tag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post8395651114755851498..comments2023-11-03T19:09:37.429+05:30Comments on ॥ दर्शन-प्राशन ॥: हृदय का संस्कारप्रतुल वशिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-38645672975794770272012-07-04T16:35:45.476+05:302012-07-04T16:35:45.476+05:30@ वीरूभाई जी, अपनी सुविधा से आना-जाना एक समय के बा...@ वीरूभाई जी, अपनी सुविधा से आना-जाना एक समय के बाद अखरता नहीं.... <br /><br />'उपमा कालिदासस्य' उक्ति को बदलने की ज़रूरत नहीं... पहली बार में ही आप अपनी 'सर्वश्रेष्ठ सराहना' खर्च किये दे रहे हैं... लगता है दोबारा आने का विचार नहीं.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-33569094169572603162012-07-04T16:35:25.245+05:302012-07-04T16:35:25.245+05:30@ प्रिय सुरेश कुमार जी,
आपको कविता के आरम्भ ने ह...@ प्रिय सुरेश कुमार जी, <br /><br />आपको कविता के आरम्भ ने ही प्रसन्न कर दिया.... यह रचना की गेयता के कारण हुआ है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-51777689060185206432012-07-04T16:35:11.528+05:302012-07-04T16:35:11.528+05:30@ प्रिय नारद जी,
आपके भ्रमण ने मेरे 'काव्य-स...@ प्रिय नारद जी, <br /><br />आपके भ्रमण ने मेरे 'काव्य-सरोवर' में कमल खिला दिये. आनंदित हूँ.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-77717104109867953982012-07-04T16:34:53.967+05:302012-07-04T16:34:53.967+05:30@ सञ्जय अनेजा जी, सही पहचाना .. ये रचना 'कच-दे...@ सञ्जय अनेजा जी, सही पहचाना .. ये रचना 'कच-देवयानी' से ही है...मुझे लगता है मनोभावों पर विस्तार से चर्चा करने के लिये कच, देवयानी, शर्मिष्ठा और ययाति नामक पात्र सर्वथा उपयुक्त हैं. इसलिये मैंने अपने 'प्रबंधकाव्य' (अपूर्ण) का विषय इनकी कथा को चुना.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-80914712848250012422012-07-04T16:34:43.013+05:302012-07-04T16:34:43.013+05:30@ दिव्या जी आपने दबे मन के भावों को संजोने और व्यक...@ दिव्या जी आपने दबे मन के भावों को संजोने और व्यक्त करने की कला (प्रतीकों में) को अच्छे से समझा है.... <br />सच है...... कोई भी 'भाव' जब प्रत्यक्ष प्रकट न हो, केवल परत-दर-परत एकत्र होता रहे. तब वह स्वभाव बन जाता है और वही स्वभाव एक अंतराल के उपरान्त 'संस्कार' कहा जाने लगता है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-91778305530080131162012-07-04T16:34:09.296+05:302012-07-04T16:34:09.296+05:30@ आदरणीया 'स्वरूप' जी शायद रचना की गेयता क...@ आदरणीया 'स्वरूप' जी शायद रचना की गेयता के वशीभूत होकर उपस्थिति देने को विवश हो गयीं.... ये विवशता भी दर्शनीय है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-10559435563907082252012-07-04T16:33:52.781+05:302012-07-04T16:33:52.781+05:30@ अंत की पंक्तियों ने रमाकांत जी को सराहना करने को...@ अंत की पंक्तियों ने रमाकांत जी को सराहना करने को विवश किया ... उनकी इस विवशता पर प्रसन्न हूँ.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-8009366910017742992012-07-04T16:33:41.509+05:302012-07-04T16:33:41.509+05:30@ डॉ. मयंक जी, आपकी शाबासी-शब्दों के उच्चारण ने ध्...@ डॉ. मयंक जी, आपकी शाबासी-शब्दों के उच्चारण ने ध्यान खींचा.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-6046903687362824932012-07-04T16:33:28.175+05:302012-07-04T16:33:28.175+05:30@ रविकर जी,
जैसे आँगन में तुलसी का पौधा होता है,...@ रविकर जी, <br /><br />जैसे आँगन में तुलसी का पौधा होता है, आप भी वैसे ही हर ब्लोगर की पसंद हैं और उपयोगी भी.<br /><br />जैसे घर के द्वारे बँधी दुधारू गाय होती है जिसका हर उत्पाद उपयोगी है. आपकी खेल-खेल में कही काव्योक्ति भी भरपूर आनंद देती है. चिंतन करके जाँच-पड़ताल करके की गयी प्रतिक्रिया तो और भी अभिभूत करती है. आपकी दिव्य प्रतिभा के सम्मुख अनायास ही नत हो जाते हैं हम. <br /><br />आपके लिये मेरे मन में एक संबोधन सूझता है 'शब्दों का खिलाड़ी'. <br /><br />अपने जटिल वाक्य-विन्यास के कारण गजानन माधव मुक्तिबोध को 'शब्दों का राक्षस' कहा गया. लेकिन मुझे आप 'शब्दों के खिलाड़ी' लगते हैं जो प्रतिक्रिया देते में 'मनोरंजन' तत्व को भुलाता नहीं.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-4481845406499243592012-06-30T03:15:47.904+05:302012-06-30T03:15:47.904+05:30उपमा वशिष्ठ अस्य ,अच्छी पोस्ट ,पहली बार आए ,देर आय...उपमा वशिष्ठ अस्य ,अच्छी पोस्ट ,पहली बार आए ,देर आयद दुरुस्त आयद .... <br />शुक्रवार, 29 जून 2012<br />ज्यादा देर आन लाइन रहना माने टेक्नो ब्रेन बर्न आउट<br />http://veerubhai1947.blogspot.com/<br />वीरुभाई ४३.३०९ ,सिल्वर वुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन ,४८,१८८ ,यू एस ए .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-37313932752855574162012-06-30T03:15:37.464+05:302012-06-30T03:15:37.464+05:30उपमा वशिष्ठ अस्य ,अच्छी पोस्ट ,पहली बार आए ,देर आय...उपमा वशिष्ठ अस्य ,अच्छी पोस्ट ,पहली बार आए ,देर आयद दुरुस्त आयद .... <br />शुक्रवार, 29 जून 2012<br />ज्यादा देर आन लाइन रहना माने टेक्नो ब्रेन बर्न आउट<br />http://veerubhai1947.blogspot.com/<br />वीरुभाई ४३.३०९ ,सिल्वर वुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन ,४८,१८८ ,यू एस ए .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-47030860617154832032012-06-29T15:06:07.725+05:302012-06-29T15:06:07.725+05:30क्या अब भी उतना ही प्रगाढ़
मुझसे करते हो प्रेम प्र...क्या अब भी उतना ही प्रगाढ़<br />मुझसे करते हो प्रेम प्रिये !<br />जितना पहले करते अपार....<br /><br />बहुत सुन्दर..........Suresh kumarhttps://www.blogger.com/profile/05489753526784353258noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-21667792748258219652012-06-28T18:03:38.546+05:302012-06-28T18:03:38.546+05:30बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा शुक्र...बहुत अच्छी प्रस्तुति!<br /><br />इस प्रविष्टी की चर्चा शुक्रवारीय के <a href="http://charchamanch.blogspot.in/" rel="nofollow">चर्चा मंच</a> पर भी होगी!<br /><br />सूचनार्थ!रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-31073652308798582212012-06-28T15:47:29.962+05:302012-06-28T15:47:29.962+05:30रविकर जी की टिप्पणी ने पोस्ट का सौंदर्य बढ़ा दिया ...रविकर जी की टिप्पणी ने पोस्ट का सौंदर्य बढ़ा दिया ही|<br />लेबल में 'कच-देवयानी'? वैसे 'ययाति' नाम से लिखा विष्णु सखाराम खांडेकर जी का उपन्यास मेरे प्रिय उपन्यासों में से एक है, शायद इसलिए ध्यान इधर चला गया|संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-3148226590920040282012-06-27T18:59:01.877+05:302012-06-27T18:59:01.877+05:30ह्रदय का संस्कार कुछ ऐसा ही होता है। बहुत कुछ समे...ह्रदय का संस्कार कुछ ऐसा ही होता है। बहुत कुछ समेटे रहता है अपने अन्दर। भावों को मन में दबा कर रखना और ह्रदय में संजोय रखना ही तो असली कला है।ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-91629895710299870862012-06-27T18:52:17.490+05:302012-06-27T18:52:17.490+05:30बहुत सुंदर ...बहुत सुंदर ...संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-16777723009302502972012-06-27T17:57:40.135+05:302012-06-27T17:57:40.135+05:30उपमा अलंकार का अनुपम भाव लिए रचनाउपमा अलंकार का अनुपम भाव लिए रचनाRamakant Singhhttps://www.blogger.com/profile/06645825622839882435noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-19883866640928564252012-06-27T17:40:00.213+05:302012-06-27T17:40:00.213+05:30सशक्त और सार्थक प्रस्तुति!सशक्त और सार्थक प्रस्तुति!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-57206702862663607442012-06-27T17:36:19.029+05:302012-06-27T17:36:19.029+05:30कैसे भी,
स्वीकारो इसे-
वर्षों की संख्या तीन हुई,...कैसे भी,<br />स्वीकारो इसे- <br /><br />वर्षों की संख्या तीन हुई, नित दीन-हीन अति-क्षीण हुई |<br />कल्पनी काट कल्पना गई, पर विरह-पत्र उत्तीर्ण हुई |<br />कल पाना कैसे भूल गए, कलपाना चालू आज किया -<br />बेजार हजार दिनों से मैं, क्या प्रेम-प्रगाढ़ विदीर्ण हुई ??<br /><br />सादर ||रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.com