सोमवार, 1 नवंबर 2010

प्रेम-पत्र

ए ! दिन पर दिन बीते जाते
पर तुम ना मेरे घर आते
मैं जोड़ रही तुमसे नाते
पर तुम मुझसे क्यों घबराते.

सूरज से बोल रहीं रातें
मैं आती हूँ करने बातें
पर मेघपटल पर प्रेम-पत्र
तुम छोड़ यहाँ से भग जाते.

भैया-चंद तुमसे दिव लेकर
मुझ पर सुन्दरता बरसाते
पर एक बार भी मेरे घर
तशरीफ नहीं तुम फरमाते.


दिव — प्रकाश

8 टिप्‍पणियां:

Manish aka Manu Majaal ने कहा…

दिनकर इसलिए नहीं है आते,
ताकि कवि कल्पना जागे,
और इस विषय पर रच कर फिर वो,
ऐसी रचना हमे सुनादे ...

सुज्ञ ने कहा…

गुरुजी,

यह विनंती किससे?

Satish Saxena ने कहा…

रहस्यमय पत्र ....

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

..

मजाल जी
आपकी प्रतिक्रिया एकदम सटीक.

सुज्ञ जी
बात उस समय की है जब मैं ढलते सूर्य को देख रहा था. और रात दूसरे छोर [पूर्व दिशा] से आवाज लगा रही थी ....... अये सूरज! ज़रा सुनना तो, लेकिन सूरज था कि लजाकर भागा जा रहा था. वह रोज की तरह मेघ की मेज़ पर अपने प्रेम-पत्र को रखकर चला जा रहा था. लाल रंग प्रेम का प्रतीक है सो बादल भी रक्त-रंजित हो गये थे. रात ने दूर से ही कहा ... दिन-पर-दिन बीत रहे हैं लेकिन तुम मुझसे मिलने एकबार भी नहीं आये. मैं तो तुमसे प्रेम का संबंध जोड़ना चाहती हूँ. लेकिन तुम हो कि हर बार की तरह इतना घबरा रहे हो कि जैसे वह प्रेम न हुआ कोई अपराध हो गया.
तुम्हारे प्रकाश [चाहत] को ही मेरे भैया चंद्रमा ने मुझ तक हमेशा पहुँचाया है. एक प्रकार से मैं तुम्हारी रोशनी के कारण ही चाँदनी रात कहलाती हूँ. कुछ लोग श्रेय बेशक चन्द्रमा को देते हैं लेकिन मैं हमेशा से जानती हूँ कि तुम ही वो हो जो मुझे प्रेम करते हो. और मैं तुम्हारी चाहत को लेकर ही आज तक जीवित हूँ.

सतीश जी,
प्रेम-पत्र का रहस्य उदघाटित हो गया है. अब मैं अगले रहस्य निर्माण में लग रहा हूँ.

..

बेनामी ने कहा…

अच्छा हुआ मेरे आने से पहले रहस्य खुल गया, वरना फिर मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ता और आप फिर से कहते की हम यहाँ अपने ब्लॉग के प्रचार प्रसार के लिए आते हैं....

VICHAAR SHOONYA ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता और मजाल जी की बात से पूरी तरह से सहमत.

सञ्जय झा ने कहा…

ati sundar vaw vivechan....


pranam.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

..
निशानाथ, रजनीपति जैसे पुराने कई संबोधनों से लगता है कि चन्द्रमा को रात्रि का पति या प्रेमी ही माना जाता है.
मेरा मानना है ..........
मनःस्थिति और दृष्टिकोण भिन्नता के कारण प्रकृति के उपादानों के बीच भी संबंध भिन्न-भिन्न आरोपित किये जा सकते हैं.
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एक भावुक तर्क, जिसके हाथ-पाँव नहीं, फिर भी चलने की कोशिश में है :

"अन्धकार के परिवार में जो रहते हैं वे परस्पर भाई-बहिन ही तो हुए.
चन्द्रमा, तारे, उल्काएँ, निशा (काली रात), राका (गोरी रात), अमा, पूर्णिमा आदि सबके सब उस परिवार के सदस्य हैं.

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