उड़ रहे हृदय में दो विमान*
सपनों का ईंधन* ले-लेकर.
वे जाल फैंकते हैं विशाल
बंदी करने पिय-उर बेघर.
पिय का उर पर हर बार बचा
छोटा था जाल छविजाल तुल.
शर छोड़ रहे दोनों विमान
पुष्पित करने हृदयस्थ-मुकुल.
पर नयन-बाण सम्मुख सब शर
अपनी लघुता को दिखा रहे.
निश्चल नयनों के चपल बाण
रण-कौशल अब तो सिखा रहे.
चख लिया पराजय का जब मुख
तब नहीं हुआ किञ्चित भी दुःख
दोनों विमान चक्कर खाते
नीचे गिरते करते 'सुख-सुख'.
________________________
दो विमान --- कल्पना और आकर्षण
सपनों का ईंधन ---- उड़ान भरने के लिये आवश्यक ऊर्जा
पिय-उर बेघर ---- पिय का हृदय अपने ठिकाने पर नहीं, इसलिये बेघर कहा.
छविजाल --- सौन्दर्य
तुल ---- तुलना में
7 टिप्पणियां:
अप्रतिम प्रस्तुति...
कविता का नव-नव रूप लिये
नव बिम्ब सजे श्रृंगार करे
मन मुकुलित है अभिमान लिये
हर ईंधन दुर्लभ हुआ आज
कैसे कविता का करें साज
बहोत अच्छी कविता सर
बहोत अच्छा लगा पढकर
Hindi Dunia Blog (New Blog)
Excellent creation...loving it.
चख लिया पराजय का जब मुख
तब नहीं हुआ किञ्चित भी दुःख
दोनों विमान चक्कर खाते
नीचे गिरते करते 'सुख-सुख'.
beautiful lines with excellent
emotions and feelings
..सुंदर।
सहते जीवन के सुख दुःख
ढह जाता है पूरा मकान।
सुख दुख की सच्चाई को खोलकर रख दिया है। आप बहुत गहनता के साथ लिखते हैं। यह उत्तम साहित्यिक गुणप्रभा है।
एक टिप्पणी भेजें