पिचकता पेट
"भूखा"बन गया आदर्श मेरा अब.
मरूंगा
"भूख से" ?या, "चिलचिलाती धुप (dhoop) से" ?
- मैं कब?मरें हैं अनगिनित निर्धन
वसन से हीन भिक्षुक बन
कटोरा हाथ में ले मांगते
फिरते रहे जो धन.
विवश हो देखती माता
वसन से हीन कन्याएं
मरा परिवार में कोई
वसन-शव खींच ले आये.
उसी से ढांकते हैं तन
उसी से ढांकते यौवन
उसी से कर रहे देखो
सुरक्षित स्वयं का जीवन.
दिखायेगी अभी वर्षा
निराले ढंग आकर के
सुनाएंगी अभी उनको
छतें मल्हार गाकर के.
हा! कैसे कटेगी रात
कटेगा किस तरह जीवन
जलेगा किस तरह चूल्हा
कहाँ पर, फिर बिना ईंधन.
कड़कती ठण्ड में जाने
मरा!* इस बार होगा क्या
मरा पिछले बरस बूढ़ा
मरेगी इस बरस बुढ़िया.
बना फिर जूट के कपडे
बचायेंगे, छिपा बचपन
कटेगा इस तरह फिर से
किसी का साल ये नूतन.
(*मरा! --- 'शोक' संबोधन/ या 'हाय!' )
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