' कविता के हर प्रयास पर होती है। वह चाहे नवोदित कवि का अपरिपक्व पहला प्रयास हो अथवा सारस्वत कवि का पारंगत उद्गार हो।'
हम हर सुख को हर लेना चाहते हैं, लेकिन बाजी अहम् मार लेता है।
@ निहार रंजन जी,
दर्शन प्राशन पर आकर वासंतिक मान को सराहना आपकी सहृदयता को दर्शाता है।
मात्र निहार कर मन का रंजन कर लेना ... सबके बूते की बात नहीं।
@ आदरणीय रमाकांत जी,
काव्य पंक्तियों के पुनः उच्चारण से प्रतीत हो रहा है वास्तव में आप 'निःशब्द हुए' अन्यथा 'कुछ तो कहते' :)
आपकी आलोचक दृष्टि का कायल हूँ। आगे प्रयास करूँगा कुछ त्रुटियाँ छोड़कर।
@ प्रिय अ. प्रसाद जी,
आपकी टिप्पणी एक हाथ ले एक हाथ दे का परिणाम तो नहीं?
आज बहुत समय बाद अतुल जी आपके ब्लॉग पर आना हुआ इतनी बेहतरीन रचनाओं को मैंने आज तक मिस किया मुझे खेद हो रहा है आपका लेखन पढ़ना साहित्य सागर में डुबकियाँ लगाने जैसा है धीरे धीरे सभी रचनाए पढ़ना चाहूँगी बहुत बहुत बढ़ाई इस वासंतिक प्रस्तुति पर|
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