होना चाहता है अब
इतस्ततः भटकने के बाद
ह्रदय का 'काम' — एकनिष्ठ.
इतराया घूमे था पहले
साधू संन्यासी बनकर
संयम हमारा — वरिष्ठ.
हुआ था सिद्ध
स्वयं की दृष्टि में भी
कुछ समय को वह — बलिष्ठ.
किन्तु, दोनों बाँह फैलाये
करता है स्वागत कौन?
नयी कल्पना का, होकर — उत्तिष्ठ.
1 टिप्पणी:
इतराया घूमे था पहले
साधू संन्यासी बनकर
संयम हमारा — वरिष्ठ.
मुझे यह सबसे प्रिय लगा... सुन्दर बिम्ब, और सच्ची उलाहना
बाकी व्याख्या करने योग्य नहीं हूँ, आनंद ले सकूँ इतना ही बस..
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