'राहत'
कैसे पाऊँ दुःख में
आँसू सूखे खेवक रूठे
नयनों की नैया डूब रही
पलकों के बीच भँवर में.
'आहत'
तस्वीरें रेंग रहीं
तन्वंगी आशाएँ बनकर
तम, छाया है या निशामयी
जीवन ठहरा है मन पर?
'चाहत'
की चमड़ी ह्रदय से
उतरी है तेरी यादों की
मन पर मांसज-सी चिपकन है
चमड़ी चढ़ती उन्मादों की.
[प्रेम में असफल हुए एक पागल-प्रेमी की मनोदशा का चित्र]
इसमें कुछ पंक्तियों में अनुप्रास का छठा भेद 'अन्त्यारम्भ अनुप्रास' है.
10 टिप्पणियां:
एक आम पाठक की नजर से देख कर कह रहा हूँ की कविता अच्छी लगी......
मित्र, केवल 'पढ़ ली' लिखकर भी भेज देंगे, तो भी कविता धन्य हो जायेगी. मैं सदा आपकी नज़र का इंतज़ार करता रहता हूँ. आप मेरे बालसखा हैं, आपकी दृष्टि का मोल मेरे लिये अनमोल है.
अच्छे लगे मुझे तीनो ही छंद..
अतुलनीय प्रतुल जी
कोई नहीं है समतुल्य आपके … सचमुच !
रचना के तीन शीर्ष में भी क़ाफ़िये का निर्वहन !
आह !
वाह !!
य्याह !!!
प्रतुल जी, अंत्यानुप्रास तो कहना सही नहीं होगा यहां , प्रथमानुप्रास कहें तो … ?
इस बार सफल प्रेमी की मनोदशा के चित्र की प्रतीक्षा रहेगी ।
असफल जब इतना रंग जमा रहा है तो सफल के जलवे तो देखते ही बनेंगे , है न !
बधाई और शुभकामनाएं …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
achhi rachna......
ya phir kahoon to behtareen................
आदरणीय राजेन्द्र जी, नमस्ते
मेरे एक आचार्य ने इस नये अनुप्रास को नाम दिया था "अंत्य+आरम्भ" मतलब 'अंत से आरम्भ होने वाला'. मैंने इसे पहले नाम दिया था "अंत्य+प्रारम्भ" जिसमें मुख-सुख थोड़ा कम था. अतः 'डॉ. चन्द्रहास' ने इसे यह नाम दिया.
पहले के अनुप्रास हैं : (१) छेकानुप्रास, (२) वृत्यानुप्रास, (३) अन्त्यानुप्रास, (४) श्रुत्यानुप्रास और (५) लाटानुप्रास.
इस बार सफल पेमी की मनोदशा का चित्र देना .......... अवश्य. आपकी आज्ञा शिरोधार्य.
आज के समय में अपनी कविता को दैनिक व्यायाम करवाने वालों में अविनाश चन्द्र जी अग्रणीय हैं. उनके द्वारा शाबासी मिलना सुखद अनुभव होता है.
राजेन्द्र जी,
इस नवीनतम अनुप्रास पर वृहत रूप में फिर कभी चर्चा करेंगे. फिलहाल इतना ही कि
"जिस वर्ण पर शब्द का अंत होता है उसी वर्ण से दूसरे शब्द का आरम्भ हो, वहाँ 'अन्त्यारम्भ अनुप्रास' होता है."
आदरणीय प्रतुल जी
आपके अन्वेषण से प्राप्त अनुप्रास के छठे भेद 'अन्त्यारम्भ अनुप्रास' को नत मस्तक हो'कर पहले ही सहेज - स्वीकार चुके हैं ।
मैंने 'राहत' 'आहत' 'चाहत' के संदर्भ में कहा है … प्रारंभ में तुक मिलने के कारण तुकांत ( तुक + अंत )तो कैसे कहें , तुकारंभ / प्रथमानुप्रास जैसा ही कुछ होगा कदाचित् …
मेरी इस बात को विनोद अथवा अज्ञानवश उत्पन्न उत्सुकता भी माना जाए तो आपत्ति नहीं …
:)
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आचम्भित हूँ. 'आपकी दृष्टि क्या-क्या पकड़ रही है' सोच कर ही साहित्यिक-कंप होता है. अरे, आप इस दृष्टि को संभाल कर रखियेगा, नये अलंकारशास्त्र की निर्मिती पर काम आयेगी. अब मैं नमन करता हूँ आपकी पारखी नज़र को. आप स्वर्णकार है. अरे नहीं आप 'पारस' हैं, मेरे लौह-वर्णों को आपने दृष्टि से छूकर सु-वर्ण कर दिया.
आपके नये नामकरण पर चिंतन कर रहा हूँ — कहीं 'तुकारम्भ' नाम किसी अन्य अनुप्रास के अन्दर समाहित तो नहीं हो रहा, यदि सभी पहलुओं से विचार करके इसे अलग आसन देना पडा तो इसके निर्माण का श्रेय आपको जाएगा. कोटिशः आभार.
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