सोमवार, 4 जनवरी 2010

तीन पागल

पागल पागल पागल
तीन तरह के पागल

एक वो
जो सुनता न किसी की
बस कहता,
हँसता
कर बात
बिना हँसी की.

दूजा वो
जो न सुनता न कहता
बस रहता
खोया खोया
लगा खोजने में खुद को.

तीसरा वो
जो बडबडाता
बिना सोच
कर देता
सोच प्रधान बातें
तब तर्कहीन बातें भी 
तर्क की कसौटी पर
कसने को
व्याकुल हो
uthtaa  है, वह पागल

पागल पागल पागल
तीन तरह के पागल.

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