सभी स्वच्छ पथ उर के मेरे
अब चलो आप निर्भय होकर
सब तरफ आज घेरेंगी, पिय
कष्टों की टोली 'हो'...'हो' कर.
छिप गयीं आप क्यूँ घबराकर
मेला है ये तो कुम्भ, मकर
राशि में मिलने अब गुरु से
आना चाहे है बस दिनकर.
चख-बाण छोड़ दो तुम धनु से
मन के तापों का हरण करो
सब कष्ट निवारण हो जाएँ
ओ कन्या! कवि को वरण करो.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें