मंगलवार, 2 नवंबर 2010

तुम एक बार फिर से आवो

तुम एक बार फिर से आवो 
कह दूँगा सब मैं झिझक खोल 
अटके जिह्वा पर शब्द कई 
फूला जाता मेरा कपोल. 


संकोच नहीं कहने देता 
लक्ष्मी, तुमसे दो मधुर बोल. 
ओ चारु देवि! करते कर्षित 
विस्फारित लोचन श्याम लोल. 


मन सुखी नहीं रहने देता 
ओ सुन गणेश ग..ग गोल-गोल. 
उपचार कोई-सा बतला दो 
बढ़ जाय आपसे मेलजोल. 


मेरा लक्ष्मी-गणेश पूजन 
पूजन में भक्त समर्थ से माँगता है, मैंने भी माँगा है.

अरे! मेरे मूर्तिपूजक मन ने मुग्धावस्था में कुछ माँगा ही नहीं. केवल दर्शन और मेलजोल बढ़ाने की बात कहकर ही रह गया.
क्या करूँ? जब वे होते हैं तो कुछ माँगना याद नहीं रहता. दर्शन से ही मन और पेट दोनों भर जाते हैं. इसी कारण मैं उनका बार-बार आवाहन करता रहता हूँ ......... "तुम एक बार फिर से आवो" कहकर.

7 टिप्‍पणियां:

ZEAL ने कहा…

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प्रतुल जी,

साल में एक ही बार आता है ऐसा अवसर। हाथ से मत जाने दीजिये। लक्ष्मी से कैसा संकोच , सभी मांगते हाथ पसार। और लक्ष्मी क्या जानती नहीं, जिह्वा पर अवरुद्ध क्या है और कपोल फूले हुए क्यूँ हैं। शायद सभी के साथ कमोबेश ऐसी ही स्थिति रहती है।

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नहीं जानती कविता को सही सन्दर्भ में समझा या नहीं। पर यदि कोई त्रुटी हुई तो पुनः आउंगी भूल सुधार के लिए।

पुनः एक उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई एवं आभार ।

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Majaal ने कहा…

हमारे देखे तो ऐसे भाव या तो कविता करते समय आते है या ऐसी कविता पढ़ते समय ... बाकी तो कमबख्त जिंदगी ख्वाहिशों से भरी हुई है ....

लिखते रहिये ...

Avinash Chandra ने कहा…

संकोच नहीं कहने देता
लक्ष्मी, तुमसे दो मधुर बोल.
ओ चारु देवि! करते कर्षित
विस्फारित लोचन श्याम लोल.

क्या कहूँ? ऐसे मधुर बोल, हर्ष हुआ...

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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मजाल जी
आप कम शब्दों में पूरी समीक्षा कर जाते हैं.

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PRATUL ने कहा…

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दिव्या जी,
आप हमेशा सही समझते हैं.
मैं ही हूँ कि कुछ भी समझा देता हूँ.
कहते हैं कि रामजन्म से पूर्व ही कवि वाल्मीक ने रामायण लिख दी थी. कैसे संभव है? उस कृति के अनुरूप ही राम के जीवन का समस्त घटनाक्रम घूमा है.
क्या वर्तमान में भी ऐसा मान सकते हैं? कविताओं के अर्थ वही होते हैं जो पहली बार में समझ में आते हैं. हाँ यदा-कदा ही किसी से अर्थ लगाने में भूल हो जाती है.
अर्थ उदघाटन होते ही मैं कभी अपने बचाव में तो कभी रस-छंद-अलंकार का पाठ पढ़ाने के व्याज से पोस्ट और प्रतिउत्तर देता रहता हूँ.

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Unknown ने कहा…

pratul ji.aapko bahut dinon se e-mail kar raha hun.lekin gmail men aapke dwara diye gaye email pata per email nahin le raha hai. kya baat hai mujhe email karengen.Idhar bahut dinon se blog disturb chal raha hai. kya aaplogon ko bhi yaisa hin lagta hai. Suchit karenge. Atyant hin aadar ke saath , Aapka hin - jeetendra jeet

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

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जिंतेंद्र जी,
नमस्ते. आपसे अभी मैं पूरी तरह परिचित नहीं हो पाया हूँ. आपका मैं अनुयायी तो हो गया लेकिन आप अपना प्रवाह थामे हुए हैं. आपका यह मुझे प्रथम पत्र मिला है. ब्लॉग डिसटर्ब .... आपकी समस्या क्या तकनीकी सम्बन्धी है या फिर किसी अन्य तरह की?... स्पष्ट नहीं हो पा रहा है.
आज से हम इस e-mail पर ही बात करेंगे. ठीक है. आप अपने विषय में कुछ और बातें लिखिएगा. आयु, शिक्षा, आदि.. आवास आपका गाजियाबाद है. आप क्या-क्या रूचि रखते हैं. मैं किस तरह आपसे जुड़ सकता हूँ. आदि प्रश्न मन में हैं. ..............
शुभकामनाओं के साथ .....

आपका 'प्रतुल'

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