शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

पिछले पाठों पर एक नज़र ....

अब तक के पाठों और सवाल-जवाबों में मेरी त्रुटियों को पकड़ने की काफी कोशिश हुई. यह एक अच्छी परम्परा है कि त्रुटियों को इंगित किया जाये. लेकिन बहुतों के द्वारा गलतियों का पुरजोर विरोध न करने का कारण यही लगा कि या तो विषय के पंडित शालीनतावश नवोदित शिक्षक को सार्वजनिक रूप से बौद्धिक संवाद में चित नहीं करना चाहते, या फिर वे स्वयं को अल्पज्ञ मानकर (चुपचाप) पीछे हट जाते हैं... यह एक ग़लत परम्परा है जो स्वस्थ संवाद करने से रोकती है. 

पिछले पाठों की दोहरावट में मुझे अपनी कई त्रुटियाँ पकड़ में आयीं. अब तक मैंने मात्रिक-विधान और गण-विधान को समझाने के लिये कुछ उपाय किये. फिर भी कई शब्द ऐसे हैं जिनका मात्रिक विधान करते समय हम उलझ जाते हैं. ये किस प्रकार के शब्द हैं? और ये कैसी उलझन होती है? आज हम इन्हें ही जानेंगे. 

प्रायः हम संयुक्त व्यंजनों में उलझते हैं. हम जानते हैं कि संयुक्त व्यंजन में जो व्यंजन अर्ध रूप से आगे रहता है वह अपने से पूर्व व्यंजन को गुरु कर देता है. यथा 'अस्त' शब्द में 'अ' वर्ण गुरु हो जाएगा क्योंकि उसके बाद वाले वर्ण 'त' में 'स्' अर्ध रूप में जुड़ा हुआ है. 

कुछ शब्दों में अर्ध वर्ण स्पष्ट समझ में आते हैं जो खड़ी पाई वाले होते हैं. मतलब जिनकी बनावट में पाई [ | ] का प्रयोग होता है. ऐसे वर्ण अर्ध होते समय अपनी पाई [ | ] गँवा बैठते हैं अथवा आधे होकर साफ़-साफ़ नज़र आते हैं. यथा : क और फ वर्ण. लेकिन समस्या वहाँ आती हैं जहाँ वर्ण की बनावट संयुक्त होते समय पूरे वर्ण को ही बदलकर रख देती है. 
यथा : 'ब्राह्मण' 'क्षत्रिय' 'वैश्य और 'शूद्र'  ऐसे शब्द हैं जिनमें यदि हम गुरु और लघु वर्णों को तार्किक रूप से पहचान पायें तो काफी कुछ स्पष्ट हो जाएगा. 

पहले लेते हैं 'ब्राह्मण' 
इस शब्द को एक बार पूरा खोल देते हैं : [ नोट :  ^ चिह्न को हलंत मानकर ही चलें ]
 ब् + र् + अ + अ + ह् + म् + अ + ण ् + अ
इसके बाद इसे संक्षेप करते हैं जिससे गुरु और लघु वर्ण पहचान में आयें :
 ब् + र् + आ + ह् + म् + अ + ण ् + अ
इसके बाद कुछ और संक्षेप करते हैं जिससे गण-विधान करना सहज होता दिखायी दे : 
ब् + रा + ह् + म + ण
वास्तविक शब्द है : ब् + रा + ह् + म + ण= ब्राह्मण
लेकिन जो शब्द मात्रिक और गण विधान करने के लिये लेंगे,  वह है : 
रा + ह् + म + ण = राह्मण 
अब 'ब्राह्मण' शब्द में ब् और ह् वर्ण हैं जो अपने से पूर्व व्यंजन को गुरु करते हैं. लेकिन ब् से पूर्व कोई व्यंजन न होने से वह किसी को गुरु नहीं करेगा. अतः इस समय उसका होना व्यर्थ है. 
'रा' वर्ण पहले से गुरु है लेकिन 'ह' वर्ण का प्रभाव से भी वह गुरु हो सकता था. अब ऐसे में जो पहले से गुरु है वह गुरु ही रहेगा महागुरु नहीं हो जाएगा मतलब उसकी २ मात्राएँ ही गिनी जायेंगी.

अब 'क्षत्रिय' आदि शब्द को भी खोल देते हैं : 
क्षत्रिय = क् + श् + अ + त् + र + इ + य् + अ  =  क्ष् + अ + त्र् + इ + य् + अ
वैश्य = व् + अ + इ + इ + श् + य् + अ  =  व् + अ + ई + श् + य = व् + ऐ + श् + य
शूद्र = श् + उ + उ + द् + र् + अ  =  श् + ऊ + द् + र =  श् + ऊ + द्र* 
अब 'शूद्र' शब्द में 'द्र' वर्ण में 'द' अर्ध है जो अपने से पहले वर्ण को गुरु करना चाहिए. लेकिन वह पहले से गुरु है. इस कारण यह व्यर्थ हो जाता है. लेकिन एक विशेष अंदाज-ए-बयाँ पर यह स्वयम् गुरु हो जाता है जब हम अंग्रेजी प्रभाव में आकर 'शूद्र' को 'शूद्रा' कहने लगते हैं. जैसे 'योग' को 'योगा' और 'राम' को 'रामा' कहने लग जाएँ. फिर भी अनुचित तो अनुचित ही रहेगा. 

पिछले पाठों में मुझे संगीता स्वरूप जी ने कई शब्दों में इंगित किया. जिस कारण मुझे सभी पाठ खुद पढ़ने पढ़े. अच्छा है मुझे अपने ही पाठों से सीखने को मिलेगा. हरकीरत जी ने भी राजेन्द्र जी नाम पुनः उल्लेख करके कुछ कहना चाहा था, मुझे ऐसा भ्रम है. 

पिछले पाठों में प्रयुक्त शब्दों का एक बार फिर निराकरण : 
— 'स्वप्निल' शब्द में हम केवल 'वप्निल' शब्द का मात्रिक विधान करके गण पहचानेंगे. [स^ वर्ण की अर्ध मौजूदगी इस समय बेअसर है]
— 'राजेन्द्र' शब्द वास्तव में म-गण का सदस्य नहीं अपितु त-गण का सदस्य है. किन्तु राजेन्द्र' शब्द यदि अपने बाद वाले शब्द 'स्वर्णकार' के साथ लिखा जाएगा तो वह म-गण में आ बैठेगा. 'राजेन्द्र' शब्द अकेला रहेगा तो वह 'ताराज' है और यदि 'स्वर्णकार' के साथ बोला जाएगा तो वह 'मातारा' है.
— 'प्रतुल' शब्द पर वैसे तो 'स्वप्निल' शब्द पर लगा सूत्र ही लगाया जाएगा. [मतलब 'प्' वर्ण की अर्ध मौजूदगी इस समय बेअसर होगी, और रतुल शब्द का मात्रिक विधान करके गण पहचानेंगे] अर्थात यह शब्द न-गण वर्ग का है न कि भ-गण वर्ग का जैसा कि पूर्व में कहा गया था.  

कविता लेखन में मात्रिक विधान के समय में कुछ उलझाव भरे शब्द : 
'स्क' 'स्व' 'स्त' या फिर 'रेफ' वाले वर्णों में ऐच्छिक मात्रिक विधान किया जा सकता है. 
उदाहरण : 
— 'स्तर' शब्द का 'लघु लघु' मात्रिक विधान के अलावा 'इस्तर' उच्चारण करके 'गुरु लघु लघु' [भानस] का आभास भी मिलता है.
— 'स्वर' शब्द का 'लघु लघु' मात्रिक विधान के अलावा 'सुवर' उच्चारण करके 'लघु लघु लघु' [नसल] का आभास भी मिलता है. 
— 'स्कूल' 
स्कूल [21] शब्द का उच्चारण जैसे इस्कूल (या इसकूल) किया जाता है. ऐच्छिक मात्रिक विधान होगा : 221 = गुरु गुरु लघु 
स्त्री [2] शब्द का उच्चारण जैसे इस्त्री किया जाता है. ऐच्छिक मात्रिक विधान होगा : 22 = गुरु गुरु  

क्र ग्र ज्र ट्र ड्र द्र त्र प्र फ्र ब्र भ्र म्र ल्र श्र स्र ह्र आदि वर्णों का प्रारम्भिक उच्चारण कविता लेखन में यदा-कदा ऐच्छिक मात्रिक विधान की चाहना करता है. 
क्रम, ग्रह, ट्रक, ड्रम, द्रुम, प्रभु, श्रम आदि वर्ण लघु-लघु वर्ण वाले शब्द हैं किन्तु छंद की माँग पर यह विधान मुख के विशेष उच्चारण पर बदल भी सकता है. 
यथा : क्रम का किरम, ग्रह का गिरह, ट्रक का टिरक, ड्रम का डिरम, द्रुम का दिरुम, प्रभु का पिरभु, श्रम का शिरम उच्चारण करना कविता पाठ (सुनाने) में तो छूट दे देता है लेकिन उसके लिखित रूप में क्षम्य नहीं कहा जाता. अतः इन उलझावों से बचने के लिये ही ऐच्छिक मात्रिक विधान की आवश्यकता पड़ती है. छंद के लिखे जाने और उसके सुनाये जाने में अक्सर कवि छूट लेता रहा है. इसे हम बीच का रास्ता कह सकते हैं. 

........ ये समस्त उलझन मुख उच्चारण के कारण पैदा हुई है. अतः इसमें छंदविदों के मार्गदर्शन की आवश्यकता मुझे आज भी महसूस होती है. पिछले पाठों में की गयी त्रुटियों से मेरा गुरु अहंकार धरातल छूने लगा है.  





प्रश्न : 'ज्ञ'  वर्ण दो वर्णों से मिलकर बना है कौन-सा विकल्प पूर्णतया सही है? 
1 — ग् + य 
2 — ज् + य 
3 — ग् + ञ (च वर्ग का अनुस्वार)
4 — ज् +  (च वर्ग का अनुस्वार) 

क्योंकि समस्त आलेख बिना छंदशास्त्र और बिना छंदशास्त्री की सहायता के लिखने बैठ गया हूँ, अतः त्रुटियों के रहने की संभावना हमेशा बनी रहती है. इसलिए मेरी इस चर्चा में आप अपने मत खुलकर प्रकट कर सकते हैं. 
पिछली पोस्ट में मात्र सुज्ञ जी ही ने हास्य टिप्पणी देकर मेरी 'काव्य-क्रीडा' में सहयोग दिया. उनका उत्तर बेहतरीन हास्य का शिष्ट उदाहरण कहा जाएगा. 

23 टिप्‍पणियां:

सुज्ञ ने कहा…

गुरूजी,

प्रश्न : 'ज्ञ' वर्ण दो वर्णों से मिलकर बना है कौन-सा विकल्प पूर्णतया सही है?

सही उत्तर है……
2 — ज^ + य
किन्तु बताएं कि उच्चारण ग्य क्यों किया जाता है।

'काव्य-क्रीडा' में हास्य का शिष्ट उदाहरण मजबूरी थी गुरूजी, मेरी पहली टिप्पणी थी और सारी शिष्टता मुझे अकेले ही वहन करनी थी। बाकी सब तो मुझ से भी अधिक शिष्ट निकले। गम्भीरता तज ही नहीं पाए। वैसे संजय जी ने सुन्दर प्रयास किया था।

ZEAL ने कहा…

.

@--पिछले पाठों में की गयी त्रुटियों से मेरा गुरु अहंकार धरातल छूने लगा है...

आपकी विनम्रता को नमन ।

.

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

पूर्व में आपके प्रश्‍न का उत्तर नहीं दे सकी, क्षमाप्रार्थी हूँ। प्रवास के कारण ऐसा हुआ है।
ज्ञान को ज्‍यान भी उच्‍चारण करते हैं और इसे ही शुद्ध कहा जाता है, कारण बताएंगे? वैसे सुज्ञजी ने बताया ही है कि ज और य से मिलकर ज्ञ बना है तो उच्‍चारण ज्‍य ही होगा।

सञ्जय झा ने कहा…

suprabhat guruji....

kaksha me baithe hain...
path padh rahe hain.....
nakal kar kitna age niklenge...


pranam.

सुज्ञ ने कहा…

गुरूजी,

'ज्ञ' वर्ण का शुद्ध उच्चारण क्या है?
जैसा कि अजित जी बता रही है 'ज्य' शुद्ध कह जाता है।
स्वामी रामदेव के वक्तव्यों मे भी वे 'ज्य' उच्चारित करते है।
साधारण 'ग्य' उच्चारण की अधिकता देखी गई है।
गुजराती 'ज्ञ' को 'ग्न' उच्चारित करते है।

इस भिन्नता के पिछे कारण क्या है?

सुज्ञ ने कहा…

प्राकृत में 'ज्ञ' वर्ण 'ण' में बदल जाता है, जैसे 'ज्ञान' को 'णाण' कहते है।
क्या ज्ञ वर्ण में 'ट' वर्ग के पंचमाक्षर की उपस्थिति है?
आपने प्रश्न में ही कहा है कि 'ज्ञ' वर्ण दो वर्णों से मिलकर बना है फिर विकल्प 3 और 4 में अनुस्वार का आगमन तीन वर्ण का संयोजन न हो जाएगा?

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

.

ज्ञ संयुक्त वर्ण का निर्माण 'ज^' और चवर्ग के पंचम वर्ण (यं) से होता है.
ज^+यं =ज्ञ
सुज्ञ जी यह ज^ और य के मेल से नहीं बना जैसा कि आपने और अजित जी समझ रहे हैं. ज^ और य के मेल से ज्य बनता है. यथा : त्रिज्या, ज्यामितीय ज्योतिआदि.
लेकिन ज^ और {जो वर्ण कंप्यूटर द्वारा बनाया नहीं जा रहा, उस वर्ण का उच्चारण रूप 'यं' है. लिपि रूप लिख पाना संभव नहीं हो पा रहा, वह स्वयं एक अनुस्वारिक वर्ण है. आप जानते ही होंगे कि प्रत्येक वर्ग में पंचम वर्ण उस वर्ग का अनुस्वार ही होता है. यथा कवर्ग का ड के मध्य में बिंदी लगाकर एक वर्ण बनता है. जिसे कंप्यूटर में बना पाना असंभव है. इसलिये 'गं' रूप लिख रहा हूँ. और चवर्ग के पंचम वर्ग को भी बना पाना असंभव हो रहा है. इसलिये 'यं' रूप दे रहा हूँ.}


बाक़ी बातें बाद में... बाक़ी प्रश्नों के उत्तर घर पहुँचकर. अभी घर से बाहर हूँ.

.

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

प्रतुल जी
आप किस फोण्‍ट से काम करते हैं? ङ लिखा जा रहा है और ् में तो कोई कठिनाई ही नहीं है।

सुज्ञ ने कहा…

गुरुजी,

यह तो नई जानकारी है, 'हिन्दीराईटर' इन पञ्चम वर्ण की सुविधा दे रहा है। अङ्ग में आप ङ देख सकते है।

तो ज्ञ में 'ञ' च वर्ग का पञ्चमाक्षर 'ञ'स्वर सहित है या ञ् हलंत अर्थात् अनुस्वार?

सुज्ञ ने कहा…

हाँ!!

हिन्दीराईटर की बोर्ड से ज् + ञ् (j~n)टाईप करने पर 'ज्ञ'ही बनता है और GY टाईप करने पर भी ज्ञ बनता है जो उसके की-बोर्ड पर दर्शाया गया है।

आपका कथन सही है।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

सुज्ञ जी, अजित जी,
आपने मेरी दिक्कत को समझ लिया. मुझे वह उपाय बतायें जिससे मैं जो कहना चाहता हूँ वही कह पाऊँ इसलिये मुझे इस समय ऐसा फॉण्ट चाहिए जिन वर्णों आप सहजता से बना लेते हैं वो मैं भी बना पाऊँ .
— एक तो मुझे विराम चिह्न बनाने में परेशानी है.
— हलंत चिह्न, कवर्ग और चवर्ग के पंचमाक्षर को न बना पाना मेरी परेशानी काफी समय से रही है.
... अजित जी ने उन चिह्नों के दर्शन कराके मुझे प्रसन्न कर दिया, वैसे संस्कृत ब्लॉग पर इन चिह्नों को देखा तो था लेकिन इसे खोजने के प्रयास ही नहीं किये, आलस्य करता रहा. आज़ जरूरत लगी तो कॉपी-पेस्ट करने की सोच रहा था. लेकिन उसमें समय अधिक लगने से आलस्य करता रहा. जितना समय मिलता है सोचता हूँ - केवल मित्रों को पढ़ लूँ, कुछ अपनी कह लूँ कुछ आप मित्रों से बतिया लूँ. बस.. इस कारण ही आलस्य घेरे था. अब कृपया उन उपायों को बताकर कृपा करना जिससे मैं अपनी अभिव्यक्ति में विवशता महसूस न कर पाऊँ.

आपका बेहद उपकार है कि आपने मेरी परेशानी समझा और मुझे राह सुझायी. मैं फिलहाल कॉपी-पेस्ट करके काम चलाता हूँ.

अंतिम बात.....
आपके प्रश्नों के उत्तर मेरे पास हैं ..... मुझे ऐसा लगता है........
फिर भी एक बार फिर चिंतन कर लूँ और उस फॉण्ट को खोज लूँ जिसमें अपनी बात सहजता से कह पाऊँ.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

सुज्ञ जी,

अरे वाह, आनंद आ गया.... मैंने जब संस्कृत फॉण्ट को टाइपिंग के लिये चुना तो वे वर्ण भी दिख गये जो अब तक नहीं दिख रहे थे। अब तो विराम भी मेरे पास है और अब हलन्त को ढूँढ रहा हूँ। लेकिन सभी चिह्न एक फॉण्ट में नहीं बन पा रहे हैं। मैं कभी संस्कृत सलेक्ट करता हूँ तो कभी हिन्दी। लगता है आज़ मेरा काफ़ी समय सीखने मे निकलेगा।

सुज्ञ ने कहा…

प्रतुल जी,

आप देवनागरी टाईप करने के लिये टूल कौनसा इस्तेमाल कर रहे है?

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

सुज्ञ जी,
मैं ब्लॉग पोस्ट और टिप्पणी लिखने के लिये पहले जी-मेल के कम्पोज़ मेल में हिंदी टाइप के लिये 'हिंदी' सलेक्ट कर लेता हूँ फिर हिंग्लिश लिखना शुरू कर देता हूँ वह हिंदी में बदलता चलता है... क्या कोई और उपाय भी है? टूल से क्या मतलब है? हिन्दी टाइप करने का क्या कोई मनचाहा औजार भी है?

सुज्ञ ने कहा…

हां, मनचाहा औजार भी है, आप सीधे कहीं भी देवनागरी टाईप कर सकते है। पाबला जी नें अपने ब्लॉग 'ब्लॉग बुखार' में किसी पोस्ट में विस्तार से लिखा था। मुझे वह पोस्ट नहीं मिल रही, मैं वही लिंक देने की सोच रहा था।

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

प्रतुल जी, आप यदि आईएमई सेटअप डाउनलोड कर लें तो आप बहुत ही आसानी से हिन्‍दी में कार्य कर सकेंगे। इसमें कृतिदेव के फाण्‍ट से जो टाइप करते हैं उसकी भी सुविधा है। इसके लिए आप राजभाषा की साइट पर जाकर देखें।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

किन्तु बताएं कि.. उच्चारण ग्य क्यों किया जाता है।
@ ज्+ ञ= ज्ञ वर्ण का उच्चारण 'ग्य' क्यों ? इस बात पर दो-तीन दृष्टियों से विचार किया।
— पहला कारण मुख सुविधा संबंधी प्रतीत होता है। भाषा विज्ञान अध्ययन के समय संस्कृत तत्सम शब्दों में वर्ण परिवर्तन का स्वभाव बड़ी मात्रा में देखा देखा जाता है। पहले हम एक बार वर्णमाला के व्यंजन वर्गों में वर्णों के स्थान पर गौर कर लेते हैं। उसके उपरान्त उनके उच्चारण स्थानों पर ध्यान देंगे तब कई बातें स्पष्ट हो जायेंगी।
कवर्ग के व्यञ्जन — क् / ख् / ग् / घ् / ङ्
चवर्ग के व्यञ्जन —च् / छ / ज् / झ् / ञ
टवर्ग के व्यञ्जन — ट् / ठ् / ड् / ढ् / ण
तवर्ग के व्यञ्जन — त् / थ् / द् / ध् / न्
पवर्ग के व्यञ्जन — प् / फ् / ब् / भ् / म्

चवर्ग के दूसरे व्यंजन 'छ' से शुरू 'छाल' शब्द — मुख सुख (उच्चारण सुविधा) के कारण बदल जाता है — कवर्ग के दूसरे व्यंजन 'ख' से शुरू होने वाले 'खाल' शब्द में।
चवर्ग के तीसरे व्यंजन 'ज्' से शुरू [ज् + ञ] 'ज्ञान' शब्द — मुख सुख (उच्चारण सुविधा) के कारण बदल जाता है — कवर्ग के तीसरे व्यंजन 'ग्' से शुरू [ग् + य] होने वाले 'ग्यान' शब्द में.
जैसे 'छाल' और 'खाल' अपने रूप के अनुसार ही बोले जाते हैं. लेकिन 'ज्ञान' अपने रूप के अनुसार उच्चरित केवल संस्कृत पाठियों की शालाओं में ही हो रहा है. भक्तिकाल में कबीरदास जैसे सन्त कवियों तक ने ज्ञान को 'ज् ञान' न उच्चरित करके 'ग्यान' ही बोला.

सुज्ञ जी, विस्तृत चर्चा पाठ रूप में करना सही रहेगा... भाषा वैज्ञानिक कारणों के साथ तार्किक उदाहरणों समेत देना ठीक होगा. थोड़ी व्यस्तता चल रही है. इस कारण विलम्ब हो रहा है...

सुज्ञ ने कहा…

आभार, गुरूजी,

सन्तोष प्राप्त हुआ। अरे हाँ ष को ख में बदलते देखा है। प्राकृत में तो यह वर्ण बदलना आम है।

Arvind Mishra ने कहा…

दोहरावट या दुहरावट कौन सटीक है ?

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

@ अजित जी, मैंने आज हिंदी IME सेटअप डाउनलोड कर लिया है. और उसमें संस्कृत के कुछ जटिल शब्द बनाना सीख रहा हूँ. उसमें अभ्यस्त होकर ही उसका प्रयोग करूँगा.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

दोहरावट या दुहरावट कौन सटीक है ?

@ अरविन्द सर, मैंने काफी पहले एक व्याकरण की पुस्तक पढी थी. सरस्वती प्रकाशन की 'मानक हिन्दी व्याकरण'. मुझे अच्छे से ध्यान है उसमें कुछ शब्दों के दो-दो रूपों को (वर्तनियों को) मान्यता दी हुई थी. जिनमें दोहरावट और दुहारावट शब्द भी थे. कुछ अन्य थे : गिलास/ग्लास, दोबारा/दुबारा, बर्तन/ बरतन, वापिस/वापस, बर्दाश्त/बरदाश्त, कुर्सी/कुरसी, बिलकुल/बिल्कुल, दुकान/दूकान, सर्दी/ सरदी आदि कई अन्य शब्द भी थे जो अभी याद नहीं आ रहे हैं.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

... हाँ ष को ख में बदलते देखा है। प्राकृत में तो यह वर्ण बदलना आम है।

@ सुज्ञ जी, अभी मुझे संस्कृत से प्राकृत के सफ़र पर जो बदलाव आते दिखे हैं, उनपर मेरा मंथन होता रहता है. जब कुछ खोज निकालूँगा तब जरूर इस विषय पर आपसे विमर्श करूँगा. तब तक तो जो थोड़ा-बहुत जानता हूँ वह आपके सम्मुख लाता हूँ. बहरहाल अभी मैं भी इस क्षेत्र में विद्यार्थी की तरह जानने में लगा रहता हूँ.

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

प्रतुल जी, बधाई। यदि आप हिन्‍दी टाइप राइटर पर टाइप करने के अभ्‍यस्‍त हैं तो भी आईएमई सेटअप आपको सुविधा देता है। जिससे आपको दोबारा टाइप सीखने की आवश्‍यकता नहीं पड़ती।