"आऊँगा"
कह कह कर
क्यों रह रह जाते हो
आपके लिये रिक्त करती हूँ घर
पर तुम ना आते हो.
"गाऊँगा"
कह कह कर
चुप क्यों रह जाते हो
आपके लिये बाँधती हूँ नूपुर
पर तुम ना गाते हो.
"जाऊँगा"
कह कह कर
तुम क्यों ना जाते हो
आपके लिये प्रशस्त करती हूँ पथ
पर तुम घबराते हो.
23 टिप्पणियां:
बढ़िया प्रस्तुति ।
आभार प्रतुल जी ।।
यह है शुक्रवार की खबर ।
उत्कृष्ट प्रस्तुति चर्चा मंच पर ।।
अति सुंदर ....
सुंदर !
अच्छा लो चले ही जाता हूँ
चलो अब नहीं घबराता हूँ !
kitne arth ... kitna snehil manuhaar
कौन है इतनी शिकायत कर रहा है, मान क्यों नहीं लेते ? ब्लॉगर होकर घबराना कैसा। कवि और ब्लॉगर से तो बड़े-बड़े नेता भी घबराते हैं।
बहुत सुन्दर प्यारी सी रचना
सुन्दर प्रस्तुति आभार !!!!
कह कह कर
तुम क्यों ना जाते हो
आपके लिये प्रशस्त करती हूँ पथ
पर तुम घबराते हो.
गजब की चाह .
बहुत ही उलझन है। सबकुछ कहकर न जाना ही तो इस उलझन को दूर करता है।
क्या खूब!
आपकी कविताएँ वाकई सुन्दर हैं..
बधाई..
रविकर ...
बन गये 'खबर'... हम बेखबर
अब इधर-उधर ... लगे जाते डर.
@ डॉ. मोनिका,
दूसरों के घर, किञ्चित स्वर.
'उपस्थिति' पर, अति सुन्दर.
@ इंडिया दर्पण !
दे निमंत्रण... 'करो पदार्पण, ब्लॉग किसी क्षण.'
हथेलियाँ रगड़ ... 'आयेगा'-ये प्रण, 'उपस्थिति कृपण'
@ सुशील जी... अगर
आये हो इधर, जाना कर डिनर
बोलो हो निडर, बिना भंगस्वर.
@ रश्मि प्रभा'त झर
'ब्लोगर सम्मान' पर
है स्नेह का असर
जो आये मेरे घर.
@ दिव्या की नज़र, पढ़ती है 'अंतर'.
प्रश्न के उत्तर, स्वेद तर-ब-तर.
@ राजेश कुमारी स्वर
को तारीफ़ का है ज्वर.
मन चाहता मगर
ना जाये वह उतर.
@ मदन छोड़े शर
पुष्प के इधर.
मुझे क्या फिकर
रति कोप घर.
@ रमाकांत सर
लट बिखेर कर
कह रहे - मुझ पर
चाह का असर.
@ मनोज का स्तर
'सोच' पलस्तर
आद्र हो उतर
फिर भी रहे सुपर.
@ सतीश चंद्र पर
काव्य का असर
जो आ गये इधर.
धन्य हुआ घर.
waah Pratul ji, Great retorts !
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