मंगलवार, 29 मार्च 2011

छंद-चर्चा ...... पाठ 1

किसी रचना के प्रत्येक पाद में मात्राओं अथवा वर्णों की नियत संख्या, क्रम-योजना एवं यति के विशेष विधान पर आधारित नियम को छंद कहते हैं. 

छंद के विभिन्न अंग —
चरण : छंद की उस इकाई को पाद अथवा चरण कहते हैं जिसमें छंद विशेष के वर्णों अथवा मात्राओं का एक सुनिश्चित नियोजन होता है.

वर्ण : मुख से निःसृत प्रत्येक उस छोटी-छोटी ध्वनि को वर्ण या अक्षर कहते हैं, जिसके खंड नहीं हो सकते. 

मात्रा (परिमाण) :  वर्णों के उच्चारण में लगने वाले समय को 'मात्रा' कहते हैं. विनती यही गोपाल हमारी. हरौ आज़ संकट-तम भारी. [गुपाल का उच्चारण किया जाने से हृस्व स्वर चिह्नित किया जाएगा, अन्यथा चौपाई में पहले ही चरण में सत्रह मात्रा हो जाने से लय दोष पैदा हो जाएगा ]

क्रम : किसी छंद के प्रत्येक चरण में वर्णों या मात्राओं का एक निश्चित अनुपात से प्रयोग 'क्रम' कहलाता है.

छंद के अंतर्गत 'क्रम का महत्व निम्नलिखित उदाहरण से स्पष्ट हो जाएगा - 
जहाँ सुमति वहँ सम्पति नाना, जहाँ कुमति तहँ विपति निदाना

यह चौपाई छंद का उदाहरण है, जिसके प्रत्येक चरण में १६ मात्राओं का नियम है. इस चौपाई के अंतिम दोनों वर्ण दीर्घ हैं. किन्तु इसी उदाहरण को यदि यों कहा जाये – 
जहाँ सुमति वहाँ सम्पति नान, जहाँ कुमति तहाँ विपति निदान

यद्यपि इसमें मात्रा संख्या १६ ही हैं, तथापि इसे चौपाई छंद का शुद्ध प्रयोग नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसके अंत में 'दीर्घ' और 'हृस्व' का क्रम होने के कारण इसकी स्वाभाविक गति में व्यवधान पड़ता है. इसीलिए छंद शास्त्रकारों ने चौपाई छंद का लक्षण बताते हुए स्पष्ट किया है कि इसके अंत में 'जगण' अर्थात हृस्व-दीर्घ-हृस्व [लघु-गुरु-लघु] मतलब [ISI] का क्रम नहीं होना चाहिए. 

यति : छंद में जो एक प्रकार की संगीतात्मकता रहती है, उसका कारण ध्वनियों का आरोह-अवरोह होता है. ध्वनियों के इस आरोह-अवरोह (उतार-चढ़ाव) का आधार बीच-भीच में रुक-रूककर ऊँचा या नीचा बोलना होता है. छंद के प्रत्येक पाद में यथावश्यक विराम की योजना भी इसीलिए रहनी आवश्यक है. इसी विराम योजना को 'यति' कहते हैं. 

गति : छंद में लय-युक्त प्रवाह का होना आवश्यक है. इसी 'गीति-प्रवाह' को गति कहते हैं. 

छंद के अंतर्गत नवोदित आभ्यासिक कवियों को लघु-गुरु का परिचय आवश्यक है. 
गणों को सहज-स्मरणीय बनाने के लिये एक अन्य संक्षिप्त सूत्र भी प्रचलित है – 
"य मा ता रा ज भा न स ल गा"

गण-परिचय — 
गण : तीन-तीन वर्णों के विशेष समूह को गण कहते हैं.  
गण संख्या : आठ प्रकार हैं.
सर्व गुरु — SSS [म गण] .....मातारा 
आदि गुरु — SII [भ गण] .... .भानस
मध्य गुरु — ISI [ज गण] .....जभान
अंत गुरु —  IIS [स गण] ......सलगा
सर्व लघु — III [न गण] .........नसल 
आदि लघु — ISS [य गण] ....यमाता
मध्य लघु — SIS [र गण] .... राजभा 
अंत लघु — SSI [त गण] ......ताराज 

मैं एक रचना की 'छंद कविता' लिखता हूँ विद्यार्थी गण उसका वाचन करके देखें, क्या उन्हें रस मिला? 

छंद कविता  

राजभा नसल यमाता गाल 
राजभा मातारा ताराज 
यमाता सलगा मातारा ल 
राजभा सलगा मातारा ल.

नसल मातारा सलगा गाल 
यमाता भानस सलगा गाल 
राजभा भानस भानस गाल 
यमाता सलगा मातारा ल. 

जभान यमाता सलगा गाल 
जभान यमाता सलगा गाल
जभान जभान यमाता गाल 
यमाता भानस मातारा ल. 

यमाता सलगा सलगा गाल 
राजभा सलगा सलगा गाल 
जभान यमाता मातारा ल 
राजभा जभान  मातारा ल. 


शब्द कविता  

पारिभाषित करने को आज़ 
सम्प्रदायों में होती जंग. 
मतों का पहनाने को ताज 
धर्म को करते हैं वे नंग. 

धर्म को आती सबसे लाज 
छिपाता है वह अपने अंग.
सोचता था पहले कर राज 
रहूँगा सबके ही मैं संग. 

रखा करते जो उसकी लाज 
वही नर-नारी करते तंग. 
विदूषक के वसनों से साज 
चलाते हैं उसको बेढंग. 

अँधेरी नगरी तम का राज 
ईश की करनी करती दंग. 
मिला तमचारियों को ताज 
धर्म हो गया भिखारी-लंग. 


यदि आप छंद कविता को गा पाते हैं और प्रवाह में कहीं व्यवधान नहीं पाते. तब आपकी रचना गेयता की कसौटी पर खरी है. और यदि उसमें कुछ व्यवधान पाते हैं तब उसे दूर करने का उपाय करें. 

प्रश्न 1 : यदि उपर्युक्त कविता की अंतिम पंक्ति में 'धर्म हो गया भिखारी-लंग' के स्थान पर ' धर्म बन गया आज़ भिखमंग' कर दिया होता तब मुझे क्या परेशानी हो सकती थी? सोचिये.

प्रश्न २ : चार पंक्ति की कोई एक छंद कविता रचें और उसपर शब्दों का अभ्यास करके दिखाएँ.

यदि मैंने इस जटिल विषय को बोधगम्य नहीं लिख पाया हो तो अवश्य प्रश्न करके पूछ सकते हैं. 
फिलहाल मेरे विलम्ब से उत्तर देने का कारण प्रतिदिन रोज़गार की तलाश होता है. कभी साक्षात्कार की तैयारी तो कभी किसी किताब की फोर्मेटिंग में दी गयी वयस्तता होता है. कभी-कभी मेल के प्रतिउत्तर देने में मुझे आवश्यक रुचिकर कार्य भी छोड़ने पड़ जाते हैं. आशा है कि सभी मुझसे प्रेम रखने वाले मरी विवशता को समझेंगे. 

कई अन्य रचनाकारों को मैं पढ़ नहीं पाता या फिर उनके ब्लॉग पर पहुँचने में समय की बचत करता हूँ. इस कारण भी मैंने केवल छंद पर चर्चा करने वाले लोगों के नाम लेकर कोशिश की थी कि वे कितना तवज्जो देते हैं. लेकिन मुझे यह तो एहसास हो ही गया कि कौन-कौन मेरे लिखे को पढता है. 
'अविनाश चन्द्र जी' जो कि मेरे प्रिय कवि हैं, कभी चर्चा में शामिल होना पसंद नहीं करते और मैं भी उनपर जोर नहीं डालता. इसलिए जो अच्छे चर्चाकार हैं  केवल उनका नामोल्लेख करके उन्हें इस चर्चा में लाना चाहता था. मैं भी जानता हूँ कि मेरे कुछ नाम लेने मात्र से वरिष्ठ कवियों का मान नहीं घट जाता. यदि मैं 'हरकीरत' जी का नाम न लूँ तो इसका मतलब यह नहीं कि वे छंद चर्चा के अनुपयुक्त हैं. यह चर्चा तो योग्यतम लोगों से जुड़ने का माध्यम भर है.

[टाइपिंग की  जल्दबाजी में यदि कोई वाक्य अपना अर्थ खो बैठा हो तो अवश्य अवगत करायें, पुरस्कार स्वरूप उसपर एक कविता रची जायेगी]

28 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

जानकारी से भरपूर एक सार्थक पोस्ट...
नीरज

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

हा...हा...हा......
गुरु जी किस पचड़े में डाल रहे हैं मुझे ....
अब तो दिमाग में सारे छंद , वर्ण,चरण ,मात्राएँ लड़ते -लड़ते चारपाइयाँ लेकर लेट गए हैं ...

तो ये ...

राजभा नसल यमाता गाल
राजभा मातारा ताराज
यमाता सलगा मातारा ल
राजभा सलगा मातारा ल.

कैसे से करूँ ....?
अपनी तो नज्में ही भली .....

आपके समक्ष हमारी हार
बस है नमस्कारं बारम्बार .....!!

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर ... सार्थक जानकारी देता आलेख है..... आपकी व्यस्तताओं को समझते हुए
यहाँ आते रहेंगें ..... चाहे आप समय ना निकल पायें...... यह कड़ी जारी रखें..... शुभकामनाएं

सञ्जय झा ने कहा…

suprabhat guruji.....

is nayi vidha(hamare liye)ko samjhne
ke liye balak ko......is pathashala me abhi lamba class lene honge......

phir bhi shabd sahaj/saral hone ke karen thora bahut samjh liye......

pranam.

Amit Sharma ने कहा…

सेवा में,
प्रधानाध्यापक
दर्शन-प्राशन उच्च-माध्यमिक विद्यालय

विषय :- अवकाश प्राप्ति हेतु

श्रीमान जी, उपरोक्त विषयान्तर्गत निवेदन है की, मैं अभी वित्तीय-वर्ष समापन की गतिविधियों में अत्यधिक व्यस्त होने के कारण कक्षा में उपस्थित होने में असमर्थ हूँ . अतः आप कुछ दिन का अवकाश स्वीकृत करने की कृपा करें.

आभार सहित
अमित शर्मा

ZEAL ने कहा…

.

अपना नाम न पाकर जिन पाठकों को क्लेश हुआ वो मूर्ख की श्रेणी में ही रखे जायेंगे। तथा शिकायत करके वो अपनी छुद्र मानसिकता का परिचय दे रहे हैं ।

ये आपका बड़प्पन है की आप बिना किसी द्वेष के हर किसी को मान देते हैं । विद्वानों की पहचान ही यही है की वो मान-अपमान से ऊपर उठें ।

बहुत सुन्दर और उपयोगी लेख है । छंद और काव्य तो विद्वानों का आभूषण है । मेरी मात्र उपस्थिति है यहाँ ।

अपने लिए बस यही कहूँगी - " बन्दर क्या जाने अदरख (छंद और काव्य) का स्वाद ।

आभार ।

.

ZEAL ने कहा…

हीरों की पहचान तो जौहरी को ही होती है । आपकी पारखी दृष्टि को नमन । डॉ अनवर जमाल निसंदेह , एक उच्च कोटि के कवि भी हैं।

मदन शर्मा ने कहा…

बहुत सुन्दर और उपयोगी लेख!!
किन्तु मुझ जैसे मात्र तुकबंदी करने वाले अज्ञानी के समझ के बाहर लगता है ये सब!
लगता है हिमालय पे जा के वहीँ पे साम वेद का गान करूँ तभी मुझे कविता का इतना अच्छा ज्ञान उपलब्ध होगा.

Patali-The-Village ने कहा…

जानकारी से भरपूर एक सार्थक पोस्ट| धन्यवाद|

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

जानकारी से भरपूर एक सार्थक पोस्ट...
नीरज

@ राजभा ताराज जभान राजभा सलगा गा....
भानस

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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हरकीरत जी,
आप नज़्म भली लिखती हैं. सर्वविदित है.
यहाँ तो काव्य क्रीड़ा हो रही है. जो शामिल हो उसका भी भला, जो न हो उसका भी भला.
हार जीत का प्रश्न ही नहीं है.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

डॉ. मोनिका जी,
आपके द्वारा पाठशाला का दौरा लगाना मुझे अब अच्छा लगने लगा है.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

सञ्जय जी, नमस्ते.
अब आपको समझने के लिये मुझे भी लम्बी क्लास लेनी होगी!

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

प्रिय अमित जी,
आपकी छुट्टी मंजूर की जाती है.
सही बात है ... पहले अर्थ-उपार्जन की गतिविधियाँ फिर व्यर्थ के संग्रहण की विधियाँ.

प्रतिभार सहित
अवैतनिक प्रधानाचार्य

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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अपने लिए बस यही कहूँगी - "बन्दर क्या जाने अदरख (छंद और काव्य) का स्वाद।"
@ प्रिय दिव्या जी, आप अपनी क्षमताओं का प्रयोग शालीनता के कारण ही नहीं कर रहीं. आप बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं.
यहाँ तो निरर्थक विषयों से मन बहलाव होता है लेकिन आप गंभीर विषयों पर मनन कराने का जिस गति से कार्य कर रही हैं वह किसी के बूते की बात नहीं है.
इसे चाटुकारिता न समझना, यह वास्तविकता है. छंद और काव्य सृजन विद्वानों को भ्रम में रखते हैं कि वे एक्स्ट्रा ओरडीनरी हैं. जबकि सच यह है कि वे केवल जोश दिलाकर पीछे से तमाशा देखने वाले होते हैं.
सहृदय सामाजिक व्यक्तियों की ही समाज को जरूरत है. कवि-कलाकारों की उपयोगिता क्षेत्र में काम करने वालों से कमतर है. सामाजिक लेखों के ज़रिये विचार-क्रान्ति चलाने वाले ही इतिहास में अमर होते हैं.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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हीरों की पहचान तो जौहरी को ही होती है । आपकी पारखी दृष्टि को नमन ।
@ अच्छा व्यंग्य है मुझ पर. जोहरी जानता है कि कौन हीरा है, कौन कोयला है, और कौन ज्वलनशील कोयला है?

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ प्रिय मदन जी,
सामवेद की ऋचाओं का गान मैंने भी विधिवत कभी कुछ महीनों तक किया था. उससे बस इतना लाभ हुआ कि मेरे मुख मेरी जिह्वा मेरे जबड़े का अच्छा व्यायाम हो जाता था.
और उससे गीति के प्रति मेरा मोह बढ़ता जाता था. आप भी ऐसा कर सकते हैं. हिमालय जाना तो महँगा पड़ेगा आप घर की छत पर प्रातःकाल बैठकर ही तुकबंदी का प्रयास कर सकते हैं.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ हे गुलाबी ग्राम, आपने लाभ लिया. आभार.

सञ्जय झा ने कहा…

सञ्जय जी, नमस्ते.
अब आपको समझने के लिये मुझे भी लम्बी क्लास लेनी होगी!

SUPRABHAT GURUJI,

SAYAD SIGHRATA ME KOOCH TRUTI RAH GAYI.....

AB APKO SAMJHANE KE LIYE MUJHE BHI LAMBI CLASS LENI HOGI.....

SIRF SANKA KE SAMADHAN HETU....

PRANAM.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

प्रिय सञ्जय जी,
आपकी शिकायत मिली है कि आप देसी-बिदेसी ब्लोगों पर बहुत घूमते-फिरते हैं. घर पर {अपने ब्लॉग पर} कुछ काम-वाम नहीं करते. काम करने के नाम पर बहानेबाजी करते हैं.

चलिए कान पकड़कर दस उठ्ठक-बैठक लगाइए पूरी क्लास के सामने.

कोई क्लास में आता नहीं है, छुट्टी लेकर बैठा जाता है तो कोई चुपचाप खिड़की से झाँककर चला जाता है. तो कोई बहाने बनाता है कि समझ में कम आता है.

ऐसे कैसे चलेगा...... अभी तो छंद-चर्चा शुरू ही की थी और आप स्वच्छंद हो लिये.

सञ्जय झा ने कहा…

suprabhat guruji

balak jab class work nahi kar pata
to home work kaise kar payega.....

uthak baithak......das kyon bis bhi
laga liye.....aur ghumne ka alam ye
hai.......ke kai baar loutne ka rasta nahi milta...........

pranam.

Rakesh Kumar ने कहा…

बहुत सुखद अनुभव हुआ आपका लेख पढ़ कर और छंद के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी से अवगत हो.जब हाईस्कूल में थे तब हिन्दी में छंद आदि के बारे में पढते थे.ज्यादा समझ नहीं आता था तब.अब कोशिश करता हूँ फिर से समझने की.
आप मेरे ब्लॉग पर एक बार आये इसके लिये बहुत बहुत आभार आपका. आशा है आप समय समय पर आकर अपनी सार्थक टिपण्णी से मुझे अनुग्रहित करेंगें.

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

प्रतुल जी, आपका परिश्रम स्‍वागत योग्‍य है। अमितजी ने छुट्टियों के लिए प्रार्थना पत्र लिखा है उसे अमान्‍य कर दें। उनसे कहें कि छंद युक्‍त लिखें, तब स्‍वीकृत होगा। शुभकामनाएं, बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

मैं तो नईसड़क पर रस छंद अलंकर की किताबे खोजने जा रहा था देखा तो गुरूजी क्लास लगाये बठे है क्यूँ न बहती गंगा में हाथ धो ले, १९८० के बाद पुरावृति हो जाएगी

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

छंद पर विस्तृत जानकारी ...रोचक है पढ़ना ...

गुरु जी एक संशय है ...

वर्ण या अक्षर कहते हैं, जिसके खंड नहीं हो सकते.

वर्ण को ही अक्षर नहीं कहते हैं ..वर्ण के खंड नहीं हो सकते लेकिन अक्षर के हो सकते हैं ...

क = क्+ अ

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

.

त्रुटि की तरफ ध्यान दिलाने के लिये धन्यवाद.

वर्ण मतलब कोई भी स्वर और व्यंजन
लेकिन अक्षर वह जिसमें एक स्वर अवश्य निहित रहे
बिना स्वर के अक्षर नहीं बनता. जैसे कुछ शब्द हैं : राम, ओम ... दिखने में ये दो अक्षरी लगते हैं लेकिन ये शब्द एक अक्षरी हैं.
खोलकर समझते हैं :

राम = र^ + अ + म^ [ नोट : हलंत नहीं लगा पा रहा हूँ, उसके एवज में ^ लगा देता हूँ. ]
ओम = अ^ + उ + म^

एक और सरल तरीका है अक्षर पहचानने का :
आप किसी शब्द को इंग्लिश में लिखकर देखें जितने वोविल होंगे वह शब्द उतने अक्षर का होगा.

इस समस्त चर्चा में आदरणीया संगीता स्वरुप जी का हार्दिक धन्यवाद.
अब मैं अपना किया वादा निभाउंगा उनपर कविता लिखकर.

.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

अब प्राथमिक छात्रों को पढ़ाते समय कई ऎसी भूल करनी पढती है जिसे हम जानते हैं लेकिन सरलता के चक्कर में सिखाने के लिये जानबूझकर करते हैं.
मानता हूँ कि यह ग़लत परम्परा है लेकिन संगीता जी जैसे सुधारक ही प्रश्नों को लाकर विद्यार्थियों के मन में सही बात की जड़े गहरे जमा देते हैं.

*ओम = ओउम

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

छंद पर इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए साधुवाद ...