कब बीता कविता का वितान
ना तृप्त हुए मन और कान.
था कैसा कविता का विमौन
मैं देख रहा चुपचाप कौन
आया उर में श्रोतानुराग
जो छीन रहा मेरा विराग
करपाश बाँध रंजित विशाल
भावों का करता है शृंगार
तुर चीर अमा का अन्धकार
लाया उर में जो प्रेमधार...
[अमित जी के प्रति पनपा श्रोतानुराग]
3 टिप्पणियां:
बहुत ही सार्थक विचारणीय प्रस्तुती /
bahut sundar likha sir..lagta hai Amit ji ke bhakt ho gaye aap...
बहुत सुन्दर। शुभकामनायें
एक टिप्पणी भेजें