बुधवार, 27 जनवरी 2010

संभव नहीं

घन मेघ हों गर्जन न हो संभव नहीं.
सौंदर्य हो यौवन न हो संभव नहीं.
हृत पुष्प हो नवयौवना का जब खिला
अलि नाद हो मर्दन न हो संभव नहीं.

चिर प्रेम हो प्रियतम न हो संभव नहीं.
सुर ताल हो सरगम न हो संभव नहीं.
जब हों बंधे नृत्यांगना पद में नूपुर
संगीत हो नर्तन न हो संभव नहीं.

आपान हो गणिका न हो संभव नहीं.
अपमान हो चिंता न हो संभव नहीं.
फँसता निराशामय हृदय मझधार में
भगवान् हो तिनका न हो संभव नहीं.

दिनमान हो दिविता न हो संभव नहीं.
कवि पास हो कविता न हो संभव नहीं.
जब भी चलोगे कंटकों कि राह पर
प्रिय आप हों ओ' हम न हों संभव नहीं.

(समर्पित: स्वसा गीतिका को)

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