मंगलवार, 13 जुलाई 2010

तरल नयन*

सजल नयन मनहुँ सरित.
युगल पलक जनहुं पुलिन.
सजन सुमिरन नित बहित.
शिथिल तन पर मुख मलिन.
अधर हुलसत तन सिहर.
लटकत लट कमर तलक.
उर पर उग युगल कमल,
कस फिर-फिर निखिल वसन
सतत विकसित, मद शयन.
चकित पिय अवनत नयन.

[*तरल नयन — वह वर्णवृत जिसमें 4 नगण हों अर्थात 12  मात्राएँ हृस्व स्वर की हों.  प्रत्येक चरण में ऐसा हो. ]

9 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

नायक मिलनोत्सुक नायिका !

Amit Sharma ने कहा…

बाहरवीं के बाद हिंदी साहित्य का अध्यन छूट गया था, जो आपकी कृपा से फिर हो रहा है................. आभार !

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

प्रतुल जी,
आप धन्य हैं। इस पोस्ट पर किसी दूसरी पोस्ट की तारीफ़ कर रहा हों, नागवार न गुजरे आपको?
’तुम मान लिये बैठो अपना’ वाली पोस्ट सर्वोत्तम है,
य्ह पोस्ट भी बहुत अच्छी है, बधाई स्वीकार करें।

Satish Saxena ने कहा…

आज आपके बारे में, अमित शर्मा के द्वारा की गयी टिप्पणी पढ़ कर आपके पढने की उत्कंठा से इधर आया हूँ ! आपकी रचना धीरे धीरे अवश्य पढूंगा ...अतः आपका फालोअर बन रहा हूँ ! पहली रचना से ही आपकी पहुँच और पकड़ का अहसास हो गया है !
टिप्पणियों से प्रोत्साहन की आप जैसी प्रतिभा को निस्संदेह जरूरत नहीं है ! अच्छा लेखन कुछ समय में ही आपकी जगह बना लेता है यहाँ पारखी और विद्वानों की कमी नहीं !
हार्दिक शुभकामनायें !

Satish Saxena ने कहा…

एक गलती आपको बता रहा हूँ , जब भी आपकी पोस्ट के शीर्षक पर क्लिक करता हूँ "चिटठा जगत" खुल जाता है, यह किसी गलती के कारण लिंक हो गया है ...कृपया इसका सुधार करलें अन्यथा आपके ब्लाग पर टिप्पणी लोग नहीं कर पाएंगे या बहुत असुविधा होगी !

Avinash Chandra ने कहा…

अहा!!!
रोम रोम स्वच्छ हो गया.

बहुत ज्यादा अच्छा लिखते हैं आप.
साधुवाद.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

मित्र satish ji
काफी समय से ऎसी ही टिप्पणी का इंतज़ार था अंतर्मन को और आपने अपनी इस टिप्पणी से मेरे दबी और उपेक्षित इच्छा पर पानी के छींटे दिए जिससे फिर से कलम पकड़ने का बल मिल गया. कोटिशः धन्यवाद.

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

मित्र संजय जी,
आपके प्रेम को स्वीकार करता हूँ. आपकी लेखन धर्मी विविधता को पसंद करता हूँ. आपके बहुआयामी और मुखर व्यक्तित्व को सामने पाकर ही कंठ अवरुद्ध हो जाता है. आपकी पोस्टों को पढ़कर कुछ कह नहीं पाता. क्योंकि प्रशंसा अधिक कर नहीं पाता, आपके लेखन में कमी तलाश नहीं पाता. अजीब दुविधा में रहता हूँ. आपका कद इतना ऊँचा है कि सामने खड़े होने का सaहस केवल मेरे मित्र दीपचंद जी कर सकते है. वे भी काफी मुखर हैं. कभी आपके समक्ष खड़े होने का सहस जरूर करूँगा.
mukhar matlab jo kisi baat se parhej naa kare, vaise bhi parhej kamzor paachanshakti ke log karte hain. sanjay jii ye tippani mujhe aapki post par karni thi lekin himmat nahin ho paayi.

Alokita Gupta ने कहा…

kai baar padhi hai maine aapki rachna par tippani nahi karti kyunki mujhe lagta hai ki aapki rachna ko judge kar sakun itna gyan nahi hai abhi mujhme jis din ek baar padhkar aapki rachna samajh aa jayega us din comment likhungi :)