सोम-शनि है प्राची प्रतिकूल
दिवस रवि का उसके अनुकूल.
प्रतीची में मंगल-बुध जाव
शुक्र-रवि में होवें दिकशूल.
उदीची में बुध-मंगल भार
शुक्र शुभ होता शुभ गुरुवार.
अवाची को जाना शनि-सोम
गुरु को चलना शकुन-विलोम.
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उदीची - उत्तर दिशा
अवाची - दक्षिण दिशा
प्राची - पूर्व दिशा
प्रतीची - पश्चिम दिशा
मैं इस कविता को देना नहीं चाहता था.... क्योंकि अब मैं इस विचारधारा से बिलकुल सहमत नहीं हूँ कि 'दिकशूल' जैसा कुछ होता है.... ये कोरा अंधविश्वास है... जब ये रचना बनायी थी. तब मैं दिकशूल से बहुत प्रभावित रहता था.
13 टिप्पणियां:
किस वार को किस ब्लॉग पर नहीं जाना चाहिए ऐसा को ब्लॉग-शूल प्रावधान हो तो बताएँ………
एक बार एक बारात में गया था और बहुत शौक से सिलवाई नई पेंट पहली बार पहनी थी| घुटने के पास से वो पेंट फट गई तो जिन बुजुर्गवार के अधीन होकर उस बारात में गए थे घर लौटने तक उनके मुंह से यही सुनता रहा कि आज वाले दिन कोई नया कपड़ा नहीं पहना जाता:)
दिशा शूल जैसे और भी बहुत सी मान्यताएं समाज में व्याप्त रही हैं, अब इनका चलन बहुत कम हो चुका है|
अद्भुत दिक् संकेत
जिस विषय पर हैं उसके हिसाब से पंक्तियाँ तो सटीक हैं
समय के साथ विचार, मान्यताएं, भ्रांतियां सभी बदलते रहते हैं, क्योंकि बदलाव ही प्रकृति का नियम हैं। वन्दे मातरम् !
behtarin post..main bhee in dishaon ke chakkar me nahi padta..sadar badhayee ke sath
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PRANAM
किस 'वार' को किस ब्लॉग पर नहीं जाना चाहिए ऐसा कोई 'ब्लॉग-शूल' प्रावधान हो तो बताएँ………
@ तल-'वार' को निरामिष ब्लॉग पर नहीं जाना चाहिए..... हिंसक हथियारों से परहेज़ है वहाँ.सल-'वार' को नारी ब्लॉग पर नहीं जाना चाहिए...... दकियानूसी सोच की महिलायें नहीं हैं वहाँ.खरपत-'वार' को zeal ब्लॉग पर नहीं जाना चाहिए...... कड़वी दवा मिलती है वहाँ.
मजहबी-'War' को तो किसी भी ब्लॉग पर नहीं जाना चाहिए...... लेकिन 'वह' मानता हैं कहाँ?
अद्भुत दिक् संकेत
@ रमाकांत जी, इनकी अद्भुतता इसी में है कि ये संकेत 'आलसी और अकर्मण्य' लोगों को दिव्य-औषधि हैं.
@ डॉ. मोनिका जी, आज जब इन दिक्-शूलों के बारे में विचारता हूँ तो एक उदाहरण मन में अनायास आ जाता है.
मुझे अपने कार्यालय आने के लिये दो विकल्प रहते हैं.
पहले विकल्प के लिये मुझे पूर्व दिशा में जाना होता है... जहाँ से AC bus और सिम्पल बस दोनों बड़ी संख्या में मिलती हैं. और
दूसरे विकल्प के लिये मुझे पश्चिम दिशा जाना होता है.... जहाँ से मेट्रो और बस दोनों मिल जाते हैं.... लेकिन 'दिकशूल' यहाँ प्रभावी रहता है पर अलग तरीके का.
सोमवार को मेट्रो वाले रूट पर अधिक भीड़ मिलती है. इसलिये पूर्व दिशा से जाना उस दिन समय और धन दोनों की बचत करवाता है.
कार्यालय से मेट्रो द्वारा लौटते हुए शुक्र और शनि के दिन सबसे अच्छे हैं, *भीड़ कम मिलती है.
बहरहाल, जितने भी दिकशूल पहले और बाद में बनाए गये होंगे वे भौगोलिक स्थिति और संभावित मौसमी बदलावों को देखते हुए किसी स्थान विशेष के लिये सही रहे होंगे... और आज भी हम इस तरह के कुछ-न-कुछ 'अनुमान' लगाते हुए कार्यों को करते हैं.
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@ दिव्या जी,
जिन विचारों के साथ मैं पहले रहता था.... अब उनमें से कुछ समय बीतने के साथ या तो अपनी मुख आकृति बदल चुके हैं.
या फिर दिवंगत हो चुके हैं, और तो और उनमें कुछ नये भी शामिल हो चुके हैं. भ्रांतियों वाली कवितायें भी एक-एक कर लाऊँगा जरूर.
क्योंकि 'बदलाव प्रकृति का नियम है.' इसे मुझसे अच्छा कौन बता सकता है.
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@ डॉ. आशुतोष जी,
अरे! आप दिशाओं के चक्कर में नहीं पड़ते!!
तब विद्यार्थियों का दिशा-निर्देश किस तरह करते होंगे??? :)
@ सञ्जय जी,
प्रणाम,
आपका दिकशूल कभी कुछ नहीं बिगाड़ सकते... 'प्रणाम' तो दूर से भी किया जा सकता है... आने-जाने की क्या जरूरत?
'सुप्रभात' कहने के लिये तो 'आना-जाना' पड़ता है ना!.... और 'वह' आप अब करना भूल गये हैं!! :)
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