tag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post8661089547371741836..comments2023-11-03T19:09:37.429+05:30Comments on ॥ दर्शन-प्राशन ॥: याचक के भावप्रतुल वशिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comBlogger53125tag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-56254139991646834462011-07-28T19:04:51.319+05:302011-07-28T19:04:51.319+05:30अति अनुपम और विलक्षण शैली से कहे गए
मन के अनूठे भा...अति अनुपम और विलक्षण शैली से कहे गए<br />मन के अनूठे भाव<br />और उतना ही सुन्दर सृजन<br /><br />अभिवादनdaanishhttps://www.blogger.com/profile/15771816049026571278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-61363962290550953482011-07-28T03:53:14.732+05:302011-07-28T03:53:14.732+05:30सशक्त भाव ....प्रभावी अभिव्यक्ति....सशक्त भाव ....प्रभावी अभिव्यक्ति.... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-62156676062151270162011-07-27T22:07:34.657+05:302011-07-27T22:07:34.657+05:30@ आदरणीय अल्पना जी,
दो पंक्तियों के अन्दर आपने न...@ आदरणीय अल्पना जी, <br /><br />दो पंक्तियों के अन्दर आपने न जाने कितने अर्थों की कल्पना कर डाली होगी... जब आँख से एक आँसु टपकता है तो न जाने कितनी कहानियाँ लेकर बहता है... न जाने कितने भाव उसमें समाविष्ट होते हैं... ठीक उसी तरह 'याच्य स्वर' भी न जाने कितने अभावों की पूर्ति कर लेना चाहता है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-32529078255090729372011-07-27T11:04:13.934+05:302011-07-27T11:04:13.934+05:30*एक अन्य ब्लॉग पर आप की गयी यह टिप्पणी पसंद आई.....*एक अन्य ब्लॉग पर आप की गयी यह टिप्पणी पसंद आई..जिसमें आप ने लिखा था--<br /><br />मैं इसे आज़ पढ़ना नहीं कहता..<br />इसे कहता हूँ - 'अभिव्यक्ति चिकित्सा'<br />या 'व्यक्तित्व को जिमाना... खाना खिलाना'.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-3650942249537618032011-07-27T11:01:52.014+05:302011-07-27T11:01:52.014+05:30ईश, तेरा ही मुझमें अंश
अभावों का फिर भी है दंश
-इ...ईश, तेरा ही मुझमें अंश<br />अभावों का फिर भी है दंश<br /><br />-इस एक पंक्ति में जैसे बहुत कुछ कह दिया गया हो.<br />-उत्कृष्ट रचना.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-24045862519455880792011-07-25T22:02:54.113+05:302011-07-25T22:02:54.113+05:30@ शुक्ल जी,
मुझे एक बात याद हो आयी 'निराला जी...@ शुक्ल जी, <br />मुझे एक बात याद हो आयी 'निराला जी' ने एक गोष्ठी में 'राम की शक्ति पूजा' काव्य का पाठ किया सभी का धैर्य छूट गया. जब काव्य पाठ समाप्त हुआ तो वहाँ एक ही व्यक्ति मौजूद था. और वे सर्वश्रेष्ठ श्रोता थे 'पंडित रामचंद्र शुक्ल'...........आप मेरी छोटी-सी रचना पर उसी अंदाज में टिप्पणी करते हैं जैसे आचार्य शुक्ल जी किया करते थे.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-59994175564163345812011-07-25T21:54:59.500+05:302011-07-25T21:54:59.500+05:30@ आदरणीय सतीश जी,
आपकी स्नेह दृष्टि से ही आगे के...@ आदरणीय सतीश जी, <br /><br />आपकी स्नेह दृष्टि से ही आगे के लिये उत्साह बना रहता है...प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-21933169162048694582011-07-25T21:52:26.498+05:302011-07-25T21:52:26.498+05:30@ मदन जी,
'कविता वेद ज्ञान की तरह है.' इस...@ मदन जी, <br />'कविता वेद ज्ञान की तरह है.' इस सन्दर्भ में मेरे कुछ विचार हैं, जिसे मैंने माँ सरस्वती से कल्पित संवाद में व्यक्त किये हैं :<br /><br />हे देवी! छंद के नियम बनाये क्योंकर? <br />वेदों की छंदों में ही रचना क्योंकर? <br />किसलिये प्रतीकों में ही सब कुछ बोला? <br />किसलिये श्लोक रचकर रहस्य ना खोला? <br /><br />क्या मुक्त छंद में कहना कुछ वर्जित था? <br />सीधी-सपाट बातें करना वर्जित था? <br />या बुद्धि नहीं तुमने ऋषियों को दी थी? <br />अथवा लिखने की उनको ही जल्दी थी? <br /><br />'कवि' हुए वाल्मिक देख क्रौंच-मैथुन को. <br />आहत पक्षी कर गया था भावुक उनको. <br />पहला-पहला तब श्लोक छंद में फूटा. <br />रामायण को लिख गया था जिसने लूटा. <br /><br />माँ सरस्वती की कृपा मिली क्यूँ वाकू? <br />जो रहा था लगभग आधे जीवन डाकू? <br />या रामायण के लिए भी डाका डाला? <br />अथवा तुमने ही उसको कवि कर डाला? <br /><br />हे सरस्वती, बोलो अब तो कुछ बोलो !<br />क्या अब भी ऐसा हो सकता है? बोलो !!<br /><br />अब तो कविता में भी हैं कई विधायें. <br />अच्छी जो लागे राह उसी से आयें. <br />अब नहीं छंद का बंध न कोई अड़चन. <br />कविता वो भी, जो है भावों की खुरचन. <br /><br />कविता का सरलीकरण नहीं है क्या ये? <br />प्रतिभा का उलटा क्षरण नहीं है क्या ये? <br /><br />छाया रहस्य प्रगति प्रयोग और हाला. <br />वादों ने कविता को वैश्या कर डाला. <br />मिल गयी छूट सबको बलात करने की. <br />कवि को कविता से खुरापात करने की. <br /><br />यदि होता कविता का शरीर नारी सम. <br />हर कवि स्वयं को कहता उसका प्रियतम. <br /><br />छायावादी छाया में उसको लाता. <br />धीरे-धीरे उसकी काया सहलाता. <br />उसको अपने आलिंगन में लाने को <br />शब्दों का मोहक सुन्दर जाल बिछाता. <br /><br />लेकिन रहस्यवादी करता सब मन का. <br />कविता से करता प्रश्न उसी के तन का. <br />अनजान बना उसके करीब कुछ जाता. <br />तब पीन उरोजों का रहस्य खुलवाता. <br /><br />पर, प्रगती...वादी, भोग लगा ठुकराता. <br />कविता के बदले न..यी कवी..ता लाता. <br />साहित्य जगत में निष्कलंक होने को <br />बेचारी कविता को वन्ध्या ठहराता. <br /><br />और ... प्रयोगवादी करता छेड़खानी. <br />कविता की कमर पकड़कर कहता "ज़ानी! <br />करना इंग्लिश अब डांस आपको होगा. <br />वरना मेरे कोठे पर आना होगा."<br /><br />अब तो कविता परिभाषा बड़ी विकट है. <br />खुल्लम-खुल्ला कविता के साथ कपट है. <br />कविता कवि की कल्पना नहीं न लत है. <br />कविता वादों का नहीं कोई सम्पुट है. <br /><br />ना ही कविता मद्यप का कोई नशा है. <br />कविता तो रसना-हृत की मध्य दशा है. <br />जिसकी निह्सृति कवि को वैसे ही होती. <br />जैसे गर्भस्थ शिशु प्रसव पर होती. <br /><br />जिसकी पीड़ा जच्चा को लगे सुखद है. <br />कविता भी ऐसी दशा बिना सरहद है. <br />__________________<br /><br />आदरणीय मदन जी, मैं सदा से चाहता रहा हूँ कि कोई भी द्विअर्थी संवाद बिना विशेष कारण के नहीं बोले जाएँ.. यमक और श्लेष काव्य के लिये चमत्कार जरूर हैं किन्तु याच्य स्वर में इस तरह कोशिश मैंने नहीं की ... अनायास यदि कुछ अन्य अर्थ समझे लिये जाएँ तो वैसे ही बुरा होता जैसे कुछ वेदपाठी पंडितों के द्वारा वेदों की ऋचाओं में मांसाहार और बलि-प्रथा को ढूँढ लिया जाता है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-52026939668690825952011-07-25T21:36:19.381+05:302011-07-25T21:36:19.381+05:30@ प्रिय सुनील जी, मन में एक विचार आता है कि स्वर्ण...@ प्रिय सुनील जी, मन में एक विचार आता है कि स्वर्ण का अंश भी स्वर्ण ही कहलाता है. परमात्मा सर्वशक्तिमान है तो उसके अंश में निरीहता के भाव क्योंकर आ जाते हैं. वह अभाव से क्यों ग्रस्त रहता है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-91389512319169796102011-07-25T21:34:54.850+05:302011-07-25T21:34:54.850+05:30@ डॉ. शरद सिंह जी,
अपने भावों को व्यक्त करने में ...@ डॉ. शरद सिंह जी, <br />अपने भावों को व्यक्त करने में 'याचक' का बिम्ब लिया यदि वह मन को उद्वलित कर पाया तो अवश्य ही रचना मर्मस्पर्शी होगी. मेरे लिये समीक्षक दृष्टि ही सर्वश्रेष्ठ 'कसौटी' है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-65441865967054002452011-07-25T20:39:24.800+05:302011-07-25T20:39:24.800+05:30थोड़े शब्दों में बहुत सशक्त रचनाथोड़े शब्दों में बहुत सशक्त रचनाS.N SHUKLAhttps://www.blogger.com/profile/16733368578135625431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-27319289296675356892011-07-24T22:19:36.350+05:302011-07-24T22:19:36.350+05:30बहुत प्यारी और प्रभावशाली रचनाएँ हैं आपकी !
शुभकाम...बहुत प्यारी और प्रभावशाली रचनाएँ हैं आपकी !<br />शुभकामनायें स्वीकार करें !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-10509390826402399852011-07-24T01:11:00.974+05:302011-07-24T01:11:00.974+05:30ईश, तेरा ही मुझमें अंश
अभावों का फिर भी है दंश
बह...ईश, तेरा ही मुझमें अंश<br />अभावों का फिर भी है दंश <br />बहुत सुन्दर कविता !! किन्तु आप ने इसका अर्थ बता कर सारा मजा किरकिरा कर दिया !<br />कविता भी वेद ज्ञान की तरह है | जितना गहरा सोचे उतने ही विभिन्न अर्थ | आपने तो पूरा जिज्ञासा ही शांत कर दिया |मदन शर्माhttps://www.blogger.com/profile/07083187476096407948noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-36499447812630559442011-07-22T17:36:36.410+05:302011-07-22T17:36:36.410+05:30ईश, तेरा ही मुझमें अंश
अभावों का फिर भी है दंश
बह...ईश, तेरा ही मुझमें अंश<br />अभावों का फिर भी है दंश <br />बहुत सुंदर भावाव्यक्ति क्या बात है .....Sunil Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10008214961660110536noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-5716343192546442952011-07-22T14:34:45.246+05:302011-07-22T14:34:45.246+05:30याचक के भाव की मार्मिकता ने मन को उद्वेलित कर दिया...याचक के भाव की मार्मिकता ने मन को उद्वेलित कर दिया...<br />मर्मस्पर्शी रचना.Dr (Miss) Sharad Singhhttps://www.blogger.com/profile/00238358286364572931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-73281295511613400002011-07-21T19:10:57.742+05:302011-07-21T19:10:57.742+05:30@ रविकर जी,
आपने भी प्रेमवश मुझे चर्चामंच पर चढ़ा...@ रविकर जी, <br />आपने भी प्रेमवश मुझे चर्चामंच पर चढ़ा ही दिया... भई कवि-सम्मेलनों से भी अब दो-सत्रों का चलन समाप्त हो चला है... श्रोतागण हूटिंग करने लगते हैं. <br /><br />एक ही सत्र में सबकुछ निपटा देते हैं आजकल..गणतंत्र-दिवस कवि सम्मेलन में... फिर काव्य के प्रति पुरानी रसिकता भी समाप्त हो चली है. अब तो किस्से-कहानी सुनाने का चलन है वह भी रोचक अंदाज़ में.. सञ्जय अनेजा जी की तरह से..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-63646942163464187612011-07-21T19:05:07.084+05:302011-07-21T19:05:07.084+05:30@ दिव्या जी,
ईश्वर से तो अपने अभाव कहने पड़ते हैं...@ दिव्या जी, <br />ईश्वर से तो अपने अभाव कहने पड़ते हैं ... किन्तु कुछ आत्मीय ऐसे भी होते हैं जो अनुच्चरित स्वरों को सुन लिया करते हैं. मुझे एक भ्रम आज़ भी है : आपको वरिष्ठ जानकार आपके दर्शन की जो अनधिकार चेष्टा पूर्व में किया करता था उसका ही फ़ल था कि आप अज्ञात से ज्ञात हुए. आपने न जाने उस समय किस पुकार को सुनकर दर्शन दिये थे... मेरे लिये तो आप भी ईश्वरतुल्य हुए न. <br /><br />कई स्वर तो अब भी मूक ही रहना चाहते हैं.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-26370738017769166962011-07-21T18:45:15.206+05:302011-07-21T18:45:15.206+05:30@ सञ्जय जी,
कहाँ रहते हो... आपके 'प्रणाम'...@ सञ्जय जी, <br />कहाँ रहते हो... आपके 'प्रणाम' और 'सुप्रभात' दिनरात कानों में गूँजा करते हैं... छोड़कर जाने से पहले अवश्य आगाह करना. जटिलता धीरे-धीरे ही जा पायेगी.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-67471221160513444882011-07-21T18:40:00.963+05:302011-07-21T18:40:00.963+05:30कवि कविता का अर्थ नहीं बताए तो बेहतर है।
@ चन्दन ...कवि कविता का अर्थ नहीं बताए तो बेहतर है।<br /><br />@ चन्दन जी, <br />मैं भी इस बात से सहमत हूँ... किन्तु जब कोई कहता है 'स्पष्ट नहीं हुआ'... तब यही प्रश्न मेरे भीतर बैठे पाठक का भी होता है.. ऐसे में भीतर बैठे 'कवि' से खुद अनुरोध करता हूँ कि 'वह अपनी बात साफ़-साफ़ कहे'... मुझे खुद भी तो कविता का अर्थ समझना होता है... जब अर्थ निकलकर सामने आता है तब जो प्रसन्नता मिलती है उसकी व्याख्या नहीं कर सकता. विवश हूँ उस पाठक के अनुरोध से और विवश हूँ शिक्षक-स्वभाव से.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-23290263232289415022011-07-21T11:04:22.476+05:302011-07-21T11:04:22.476+05:30इतनी सुन्दर रचना और उससे भी सुन्दर विवेचना ! वाह !...इतनी सुन्दर रचना और उससे भी सुन्दर विवेचना ! वाह ! आनंददायी . ! भक्त की आर्त पुकार से तो श्री विष्णु का भी सिंहासन डोलने लगता है , कैसे न सुनेंगे भला कविवर की पुकार .ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-33494397515016898032011-07-21T10:13:02.954+05:302011-07-21T10:13:02.954+05:30suprabhat guruji,
bilamb se aane ko kshama chahoo...suprabhat guruji,<br /><br />bilamb se aane ko kshama chahoonga...<br />aapki ye aartnad....priyajanon ke liye achhi lagi......<br /><br />bahut sundar......<br /><br />pranam.सञ्जय झाhttps://www.blogger.com/profile/08104105712932320719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-8533036706172970952011-07-20T19:13:29.940+05:302011-07-20T19:13:29.940+05:30जैसा कि आप जानते होंगे, मेरे विषय से बाहर है ये। ल...जैसा कि आप जानते होंगे, मेरे विषय से बाहर है ये। लेकिन लोगों ने बहुत कुछ कहा।<br /><br />हाँ, एक बात कहूंगा कवि कविता का अर्थ नहीं बताए तो बेहतर है। क्योंकि कविता का अर्थ पढ़नेवाले पर ही छोड़ देना चाहिए। कभी-कभी कविता में शब्दों को पाठक न समझ पाए तब भी केवल शब्द का अर्थ ही बताना चाहिए। कोई जबरदस्ती नहीं है, ऐसा मैं मान रहा हूँ।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-8323892106314269922011-07-20T16:43:36.689+05:302011-07-20T16:43:36.689+05:30@ दिवस जी, 'गौर' ही अक्सर बहुत सुन्दर होते...@ दिवस जी, 'गौर' ही अक्सर बहुत सुन्दर होते हैं. :) हम कहाँ के सुन्दर... 'स्याह वदन'.... :)प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-71127406027391416102011-07-20T16:37:53.610+05:302011-07-20T16:37:53.610+05:30@ विवेक जी, अद्भुत में 'आधे भूत' भाव की गू...@ विवेक जी, अद्भुत में 'आधे भूत' भाव की गूँज है. भाव जब सहजता से समझ ना आयें. भावों पर जब बुरका पड़ गया हो तब वे अर्थ के मद्धिम प्रकाश में भूत से ही प्रतीत होंगे... इस दृष्टि से याचक के भाव 'आधे भूत भाव' हैं. भूत के पाँव उलटे होते हैं... इसके भी पीछे की ओर हैं, अतीत में पैर पसारे हैं ये भाव.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-32516989949065293942011-07-20T16:26:22.735+05:302011-07-20T16:26:22.735+05:30@ सूर्यकांत जी,
"दाता एक राम भिखारी सारी ...@ सूर्यकांत जी,<br /> "दाता एक राम भिखारी सारी दुनिया" ........जब से सुना है तब से ही मेरा मन पसंद भजन रहा है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.com