[मेरा प्रत्योत्तर]
अरी! रूठ मत मुझसे प्यारी.
भाव नहीं अपना व्यभिचारी.
तुझको ही हर कलम-वपु में
पाया मैंने है संचारी.
एक बेड* शिक्षा-व्यापारी
उनकी परि-इच्छाएँ** कुँवारी
उनके मोह जाल में मैंने
समय दिया था बारी-बारी.
लेकिन तेरी भय बीमारी
अविश्वास करती है भारी.
ह्रदय-वृक्ष के शब्द-फलों का
सार छिपाया सबसे प्यारी.
तुम मेरी स्थूल अर्चना
मैं तेरा हूँ शब्द-पुजारी.
यदा-कदा टंकण से भी मैं
तुझको पूजा करता प्यारी.
मसी-सहेली! अब तो तेरी
पूजा करते अमित-पुजारी.
कवि केवल लिपि-राह चलाता
वो ले जाते चिंतन गाड़ी.
कृष्ण और सुदामा में से
वरण करो ओ लिपि-कुमारी!
कवि तो केवल शब्द-भिखारी
तर्क-वितर्क के अमित-मदारी.
[ *बेड — BEd , **परि-इच्छाएँ — परीक्षाएँ ]
मसी-सहेली का उलाहना -----------
एहो प्रियवर! रुष्ट हूँ तुम से जाओ
बितायी कहाँ इतनी घड़ियाँ बतलाओ
निज पाणी-पल्लव की द्रोण-पुटिका में भरकर
उर-तरु के मधुर फल का सार किसे पिलाया
मैं वधु-नवेली मिलन आस में सिकुड़ी सकुचाई
भय मन में क्या उनको नगरवधू कोई भायी
भय शमन करो आस पूर्ण करो करो त्रास निर्वाण
कवि आलिंगन मसि का करो हो अमित निर्माण
[अमित जी द्वारा रचित इस कलम-उलाहने के कारण
प्रतिक्रिया भी पाणि-पल्लवों के थिरकन का परिणाम है.]
5 टिप्पणियां:
कवि के शब्दों से मसि सहेली कुछ नर्म हुयी, पर फिर भी उसकी रोष-अग्नि को शांत होने में समय लगा, पर जब शांत हुयी तो कवि से एकाकार हो गई------------------
अहो! क्या सोचा था क्या पाया
संकल्प एक भी पूरा ना हो पाया
नियति की मारी मैं, चाहा था एकनिष्ठ
पर हाय विधाता तुम भी ना बने विशिष्ठ
प्रथम मिलन बेला में तुमने जब थामा था
नारायण रामचंद्र मान घनानंद पाया था
पर दोष नहीं तुम्हारा द्रौपदी सा भाग हमारा
जहाँ इच्छाएं उलूपी,सुभद्रा सम होती सह्दारा
कवि ना हो दुखी यह वितृष्णा नहीं मात्र तृष्णा है
अर्जुन सम सन्नद्ध रहो महारण में राजी कृष्णा है
जो इच्छा-सुभद्रा आदि संग ना होता परिणय तुम्हारा
किस विध से होता भरत - सम्राट सम उत्कर्ष हमारा
तुम प्रतुलकवि, तुम विशिष्ठमनी, हम-तुम एकाकार
अमित तो अर्चक कविकलम भारती का करे जयकार
ह्रदय के कोमल भावों पर
लगाता हूँ फिर से प्रतिबन्ध.
कंठ में बाँध रहा हूँ पाश
कहीं न फैले नेह की गंध.
किया जब तक तेरा गुणगान
बढ़ाया तुमने मेरा माँ.
उलाहना क्यों तेरे हो अब
किया करते हो क्यों अपमान?
आपसे भी सुन्दर गुणवान
किया करते मुझसे पहचान
दूर कैसे कर दूँ उनको
गाऊँ न क्यों उनका गुणगान?
आप ही न केवल बलवान
रूप, गुण-रत्नों की हो खान.
किया करता सबका सम्मान
सभी लगते मुझको भगवान्.
हे भगवान्
दो दिग्गजों
का काव्य मंथन
यह उद्भ्रांत !
Amit ji aur Pratul ji ne to kamaal kar diya.
Itni sudar prastuti..
badhai !
adbhut...digant sadrish
jabardast
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