सोमवार, 2 अप्रैल 2012

अवचेतन की हलचल

भर गया न जाने क्या सर में
भारी भारी-सा लगता सर !
मैं सोच रहा आखिर है क्या
सर में कैसी होती चर-मर !
क्या कारण है जो नहीं चैन
मिल पाता है मुझको पलभर !
इक शब्द गूँजता अनहद-सा
बस साँय-साँय, सर में सर-सर !
था ज्ञान मिला जो गुरुओं से
क्या हुआ जंग खाकर जर्जर !
या अवचेतन मस्तिष्क मुआ
घर्षण करता किञ्चित बर्बर !
 ___________
 
सर = सिर
मुआ = देशज भाषा का अपशब्द.
 
" किसी व्यक्ति को अत्यधिक महिमामंडित करने पर सामान्यतः छोटे कहे जाने वाले दोष भी अमुक व्यक्ति के सन्दर्भ में बहुत बड़े प्रतीत होते हैं."
 
प्रश्न : क्या इस नवीन सूत्रकथन की जड़ें गहरी जानी चाहियें?

10 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

प्रत्यक्ष भाव |
सुस्पस्ट |
आभार ||

सुज्ञ ने कहा…

हाँ!!
अवचेतन मस्तिष्क मुआ
घर्षण करता किञ्चित बर्बर !

प्रश्न : क्या इस नवीन सूत्रकथन की जड़ें गहरी जानी चाहियें?

हां जड़ों को ले जाएं, सार-तत्व तो हमेशा गहरे ही होते है।

Smart Indian ने कहा…

अति सुन्दर!

सञ्जय झा ने कहा…

suprabhat guruji,

सार-तत्व तो हमेशा गहरे ही होते है।....

sahi saar bataye....monitor bhai ne..


pranam.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ रविकर जी, आपकी 'उपस्थिति नियमितता' से मेरी 'अनियमित औपचारिकता' लज्जित है.

इन दिनों मध्यप्रदेश के चक्कर लगा रहा हूँ.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ सुज्ञ जी, आप 'सार-तत्वों' को सरलता से ग्रहण कर लेते हैं. :)

केवल जड़मतियों को ही अवशिष्टों में खुराक (खाद) नज़र आती है. :))

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ सञ्जय जी, नमस्ते

आप अभी भी 'काव्य-पाठशाला' को मानस में स्थान दिये हैं. आपका छात्रभाव से उपस्थिति देना मन को भाता है.. लेकिन आपको स्यात् पता नहीं 'क्लास-मोनिटर' अब क्लास वन मोनिटरिंग करने लगे हैं.

स्व-जीवन में एक नया अध्याय जोड़ने की जुगत में लगा हूँ. न जाने कब तक 'काव्य-पाठशाला' को पुनः आरम्भ कर पाउँगा? कह नहीं सकता. इतना विश्वास है कि आपके स्नेह के कारण लौटूँगा अवश्य.

nanditta ने कहा…

behatariin rachana

Monika Jain ने कहा…

gahan prastuti

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना ने कहा…

अब नहीं शक्य लिख पाना कुछ
रहता डाउन मेरा सर्वर