शनिवार, 8 मई 2010

पलक-द्वार

मीन-लोचने! खींच रहा
तुमको संगीत हमारा.
बोलों की है डोर और
भावों का कंटक-चारा.

बीन बजाकर खर्च किया
धन लय तानों का सारा.
खोलो अब ये पलक-द्वार
फँसने दो मीन हमारा.

1 टिप्पणी:

Kulwant Happy ने कहा…

अच्छी रचना।