मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

हो 'पेय' आप मैं हूँ 'पायी'


मैं रहूँ मौन
तो कहे कौन 
'मन की बातें कुछ सकुचायी'. 

तुम सुन्दर हो 
दर्पण देखो 
'लज्जा अंतर की मुस्कायी'. 

करना विचार
है यही सार. 
हो 'पेय' आप मैं हूँ 'पायी'. 

स्पष्टीकरण : 
मैं यदि चुप रहा तो उस बात को कौन कहेगा जो मेरे मन में है. संकोच के कारण जिसे मैं कह नहीं पाता. मैं सुन्दर को सुन्दर कहना चाहता हूँ. मैं उस सुन्दर को सुन्दर कहना चाहता हूँ जिसे अपनी सुन्दरता का बोध नहीं, जिसमें हीनता ने घर कर लिया है. 

इस कारण मैंने सुन्दरता से कहा कि "तुम सुन्दर हो यदि विश्वास न हो तो दर्पण में देख लो." मेरा यह कहने के पीछे मनोवैज्ञानिक कारण था कि उसके मन से हीनता का भाव मिटे, और वह अपनी सुन्दरता पर स्वयं मुग्ध होकर लजाने लगे. लज्जा का मुस्कुराना मतलब आत्म-मुग्धावस्था. इस अवस्था में 'अपने को मिटा देने की इच्छा रखने वाले' के भीतर पुनः जीने की इच्छा उत्पन्न होती है.

मैंने सुन्दरता से कहा कि वह मेरी बात पर विचार करे.  मेरी बातों का सार यही है कि तुम सुदर दृश्य हो जिसे मेरी आँखें  निरंतर पीती हैं. [पेय और पायी संबंध]. 


अब प्रश्न यह है कि उपर्युक्त कविता में शब्द की किस शक्ति का प्रयोग है? 

36 टिप्‍पणियां:

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

मुझे कविता पढने में अच्छी लगी बाकि अगर आप कहते कि इसका अर्थ निकालो तो मुझे लगता है कि अगले सात जन्मों तक मैं इसका वो अर्थ नहीं निकाल पता जो अपने बताया है. इस कविता में शब्द कि किस शक्ति का उपयोग है मैं ये भी बता पाने में असमर्थ हूँ.... असहाय हूँ.... बस आपका ही सहारा है....

ZEAL ने कहा…

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मैं भी दीप जी की ही तरह असमर्थ हूँ। शायद अमित जी या सुज्ञ जी बता सकें। कविता निसंदेह सुन्दर है।

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Amit Sharma ने कहा…

शायद "प्रयोजनवती लक्षणा" शब्द शक्ति का प्रयोग हुआ है यहाँ पर !

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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मित्र सदाबहार,
हम बातचीत में अक्सर मुहावरे कहावतें लोकोक्तियाँ प्रयोग में लाते हैं. वे क्या हैं? — कभी सोचा है, वे हमें क्यों एक समय बाद सहजता से समझ आ जाया करती हैं. मैं पहले आपको लक्षणा और व्यंजना के व्यावहारिक प्रयोग बताता हूँ.
१] मैंने बातचीत में किसी व्यक्ति को गधा कहा तो इसका मतलब यह नहीं कि वह गधा नामक जानवर है मेरा लक्षित अर्थ था उसकी 'मूर्खता' से. मैं इस इस तरह भी कह सकता था कि 'वह मूर्ख है.' इस बात को लक्षणा के अन्य भेदों में आगे विस्तार देंगे.
२] दाँत खट्टे करना (परास्त करना), आँखे दिखाना (क्रोध करना), खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे आदि. इनका अर्थ हम बड़ी आसानी से समझ लेते हैं. वजह है कि इनका प्रयोग बहुतायत में है और उनके अर्थ सर्वमान्य हैं.
३] हरिऔध जी ने कहा है :
कवि अनूठे कलाम के बल से, हैं बड़ा ही कमाल कर देते.
बेंधने के लिये कलेजे को, हैं कलेजा निकाल धर देते.
........ यहाँ भी हम किसी ओपरेशन थेयटर की बात नहीं कर रहे. कवि का चीड-फाड़ की प्रयोगशाला में क्या काम. इसका अर्थ भी आप सहजता se लगा लेंगे. मुझे विश्वास है.

अब रही निर्दिष्ट कविता की वह भी किसी प्रयोजन को उदघाटित कर रही है.
मैंने कहा कि 'गंगा में आश्रम है' .......
यहाँ 'गंगा' शब्द का सीधा अर्थ है 'गंगा नदी'
लक्षित अर्थ है ..... गंगा तट.
मेरा प्रयोजन है ...... आश्रम की शीतलता और पवित्रता को बतलाना.
.......... अभी इतना ही जान लें कि इसमें लक्षणा और व्यंजना इस तरह मिश्रित है कि इसे 'व्यंजना आश्रिता लक्षणा' या 'सव्यंग्या लक्षणा' अथवा प्रयोजनवती लक्षणा कहते हैं.
अधिक विस्तार अभी नहीं. इस भाषा से आपके भागने का भय बन जाता है.
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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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मुझे प्रतीत हो रहा है कि प्रथम अनुक्रमांक का विद्यार्थी KBC प्रोग्राम की भाँति ही चार-पाँच लाइफ लाइंस का प्रयोग करके उत्तर दे रहा है. या तो वह फोन-ए-फ्रेंड का use कर रहा है. या फिर उसके इर्द=गिर्द साहित्यकारों की ऑडियंस बैठी है. या वह मुन्नाभाई MBBS की तरह परीक्षा दे रहा है. या फिर परीक्षा भवन में कोई परीक्षक पहुँचा ही नहीं इस कारण खुलकर नक़ल हो रही है.
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एक ने तो यहाँ तक कह दिया कि प्रश्नपत्र हर बार लीक हो जाता है और अमित जी अपने व्यापक प्रभाव का इस्तेमाल करके उसे हासिल कर लेते हैं.
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सुज्ञ ने कहा…

इस बार मेरा लक्षय था नकल करूं,सो कक्षा में आकर भी निकल लिया,पता लगा लेंगे प्रश्नोत्तर का।

प्रथम दृष्टि समझा था कुछ पीने-पिलाने की लक्षणा है।
और पी लेने की शब्द शक्ति का प्रयोग हुआ है।

पर स्कालर विद्यार्थी कह रहा है, और गुरू ने समझा भी दिया तो चलो "प्रयोजनवती लक्षणा" ही ठीक है।

Amit Sharma ने कहा…

@ प्रथम अनुक्रमांक का विद्यार्थी KBC प्रोग्राम की भाँति ही चार-पाँच लाइफ लाइंस का प्रयोग करके उत्तर दे रहा है
# अब क्या कहें कविता के लक्षण बताने के चक्कर में मेरे करेक्टर पर ही लांछन लगने लगा है अब :)
राम करे सो काम, अमित करे आराम
छुप हो बैठ रहूँ , करलूं कुछ विश्राम

Unknown ने कहा…

Guru ji Namaste

Guru ji mujko lagta hai ke Amit and Diya ji apke class ke Sachin tendulkar or sahwag hai jo poori ke poori class ko akele hi chala kar le jaa rahe hain.


apka outer student

Unknown ने कहा…

Guru ji ek baat dil mai aa rahe hai apke agya ho to kai du...

Mujko amit ji garam dal ke or diya ji naram dal ke lagte hai...

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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अमित जी आपका श्रम और स्वाध्याय काबिल-ए-तारीफ़ है. मैं तो इस स्तर पर अपनी बात को वैसे पहुँचाना ही नहीं चाहता था. मैं तो मात्र मोटे-मोटे तीन भेदों की ही बात करके ख़त्म करना चाहता था लेकिन आपके स्वाध्याय ने मुझे भी कुछ विस्तार से बात करने का अवसर दे दिया अन्यथा मैं तो V4-0 G के फिर से न आने के भय से भयभीत था. भाषा भारीभरकम हुई नहीं कि उन्होंने अलविदा कहा.

इधर दिव्या जी भी उनसे सहमत दिखने लगी थीं. मेरी कक्षा में अनुक्रमांक ३ और १ बचे तो पाठ तो विधिवत हो ही नहीं सकेगा. यदि कुछ साहित्यिक चर्चा का मन हुआ तो चैटिंग ही करने की सोचने लगूँगा. अब तो वह मुझे अच्छे से आ भी गयी है.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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सुज्ञ जी,
वैसे तो मैं भी स्वाध्याय पहले करता हूँ फिर अपनी बात सरल तरीके से कहने की कोशिश करता हूँ. कक्षा में आना और प्रश्नों की तलाश में पुस्कालय में जाकर बैठना कोई बुरी बात नहीं. हमें निरंतर अपना अधूरापन कैसे-न-कैसे पूरा करना ही चाहिए.
आपकी प्रथम दृष्टि ने सही पहचाना कि
कवि की दृष्टि ने सौन्दर्य का पान किया और अब सुन्दरता को पेय और स्वयं को पायी बताकर अपनी शक्ति की डकार ले रहा है.
कोई उसे घेर कर पीटने न लगे इसलिये वह 'प्रयोजनवती लक्षणा' की शास्त्रीयता से अपना बचाव कर रहा है.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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नरेश जी, लगता है क्रिकेट आपका प्रिय खेल है और आपके उपमान भी वहीं से हैं. आपने उपमान भी उस क्षेत्र के दो सितारों के लिये हैं. आपका प्रेम है और आपकी निरंतर पठनीयता इससे सिद्ध होती है. आपने अपने दूसरे कमेन्ट में उपमान ग़लत दिए. उन्हें आप गहराई se पड़ें और उनके ब्लॉग पर जाकर पढ़े तो काफी कुछ जानने को मिलेगा. दोनों में ही ऊष्ण और शीत के गुण विद्यमान हैं. समय-समय की बात है. धर्म विपरीत बात करेंगे तो अमित जी के अकाट्य तर्कों से आप बिना बचे जा नहीं सकते. और मर्यादा की उँगली भर सीमा भी लांघी तो दिव्या जी की ऊष्णता में भस्म हुए बिना नहीं रहोगे. वैसे दोनों ही प्रेमी जीव हैं. शीतल स्वभावी हैं. हाँ कभी-कभी उनकी शीतलता से विषयी कमल मुरझाते जरूर देखे हैं.

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सुज्ञ ने कहा…

वाह गुरू जी,
आपकी अनुकम्पा से द्रवित हो गया।

"कवि की दृष्टि ने सौन्दर्य का पान किया और अब सुन्दरता को पेय और स्वयं को पायी बताकर अपनी शक्ति की डकार ले रहा है."

इस अज्ञानी विद्यार्थी से सहमत होकर मान रख लिया।

सुज्ञ ने कहा…

गुरू जी,

आपके प्रिय विद्यार्थीयों को तो आपका गज़ब का संरक्षण प्राप्त है। उनके स्वभाव विचारधाराओं को बडी गहनता से विश्लेषित कर, नरेश जी की भ्रांतियो को दूर किया।

आभार, प्रतुल जी

ZEAL ने कहा…

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गुरुदेव,

आप की कक्षाओं से हम निश्चित ही लाभान्वित हो रहे हैं। आपका शिष्यों से स्नेहिल व्यवहार अनुकरणीय है।

एक शब्द है 'जुगुप्सा'-- कृपया इसका अर्थ सरल हिंदी में बता दें ।
एक शब्द है -'agressive' aur possessive इसके लिए कृपया उपयुक्त हिंदी शब्द बता दें, आवश्यकता आन पड़ी है ।

@ नरेश जी-
आपकी चटपटी बातें बहुत रोचक लगती हैं । वैसे मेरे फेवरेट क्रिकेटर हैं-- सौरव गांगुली ।

रोल नंबर एक को बधाई , सही उत्तर देने के लिए।

सुज्ञ जी , टफ -कोमपटीशन है आपका क्रमांक एक के साथ।

हम तो बैक-बेंचर निकले। लेकिन मन लगाकर पढ़ती हूँ।

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Satish Saxena ने कहा…

मैं तो अन्दर बैठने योग्य भी अपने को नही मानता अतः गुरूजी के जाने बाद ब्लैक बोर्ड के सामने सर पकडे बैठा हूँ !
बेहतरीन कार्य के लिए बधाई आप सबको

सञ्जय झा ने कहा…

is gurukul me nursury ka bhi class hai kya....

satyam-shivam-sundaram


pranam

सुज्ञ ने कहा…

गुरूजी,

कभी रोल न 3, का होम-वर्क देखकर हौसला बढा दिया करो।
http://shrut-sugya.blogspot.com/2010/10/blog-post_21.html

Unknown ने कहा…

Guru Ji Parnam

Guru ji mai apka deyan apke teem ka Yuvraj Singh (Roll No. 3) ke or delana chata hu...

Guru ji jab sacheen or shewag nahi chalte hai to Yuvraj singh ka bat chalta hai...

apne kal ke news nahi dake Yuvraj singh (Roll No. 3) ab apne purane lai mai aa gaya hai...

Ok bye bye Guru ji.....

Unknown ने कहा…

Guru Ji yeh jo ek new student apne aap ka nursery class mai admission karana chata hai es student ka ek short test lai laina kahe yeh student pre-nursery ke layak ho...

tata bye bye...

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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जुगुप्सा ............ घृणा
एग्रेसिव ............ आक्रामक ..... [आप इसका प्रयोग पहले से ही कर रहे हैं.]
पसेसिव .......... 'स्वत्व' अच्छा शब्द है.
एक प्रकार का प्रभुत्व या आधिपत्य; जिसमें कोई व्यक्ति किसी वस्तु या व्यक्ति पर केवल अपना ही मालिकाना हक़ चाहता है.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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संजय जी
कोरे पृष्ठ पर सभी लिखने की इच्छा रखते हैं. इसलिये नवल छात्र को कौन नहीं पसंद करेगा. आपकी विनम्रता है कि आप अपने लिये छोटी कक्षा ढूँढ रहे हैं.

साधन सीमित हैं सो सभी विद्यार्थी एक ही कक्षा में बैठेंगे और अपनी क्षमताओं का लाभ परस्पर देते रहेंगे तो पाठशाला में अलग-अलग कक्षाएँ चलाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. इससे समय और ऊर्जा भी अधिक व्यय नहीं होगी. मैं प्रयास करूँगा कि सभी के लिये निरंतर सामग्री देता रहूँ.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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सुज्ञ जी
आपने बड़े आदर के साथ मुझे 'स्वार्थ' महसूस करा दिया.
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आपने अपने गृहकार्य में कंस्ट्रक्शन शुरू कर दी है. मैंने आपके बनते घर में एक MCD इन्स्पेक्टर को आते देखा, क्या कोई रिश्वत वगैरह तो नहीं खिलानी पड़ी. इन इंस्पेक्टरों की जब तक अच्छे से आव-भगत न करो तब तक ये आते रहते हैं. उन्हें अपने घर की छत अवश्य दिखाना, काफी सुन्दर है.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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नरेश जी,
आपसे क्रिकेट की भाषा में ही बात करेंगे. रोल नंबर ३ कक्षा के युवराज सिंह नहीं हंसराज सुज्ञ हैं.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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आगंतुक सतीश जी,
जब पाठशाला में कक्षा के भीतर विद्यार्थी बैठें पाठ याद करते हों तो वरिष्ठ गुरुजनों को आत्मिक प्रसन्नता होती ही है.

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प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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नरेश जी
जब से आपने सुज्ञ जी को युवराज सिंह कहा है मैं हंसराज जी से तुलनातमक विचारों में खोया रहता हूँ.
रात्रि में स्वप्न में पता चला कि
युवराज जी तो वाइरस है जबकि हंसराज जी तो हाइरस हैं. आप पूछेंगे 'वह कैसे?' एक अजब सा तोड़ निकाला है.

युवराज सिंह का
शोर्ट मतलब (सीधा अर्थ) है...YRS [वाईआरएस]
लक्षित अर्थ है ....... एक साथ उच्चारने पर 'वाइरस'
मेरा प्रयोजन है ....... क्रिकेट नामक बीमारी का 'वाइरस'
जबकि हंसराज सुज्ञ का
शोर्ट मतलब है ....... HRS [एच आर एस]
लक्षित अर्थ है ......... एक स्टाइल विशेष से उच्चारने पर 'हाइरस'
मेरा प्रयोजन है ........ उच्च रस ... अर्थात भक्ति रस.
......... समझ गये न ... नरेश ........ इसमें है 'प्रयोजनवती लक्षणा'. अब याद रहेगा ना यह नाम. आगे की कक्षा में आपसे पूछूँगा.

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Amit Sharma ने कहा…

@ युवराज जी तो वाइरस है जबकि हंसराज जी तो हाइरस हैं. आप पूछेंगे 'वह कैसे?' एक अजब सा तोड़ निकाला है.

# वह गुरूजी क्या धमाकेदार प्रस्तुति 'प्रयोजनवती लक्षणा' को सोदाहरण समझाने कि, आपकी इस अदा पर तो साथी दीपचंदजी भी फ़िदा हो जाएंगे ......... अब शायद उनका यह बहाना ना चले कि भरी भरकम शास्त्रीय शब्दों से उन्हें घबराहट होती है :)

सुज्ञ ने कहा…

गुरुजी,

आपने ग्रहकार्य देखा,मेरा श्रम साकार हुआ।
आपसे शिक्षित विद्यार्थी भ्रष्टाचार कैसे प्रोत्साहन दे सकता है?
जब नवनिर्माण होता है MCD इन्स्पेक्टर का दर्शन देना लाजिमी है। आप जब पधारे थे,तो सभी का छत नींव की और लक्ष दिलाया ही था। प्रत्येक व्यक्ति सुंदर घर चाह्ता है। पर मन की निर्मलता बडी दुर्लभ है।
प्लास्टर की सुन्दरता बनाते है, पर ईंटो की सुंदरता पर कोई ध्यान नहिं देता, गुरु!!

सञ्जय झा ने कहा…

guruji ki aagya saharsh swikarya hai...

hardik pranam....

सुज्ञ ने कहा…

संजय,

नये सहपाठी का यहां स्वागत है।

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar ने कहा…

प्रिय भाई प्रतुल जी,
नमस्कार!
आज तो जल्दी-जल्दी में आया था, काफी कुछ पढ़कर जा रहा हूँ। यहाँ आना अच्छा लगा। फिर लौटूँगा आपके ब्लॉग पर...वादा।

जाते-जाते एक बात कहूँगा कि डॉ. दिव्या श्रीवास्तव जी के प्रश्न का उत्तर देते हुए आपने जो अर्थ बतालाए हैं, संतोषप्रद हैं।
जुगुप्सा ............ घृणा
एग्रेसिव ............ आक्रामक
पसेसिव .......... 'स्वत्व'

...लेकिन विनम्रतापूर्वक कहना चाहूँगा कि Possessive शब्द के लिए ‘स्वत्व’ का विकल्प ठीक नहीं जान पड़ता है।

कारण कि-
Possessive शब्द Adj है, जबकि ‘स्वत्व’ संज्ञा शब्द है जिसके लिए अंग्रेजी में निम्न शब्द ज़्यादा उपयुक्त हैं :
हिन्दी अंग्रेज़ी
स्वत्व {पु.} claim {संज्ञा}
स्वत्व {"} liberty {"}
स्वत्व {"} lien {"}
स्वत्व {"} ownership {"}
स्वत्व {"} right {"}


आइए, हम-सब मिलकर कोई और बेहतर एवं ज़्यादा सटीक शब्द ढूँढ़ें। उधर आप भी सोचिए, इधर मैं भी प्रयास करता हूँ, अन्य विद्वान साथीगण तो हैं ही साथ देने के लिए...ठीक है न, भाई?

और हाँ... वो जो ‘जुगुप्सा’ शब्द है न! उसमें यदि आप कोष्ठक में निम्नांकित स्पष्टीकरण भी जोड़ देते तो ज़्यादा ठीक रहता।

जुगुप्सा........घृणा (घृणा उत्पन्न करने वाली वस्तुओं को देखकर उससे संबंध न रखने के लिए बाध्य करने वाली मनोभावना)

पुनः भेंट करूँगा आपसे इसी ब्लॉग पर, मुझे वाक़ई अच्छा लगा, यहाँ आकर।

सुज्ञ ने कहा…

हे हे, काव्याचार्य जी की स्कूल मे आये है नये
व्याकरणाचार्य।
चलो सब प्रणाम करो।

अब कक्षा में ज्यादा ही आनन्द आयेगा।

बुरा न मानें जितेन्द्र जी, हम विद्यार्थी इसी प्रकार हास्य-विनोद में शिक्षा ग्रहण करते है।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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आदरणीय जितेन्द्र जी,
नमस्ते.
एक सज्जन को मेरे घर (ब्लॉग) का नहीं पता था. मैंने पूछा क्या आपको एड्रेस दे दूँ तो पहुँच जाओगे?
उसने कहा कि मैं इस इलाके में नया हूँ. अकेले भटक जाऊँगा.

तो मैंने फिर पूछा क्या आप उस घर को जानते हैं जहाँ बहुत कम लोग आते हैं?
उसने कहा नहीं, मैं तो मजमा लगाए घरों में ही आता-जाता हूँ.

मैंने उससे फिर पूछा कि 'क्या तुम 'संज्ञा शून्य' के घर को जानते हो?
उसने कहा कि 'इस नाम का कोई घर (ब्लॉग) नहीं है अब तक. हाँ विचार शून्य का घर मैंने ज़रूर देखा है.

तभी मैंने तपाक से कहा ...... बस वही तो है मेरा घर.
जबकि मेरा घर वह नहीं था तो भी मैंने उसे वही घर बताया जो उसने देखा था. मैंने सोचा, वह 'विचार शून्य' के घर पहुँच गया तो समझो वह मेरे घर भी आ ही जाएगा. हम दोनों पडौसी जो हैं.
जब किसी शब्द के सटीक अर्थ अन्य भाषा में नहीं मिलते या उनके पर्याय अल्पज्ञान के धुंधलके में छिपे होते हैं तब उन विकल्पों से काम चलाना ही पड़ता है जो सबसे समीप के होते हैं.

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विद्यार्थी ध्यान दें कि उपर्युक्त बातचीत में भी उसी शब्द शक्ति का प्रयोग हुआ है. जिसे उन्होंने पाठ में पढ़ा था.

सुज्ञ जी ने आगंतुक विद्वान् का समस्त कक्षा के साथ स्वागत किया. इस तरह उन्होंने कक्षा में शिष्टाचार और छात्र संस्कृति का परिचय दिया.
पाठशाला का निर्णय है कि अब से वे ही मोनिटर होंगे.

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जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar ने कहा…

सुज्ञ जी को संस्कार एवं आवश्यक शिष्टाचार निभाने के लिए आपने तत्काल उनका प्रमोशन कर दिया..मॉनीटर बना दिया, मोगैम्बो ख़ुश हुआ!

भाई एक बात है, कमाल का School decorum बनाकर रखा है आप सभी ने। सलाम करता हूँ आप सभी को!

प्रतुल जी, आपकी विनम्रता को प्रणाम करता हूँ...स्वीकारें हुज़ूर!

सुज्ञ ने कहा…

गुरू जी,

जगुप्सा के लिये घिन्न शब्द उपयुक्त होगा,कदाचित

आपने मोनिटर बना कर अमित जी का पद छीन लिया, रोज प्रातःभ्रमण में आपके साथ रहने वाले अमित जी नाराज है,कदाचित।

एक छंद बना है,कृपया समिक्षा करें सभी, और गुरूजी गलतियों पर ध्यान दिलाएं

प्रतुल अमि रस प्याला हो, जौहर धधकती ज्वाला हो।
दीप दिव्य ज्योति जले तो, काव्य सुज्ञ सुरीला हो॥

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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प्रिय सुज्ञ जी,
घिन्न देशज शब्द है. बहुत उपयुक्त है.
अमित जी को मोनिटर पद की जरूरत नहीं है, कुछ विद्यार्थी कप्तान पद पर नहीं भी रहते तो तो भी कार्य उनके सचिन तुल्य होते हैं. इस बात से नरेश जी काफी खुश होंगे.

आपने अपने छंद में सभी को ऐसे बुन दिया है कि वे अब अलग प्रतीत नहीं होते. आपने कक्षा को एकजुट करने का पहला प्रमाण दिया है.
तुक की दृष्टि से श्रेष्ठ. भाव की दृष्टि से श्रेष्ठ. छंद की प्राथमिक शर्तों को पूरा करता है.
प्रयास जारी रखें.

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