किसलिये फूल के यौवन में
कलिका का आता है पड़ाव?
किसलिये धूल के मारग में
चलती है मारुत पाँव-पाँव?
किसलिये सूर्य ने छोड़ दिया
क्रोधित होकर कर-पिय का कर?
किसलिये गरम होती वसुधा
निज पुत्रों पर, जो रहे विचर?
किसलिये कपासी मेघों का
नभ ने पहना है श्वेत-वसन?
ढँकना भूला है अंगों को
किसलिये अंगना का यौवन?
क्यों देह दहन करता उर का
जो पहले से ही शोक-मगन?
क्यों यादों के अब द्वार खोल
आई चुपके हिम-मंद-पवन?
क्यों साँझ समय कवि गेह निकल
देखा करता छवि का यौवन?
क्यों निशा और क्यों चंद-किरण
धरती पर करते हैं नर्तन?
किसलिये दिवा में छिप जाते
जन, छाया की गोदी में सब?
बस उसी तरह सब व्योम तले
टक-टकी लगाए बैठे अब.
क्यों नाच देख ढँकना भूले
पलकों को निज निर्लज्ज नयन?
मैं आया था सोने लेकिन
क्यों भूल गए निज नयन शयन?
5 टिप्पणियां:
अच्छी विचारणीय प्रस्तुती /
प्रतुल जी,
बहुत शानदार अभिव्यक्ति। क्यों, कैसे, किसलिये जैसे प्रश्नों पर हम ईमानदारी से सोच सकें तो शायद इससे अच्छी कोई तपस्या नहीं हो सकती।
इतनी अच्छी रचना पर बधाई स्वीकार करें।
कई शाश्वत सवालों के के उत्तर की तलाश में "किसलिए" रचना पसन्द आयी।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत बढ़िया!
किसलिये सूर्य ने छोड़ दिया
क्रोधित होकर कर-पिय का कर?
किसलिये गरम होती वसुधा
निज पुत्रों पर, जो रहे विचर?
अगर सभी समझ जाये तो फिर कुछ समस्या अगर पैदा भी होगी तो उसमें भयानकता नहीं होगी .
अद्भुत रचना !
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