मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

फिर वही मधुर शब्दों का स्वर गुजरा कानों की सड़कों पर

छंद का तीसरा पाठ शुरू करूँ, उससे पहले अपनी एक विशेष अनुभूति को व्यक्त कर दूँ .....

फिर वही मधुर शब्दों का स्वर 
गुजरा कानों की सड़कों पर 
फिर वही रूप जो निराकार 
तिरता नयनों की पलकों पर 
फिर वही हास मीठा-मीठा 
दौड़ा है किसके अधरों पर 
फिर वही वास धीरे-धीरे 
बैठी है मेरे नथुनों पर 
पिक आम बाग़ में 'पिया पिया' 
कर, आया है रसिया होकर 
ओ सुधाश्रवा! विष घोलो ना 
'भैया' कह दो बहना होकर. 


एक प्रतियोगिता : 

फूल कुमारी मेरी बहना 
उसका गुस्सा उसका गहना 
दुष्ट आत्माओं के द्वारा 
उसका पीछा होते रहना. 

उसको खुश करने की खातिर 
एक मुनादी ये सुन लेना – 
"ऎसी लाओ हास्य टिप्पणी 
भूत-प्रेत की भागे सेना."

[भाग लेने वाले प्रतियोगी हास्य की कोई भी सामग्री टिप्पणी में डाल सकते हैं. उसे छंद से जोड़कर अग्रिम पाठों की सामग्री बनाने में सहायक होगा.]

26 टिप्‍पणियां:

सुज्ञ ने कहा…

भूत प्रेत गन्धर्व और किन्नर।
अगडम सगडम सारे अन्नर।
देख तुझे कोई निकट न आए,
पहन बहन यह धानी चुन्नर॥

Rakesh Kumar ने कहा…

पढ़ कर अच्छा लगा,समझने की कोशिश जारी है.सुज्ञ जी ने क्या नहले पे दहला लगाया है ?

Vivek Jain ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है आपने!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

ZEAL ने कहा…

.

@- उसका गुस्सा उसका गहना ...

गुस्सा, आवेश , क्रोध ...उद्यंडों ही का गहना होते हैं।

.

ZEAL ने कहा…

.

फिर वही मधुर शब्दों का स्वर
गुजरा कानों की सड़कों पर
फिर वही रूप जो निराकार
तिरता नयनों की पलकों पर
फिर वही हास मीठा-मीठा
दौड़ा है किसके अधरों पर
फिर वही वास धीरे-धीरे
बैठी है मेरे नथुनों पर
पिक आम बाग़ में 'पिया पिया'
कर, आया है रसिया होकर
ओ सुधाश्रवा! विष घोलो ना
'भैया' कह दो बहना होकर।

उत्कृष्ट रचना
आभार

.

सञ्जय झा ने कहा…

suprabhat guruji,

rachna ee bahut utkrist banal...
dekh 'bhai-bahinak' prem naval..
dhaga je ee 'kalaiee'me banhal..
sub bhoot-pret darika' bhagal...

pranam.

Narendra Vyas ने कहा…

"फिर वही मधुर शब्दों का स्वर गुजरा कानों की सड़कों पर" एक उत्कृष्ट और भावगर्भित रचना.
"पिक आम बाग़ में 'पिया पिया'
कर, आया है रसिया होकर"

इन पक्तियों का अलंकरण देखते ही बनता है.
आभार सम्मानीय प्रतुल जी !

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

अभी ही दिल्‍ली से लौटी हूँ, पोस्‍ट पढ ली है लेकिन टिप्‍पणी बाद में लिखूंगी।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

आपने बहुत सुंदर लिखा है.... मेरी कोशिश जारी है की ठीक से समझ सकूँ....


( आपकी क्लास में आने में डर लगने लगा है.... :)

amit kumar srivastava ने कहा…

a soft teacher but tough teaching.....excellent.

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

आपका स्वागत करती सुगना फाऊंडेशन-मेघालासिया

श्री श्री 1008 श्री खेतेश्वर"दाता" के 99 वि जयंती पर विशाल शोभायात्रा में आपका स्वागत सुगना फाऊंडेशन-मेघालासिय करता है गुरुदेव गादीपति श्री 1008 श्री तुलछा राम जी महाराज का स्वागत एवमं शरबत पान रखा है जोकि 5 वि रोड कोहिनूर सिनिमा के आगे होगा इसमें आप सभी पधारे ....सवाई सिंह राजपुरोहित

आप सब से निवेदन है
आप सभी भाई बंधुओ से निवेदन है की श्री श्री 1008 श्री खेतेश्वर महाराज जयंती कार्यक्रम में आप अधिक से अधिक संख्या में भाग ले ओर रैली को सफल बनावे

* फाउंडेशन का कार्यक्रम स्थल *
सुगना फाउंडेशन-मेघालासिया , जोधपुर
राजाराम जी का मन्दिर के पास, कोहिनूर सिनिमा के आगे,
पाचवी रोड, जोधपुर(राजस्थान)


श्री श्री 1008 श्री खेतेश्वर जयंती पर आज निकलेगी भव्य शोभायात्रा
or
जयंती पर आज निकलेगी शोभायात्रा

Satish Saxena ने कहा…

रचना पढ़कर मन तृप्त हुआ ! शुभकामनायें !!

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

दस्त से था पुजारी परेशान,

भागा गया चिकित्सक के पास,

बोला डॉक्टर से, रुकता नहीं पखाना,

डाक्टर बोला, दवा पर करो विश्वास

परन्तु, शंख जोर से मत बजाना !

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ सुज्ञ जी,
आपने बहिन फूलकुमारी को हँसाया या नहीं, नहीं जानता. लेकिन आपकी मंशा वाकई काबिले तारीफ़ है. आपकी कविताई शिष्ट हास्य का उत्तम उदाहरण है.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ राकेश जी,
आपने सुज्ञ जी को सही सराहा, वाकई उन्होंने मुझे भी हँसा दिया था. हमारी अपनी हँसी ही तो पैमाना है 'हँसी' के कारकों की गुणवत्ता जाँचने का.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ विवेक जी, आपने अपने घर (ब्लॉग) पर नामी-गिरामी, ज़िंदा और स्वर्गीय कवियों को रचना सुनाने का जो अवसर दिया है. वाकई काबिले तारीफ़ है. आजकल पुराने कवियों को कौन अवसर देता है.

पुराने ही कहाँ देते थे नये कवियों को.. मुझे भी नहीं मिलता था अवसर अपने समय में...... आज मुझ पर अपना ब्लॉग है, अपनी इच्छा है, जितना चाहे प्रकाशित करूँ. मनमर्जी है जी पूरी...

आज 'हिंदी साहित्य निकेतन 'परिकल्पना सम्मान' सम्मान समारोह में गया था उसमें इसी विषय पर चर्चा भी सुनी. बड़े-बड़े ब्लोगर आये थे.. पहचानने में नहीं आ रहे थे. दो-चार को तो जल्दी ही पहचान लिया... जैसे .. संगीता पुरी जी, शशि प्रभा जी, जय कुमार झा, अजय कुमार झा, फिर मित्र सुमित ने पहचान करायी ललित जी से, जब मैंने उन्हें अपना परिचय दिया "मैं .. प्रतुल वशिष्ठ" तभी उनके बगल में एक स्मित मुख से मिले सज्जन ने कहा मुझे पहचाना, अमरेन्द्र .. ..... आगे मिलीं निर्मला कपिला जी, जिनके झैंपते हुए मैंने चरण छुए, कइयों को मैं जानता था लेकिन वे मुझे नहीं जानते थे. और कइयों को मैं नहीं पहचानता था और वे भी मुझे नहीं जानते थे. बहरहाल.... वहाँ मिलने का तो लोभ था ही लेकिन एक सबसे बड़ा लोभ था ... रात्रि का भोजन.. पत्नी नहीं हैं न घर पर.

इसी को कहते हैं .... एक पंथ दो काज. ............. आप आइन्दा आयेंगे तो आपके बहाने अपनी राम कहानी सुनाया करूँगा. :)

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ दिव्या जी,
गहना वही होता है जो पलभर की प्रसन्नता दे दे. पहनने वाले को न सही देखने वाले को सही.

कभी-कभी किसी का गुस्सा करना अच्छा लगने लगता है. गुस्से में जब बहिन की नाक पकौडा बने, कपोल तरबूज बन जाएँ. ऎसी कल्पना ही कर सकता हूँ. कल्पना करता हूँ तो अधरों पर स्मिति ही तैर जाती है. तब यह नहीं विचार करता कि वह उद्दंड है अथवा शालीन. कल्पना में तो वह बस सुन्दर दिखती है.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

रचना ई बहुत उत्कृष्ट बनल..
देख 'भाई-बहिनक' प्रेम नवल..
धागा जे ई 'कलाई में बंधल..
सब भूत-प्रेत डारिका भगल...

@ प्रिय संजय जी, आपने अन्यानुप्रास वाली कविता तो रची लेकिन
हँसी इस बात पर अधिक आ रही है कि आपने कविता लिख ही दी.
और उसने लिखी जो लिखने से भागता है, बचता है.
देखा आपने प्रतियोगिता आयोजित करने का एक अच्छा नतीजा.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ नरेन्द्र जी,
आप पन्क्तियों में अलंकरण से गदगद हैं और मैं उस शब्द की मधुरता से जो मेरे कानों ने वर्षों बाद सुना...



आम के बाग़ में कोयल आयी थी. लेकिन वह जब स्वभावतः 'पिया पिया' बोलने लगी तो मैंने उससे कहा कि 'हे अमृतवचन सुनाने वाली, आज 'पिया पिया' न बोलो, आज तो 'भैया' शब्द उच्चार दो, क्योंकि मेरे कानों ने जब इस शब्द को सुना तो इसकी मधुरता ने मेरी सभी ज्ञानइन्द्रियों को अपने वश में कर लिया. वैसा सुख मुझे अभी किसी शब्द सुनने में नहीं मिल रहा है.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ अजित जी, मुझे जब बात करनी होती है तब पूरे मनोयोग से कल्पना में अपने प्रियजनों से बतियाता हूँ. आप दिल्ली से बेशक लौट गयी हों, लेकिन दिल से नहीं लौट सकतीं. आप टिप्पणी करें न करें किन्तु मैं तो मनचाही बातें कर ही लेता हूँ. अभी अवसर है शायद सोमवार से कम मिले...

सोमवार से 'नेशनल बुक ट्रस्ट' जाउंगा ... एक अस्थायी छोटा-सा काम मिल गया है. तीन महीनों से ... निकम्मा था...

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ डॉ. मोनिका जी, आपको जब भी लगे कि बेफकूफ बनाया जा रहा है तो पूरे अधिकार से कान पकड़कर पूछ सकते हैं कि "बता, क्या मतलब है इसका?"

बस कक्षा में आने से डरना नहीं.... मैं फिर से आत्महीनता का शिकार हो जाऊँगा... बड़ी मुश्किल से तो पाठशाला खुली है... वैसे भी स्वर्णकार जी ने जब से मथुरा वाले 'नवीन चंद्र चतुर्वेदी जी' का लिंक लिया है तब से मन उनके ब्लॉग के चक्कर लगाने का करता है. वहाँ छंद का विशिष्ट ज्ञान दिया जा रहा है.



यदि किसी विद्यार्थी को अपनी प्रतिभा निखारनी है तो वह नवीन जी के ब्लॉग पर जाकर 'समस्या पूर्ती' जैसी रोचक प्रतियोगिताओं में भाग ले सकता है. यह हमारे साहित्य की एक अनुपम विधा है जो लुप्तप्रायः हो चली थी. लेकिन इस विधा को जीवित रखने वालों का योगदान सराहनीय है इसलिये हमें समय-समय पर वहाँ जाते रहना चाहिए...किसी को कोई समस्या हो तो पहले बता दे. किसी को मेडिकल देना हो तो डॉ. मोनिका शर्मा जी के क्लीनिक का मेडिकल सर्टिफिकेट ही लाना होगा. कोई बहाना नहीं चलेगा.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ अमित श्रीवास्तव जी, नारियल फोड़ो तो गिरी निकलती है मतलब ऊपर से सख्त दखने वालों के भीतर कोमल गिरी मिल सकती है.

उजले कबूतरों के पंजे बहुत पैने होते हैं. मतलब प्रभावशाली/आकर्षक दिखने वालों का स्वभाव आक्रामक भी हो सकता है.

जिस पाठशाला में उत्कृष्ट गुणी लोगों का आना-जाना हो तो उस पाठशाला की गुणवत्ता स्वतः निर्मित हो जाती है. छात्रों की ग्राह्य क्षमता के अनुसार ही जटिलता बढ़ती जाती है. अन्य कोई कारण नहीं. यदि ऐसा लगे कि 'कुछ दुरूह है' तो अवश्य कहिएगा.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ राजपुरोहित जी,

पाठशाला की दीवारों पर पोस्टर लगाना मना है. फिर भी आप हमारे क्लीनिक की दीवार खराब कर सकते हैं, लिंक दिये देता हूँ

http://pratul-kavyatherapy.blogspot.com/

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ आदरणीय सतीश जी,

आज ब्लोगरों का सम्मान देखने गया था. मैंने सोचा था कि आप वहाँ अवश्य होंगे. मेरी नज़रें आपको खोजती रहीं. मैं आपसे मिलता नहीं, लेकिन दूर से देखता जरूर. मैं बड़े लोगों से दूर-दूर ही रहता हूँ. अंत में नमस्ते जरूर करने आता आपके पास.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ प्रिय गिरधारी खंकरियाल जी,
आपने गद्य-काव्य में उत्तम हास्य का उदाहरण प्रस्तुत किया. मुझे तो बेहद पसंद आया, लेकिन फूलकुमारी को पसंद आयेगा या नहीं. यह नहीं बता सकता. फिर भी आपको एक 'आचार्य सोम जी' द्वारा सुनाया चुटकुला सुनाता हूँ :

एक उर्दू-अरबी का प्रोफ़ेसर हिन्दी साहित्यकार का मज़ाक बना रहा था "तुम्हारी हिन्दी बड़ी अजीबोगरीब है राष्ट्रपति आदमी बने या औरत रहती पति ही है पत्नी नहीं होती."

तभी हिन्दी साहित्यकार ने कहा "लेकिन उर्दू तो और भी निराली है एक बार एक मियाँ जी दावत पर मेरे घर आये, स्टेंडिंग व्यवस्था थी, मियाँ जी ने अपनी थाली में खुद के दस्त से खाना परोसा तो पेशआब मैंने कर दिया." अब बताओं जिस भाषा में ... दस्त और पेशाब से पेट भरता हो, वह भाषा कितनी गंदी होगी." :)

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

प्रतुल जी, मुझे दिल्‍ली में समय नहीं मिला, इसलिए फोन पर बात नहीं कर सकी। वैसे आपका नम्‍बर मोबाइल में फीड कर लिया था। दिल्‍ली से आने के बाद कोन सा समय फोन के लिए उपयुक्‍त होगा, समझ नहीं पा रही थी। देखिए अभी किया तो नेटवर्क बिजी आ रहा है।