बुधवार, 15 जून 2011

अमित स्मृति

अमित स्मृति-1

तुम कहते थे - "करो प्रतीक्षा, मैं आने वाला हूँ"
"मीठा बतरस घोल रखो, बस पीने ही वाला हूँ"
ना तुम आये, न ही आयी, कोई सूचना प्यारी.
पाठ हमारे भारी-भरकम, घुटनों की बीमारी.
वज़न अगर कम हो पाये तो चलना सहज हुवेगा.
जिन नयनों के सम्मुख गुजरे, उठकर चरण छुवेगा.
इसीलिए उपवास कर रहे 'पाठ' छंद वाले अब.
वज़न घटेगा, होगा दर्शन अमित, खुलेगा व्रत तब.


अमित स्मृति-2

मुझे बताओ प्रियवर मेरे, कब तक मन का उलट करूँ?
'आना' कहकर मुकर गये, कैसे फिर से आमंत्रण दूँ?
'घर आओ, घर आओ मेरे' हृत-स्वर को मैं बुलत डरूँ.
'अब आये, अब आये प्रियवर' - 'नयन-पलक'-गन बुलट भरूँ.*
मुझ पर सब संपर्क सुरक्षित फिर भी प्रतिदिन मौन धरूँ.
ब्लॉग-जगत में बतियाने के सुख से कैसे पीठ करूँ?
_____________________

शब्दार्थ :
'नयन-पलक'-गन बुलट भरूँ = गन (पिस्तोल) में जैसे बुलट (गोलियाँ) भरी जाती हैं उसी प्रकार मैं अपने नयन के पलकों को खोलकर 'अब आये, अब आये' दर्शन लालसा को भर रहा हूँ.
बुलत = बोलते हुए


सभी विद्यार्थी ध्यान दें :

पाठशाला में शीघ्र ही परीक्षा का आयोजन किया जायेगा. सभी विद्यार्थी अपनी उपस्थिति दर्ज करायें.
तीन दिन बाद पाठ्यक्रम भी घोषित किया जायेगा.
सर्वाधिक अंक पाने वाले विद्यार्थी को पाठशाला शिक्षक अपने वर्तमान वेतन का दस प्रतिशत पुरस्कार में देंगे.

35 टिप्‍पणियां:

Smart Indian ने कहा…

... दो आरज़ू में कट गये दो इंतज़ार में ...

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

अँखियां से गोली मारे, वाली बात हो रही है। भाई अमित जी जल्‍दी आ जाइए, प्रतुल जी आपके बिना हम लोगों को उपकृत नहीं करेंगे।

ZEAL ने कहा…

आपका नेह-निमंत्रण अमित जी तक अवश्य पहुंचेगा।

Sunil Kumar ने कहा…

मुझ पर सब संपर्क सुरक्षित फिर भी प्रतिदिन मौन धरूँ.
ब्लॉग-जगत में बतियाने के सुख से कैसे पीठ करूँ?
यह सुख तो अवश्य लीजिये आपका निमंत्रण अमित जी तक पहुँच जायेगा

Unknown ने कहा…

आपके काव्य को सरल कर रहा हूँ चर्चित शब्दों में
भेज रहा हूँ नेह निमंत्रण
प्रियवर तुम्हे बुलाने को
हो मानस के राज हंस
तुम भूल न जाना आने को
अमित जी जरूर आएंगे

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर नेह निमंत्रण रचा है आपने.....

एक बेहद साधारण पाठक ने कहा…

कुछ दिनों पहले ई मेल किया था .... आजकल बेहद "व्यस्त" हैं पता चला ..... हम सभी की यही कामना है की वे जल्दी ही "मस्त" हो कर आपकी कक्षा में पढने आएँ ...

एक बेहद साधारण पाठक ने कहा…

अमित भाई,
आप जब भी आएँ ..... मेरे ब्लॉग पर हमेशा की तरह इधर उधर से जुगाड़ करके कोपी पेस्ट किये लेख (मूल लेखों के लिंक सहित) आपका इन्तजार कर रहे हैं ... पढ़ें और मुस्कुराएँ :)

दिवस ने कहा…

सुन्दर नेह निमंत्रण...अमित जी को आना होगा...

सुज्ञ ने कहा…

गुरुजी,

अमित जी के लिए इतनी विरह वेदना, विरही हृदय से नेह-निमंत्रण दिया है तो अमित जी को आना ही पड़ेगा।
आपने हमारी भी उत्कंठा बढा दी है। इन्तज़ार तो हमें भी है अपने ब्लॉग पर।

Amit Sharma ने कहा…

गुरूजी
अभिभूत हूँ आपके वात्सल्य वर्षण से, पर चेला अभी वशीभूत है विभिन्न जंजालों को सुलझाने में. कल "सुग्यजी" से ज्ञान प्राप्त हुआ की गुरूद्वारे पहुँचो जल्दी से, फिर भी अब पहुंचा हूँ
गुरुदेव आपका ब्लॉग ज्ञान-निर्झरणी हैं जिसका प्रवाह सतत गतिशील ही रहे. किसी राग-रोध के कारण गति शिथिल होने पर इसके विभिन्न घाटों पर आने स्नानोत्सुक जन निराश हो सकतें है.
व्यस्ठी के स्थान पर समस्ठी के हितार्थ पाठशाला की निरंतरता बनी ही रहनी चाहिये.

प्रणाम सहित
अमित

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

AADARNIYE PRATUL JI,

SAADAR NAMASKAR!

KYA BAAT HAI ..SIR JI !

AAP KI PUKAAR SUN LI GAI HAI KYONKI AMIT JI AA CHUKE HAIN.


VAISE YE RACHNA BEHAD PASAND AAYI.
ISKE LIYE AAPKO BADHAAI!

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

बशिष्ठ जी बतियाने को पीठ मत दिखाइए मौन रोज तोडिये -नयन गन --ह हा सुन्दर शैली -मुबारक हो

मुझ पर सब संपर्क सुरक्षित फिर भी प्रतिदिन मौन धरूँ.
ब्लॉग-जगत में बतियाने के सुख से कैसे पीठ करूँ?
शुक्ल भ्रमर 5

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ अनुराग जी,
राग करने वाले आरजू और इंतज़ार के बीच दोलित होते ही हैं.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ अजित जी,
मेरे मन में एक चित्र था .. रिवोल्वर से सूट करने का... तब एक सम्यक चित्र भी उभरा.... जब भी कहीं आते-जाते, या फिर ब्लॉग-जगत में टहलते हुए 'अमित' नाम लिखा देखता तो आँखें तुरंत उसे कैच करतीं.. बुलेट-सी तीव्रता से... उसी रूपक को शब्द मिल गये 'अमित-स्मृति' में............. जहाँ तक छंद-पाठों की बात है... वे तो एक विशेष तैयारी चाहते हैं. लेकिन कविताओं के लिये ऎसी किसी विशेष तैयारी की जरूरत नहीं लगती.. कार्यालय आते-जाते स्मृतियों में खोया रहता हूँ.. 'बस' में कहीं भी सुकून से बैठने की जगह मिलती है तो समझिये ... एक 'स्मृति' स्थायित्व ले लेती है मतलब लिपिबद्ध हो लेती है.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ दिव्या जी,
उपाय तो सीधे संपर्क के भी होते हैं... लेकिन ब्लॉग माध्यम सर्वोत्तम लगने लगा है.

अब मेरा हृदय अपने स्नेहिल पात्रों को सार्वजनिक करने में सुख पाता है.

मत-वैभिन्य के चलते 'विवाद' के तमाम बहाने हो सकते हैं.... जहाँ मस्तिष्क क्रियाशील होंगे... वहाँ विमर्श से उपजे भाव (.......) भी फलेंगे-फूलेंगे.

लेकिन हृदय भूमि में पड़े प्रेम के बीज गुप्त रूप से कब अंकुरित हो जाएँ... कुछ कहा नहीं जा सकता.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ सुनील जी,
आपकी शुभकामनाओं और विश्वास ने ही अमित जी का दर्शन करवा दिया है. ये हृदय कब किस स्नेह-बीज का अंकुरण कर दे ... कब किसके लिये उपयुक्त जलवायु बन जाये... कुछ कहा नहीं जा सकता.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ कुश्वंश जी,

आपने मूल-भाव को पहचानकर प्रचलित छंद को भी उदघाटित कर दिया...

आपकी शुभ-इच्छाओं का असर कुछ समय बाद हो ही गया. अब निश्चिन्त हूँ... छंद-पाठ की तैयारी में हूँ.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ डॉ. मोनिका जी,
अपने प्रियवरों की जब साक्षात मौजूदगी नहीं होती तो कल्पना में ही बतिया लेता हूँ. वैसे मौन-व्रत काफी किये हैं. लेकिन मन को आज तक मौन नहीं रख पाया.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ ग्लोबल जी,
आपके बारे में तीन-चार महीने पहले अमित जी से बात हुई थी. आपने भी अपने वास्तविक दर्शन को सुरक्षित रखा हुआ है... उसे पाने की इच्छा भी होती है.
आपके वैचारिक-दर्शन और वो भी घनीभूत रूप से कई बार हुए हैं... कोपी-पेस्ट और लिंक देने में आप सिद्धहस्त हैं... लेकिन अमित जी चाहते थे कि विचारोत्तेजक विषयों पर खुद 'गौरव अग्रवाल' क्या विचार रखता है? उसे जानने की इच्छा ने ही उन्हें कभी-कबाह कटु टिप्पणी देने को बाध्य किया.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ दिवस जी,

अमितजी व्यवसाय और घर के कार्यों में रात और दिन भूल गये हैं. दिवस बीतने पर कुछ देर के लिये ही झलक मिल पाती है.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ सुज्ञ जी,

सब आपका ही किया धरा है... मुझे आप अधिक समय 'कर्तव्य-अनशन' करते देख नहीं सकते और दूसरी तरफ प्रिय को गुप्त सन्देश भेजकर दर्शन को उकसाते भी हो "जल्दी चलो... कोई मर रहा है तुम्हारे दर्शनों को... हठ किये बैठा है... कर्तव्य न निभाने का हठ है."

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ विरेन्द्र जी,
जब से 'अमित' ने झलक दी है... मुस्कान विदा नहीं ले रही होठों से.
बस मत पूछिए ....... अब तक न जाने कितनी बात कर चुका हूँ उनकी कल्पित मानस छवि से. कुछ भाव तो कविताबद्ध हो रहे हैं... लेकिन मोह पर विराम लगाने का निर्देश है... जानता हूँ. अब फिर कभी कविताई होगी.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ सुरेन्द्र जी,

मन भ्रमर है... आप तो जानते ही होंगे.. भ्रमर ही भ्रमर-स्वभाव को जान भी सकता है...मेरे प्रेम, मेरी विवशता को आप से बढ़कर कौन समझेगा आज़?

Dr Varsha Singh ने कहा…

मुझ पर सब संपर्क सुरक्षित फिर भी प्रतिदिन मौन धरूँ.
ब्लॉग-जगत में बतियाने के सुख से कैसे पीठ करूँ?

प्रतुल जी ,वाह..क्या खूब लिखा है आपने। लाजवाब है.....

sm ने कहा…

beautiful poem

Kailash Sharma ने कहा…

मुझ पर सब संपर्क सुरक्षित फिर भी प्रतिदिन मौन धरूँ.
ब्लॉग-जगत में बतियाने के सुख से कैसे पीठ करूँ?

बहुत खूब!....अद्भुत नेह निमंत्रण..आभार

Asha Joglekar ने कहा…

कहँ हो अमित जी अब आ भी जाओ यहां तो नैनो से
गोलियाँ चलने लगी हैं । लगता है कि आ गये ।

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

रोचक काव्यात्मक प्रस्तुति....

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ डॉ. वर्षा जी
सराहना कर आपने पाठशाला में आनंद की वर्षा कर दी.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

प्रिय एसएम् जी,

अभी तक एफएम् ही अस्तित्व में था अब एसएम् का भी प्रादुर्भाव हुआ.

चलिए अबसे हमारा प्रसारण एसएम् पर भी हुआ करेगा. ... :)

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ आदरणीय कैलाश जी,

कभी-कभी लगता है कि व्यक्तिगत कविताओं पर अन्य के प्रेम से उपेक्षित ही रह जाऊँगा.... लेकिन आपके स्नेह से मन फुल्लित हो उठा.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ आशा जी,

तोप लेकर गोले छोड़ने के फिराक में हूँ बस एक बार फिर से दिख जाएँ... छोडूँगा नहीं.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ डॉ. शरद जी,

स्वभाव आपका शीत भरा
संवादों में संगीत भरा.
जिह्वा पर तेरे सरस्वती
सरगम की माने परम्परा.

रविकर ने कहा…

http://charchamanch.blogspot.com/

आज आप चर्चा मंच पर हैं ||