tag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post1367596505426979030..comments2023-11-03T19:09:37.429+05:30Comments on ॥ दर्शन-प्राशन ॥: कौमुदी ! प्रतुल वशिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-1433856068513297722012-11-06T08:34:57.983+05:302012-11-06T08:34:57.983+05:30@@ सिन्हा जी और भास्कर जी की सराहना मेरी स्मिति को...@@ सिन्हा जी और भास्कर जी की सराहना मेरी स्मिति को देर तक बनाए रखने में सहायक रही। ---- असल बात ये थी जबकि आभार में 'स्मिति' समिति बन गयी।प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-76629854430460464092012-11-05T18:53:06.984+05:302012-11-05T18:53:06.984+05:30@ मुकेश कुमार सिन्हा और संजय भास्कर की सराहना मेरी...@ मुकेश कुमार सिन्हा और संजय भास्कर की सराहना मेरी समिति को देर तक बनाए रखने में सहायक रही। प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-35255933799644819902012-11-05T18:52:57.394+05:302012-11-05T18:52:57.394+05:30@ आदरणीय मदन जी, आपके कहे अनुसार मैंने थोथा उड़ा दि...@ आदरणीय मदन जी, आपके कहे अनुसार मैंने थोथा उड़ा दिया ... फू ..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-51974688594556503022012-11-05T18:52:48.693+05:302012-11-05T18:52:48.693+05:30@ इंडिया दर्पण की उपस्थिति पर आभारी हूँ।@ इंडिया दर्पण की उपस्थिति पर आभारी हूँ।प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-56555384455211633402012-11-05T18:49:41.583+05:302012-11-05T18:49:41.583+05:30@ मित्र रोहित जी,
पहला अर्थ : हे उद्यान की प्रेय...<br />@ मित्र रोहित जी, <br /><br />पहला अर्थ : हे उद्यान की प्रेयसी 'तितली' ! कुछ देर बैठो तो सही। मधु पियेंगे। इस बहाने प्रेमालाप हो जाएगा। ऐसे अवसर मिलते कहाँ हैं। ओ मेरे भाव विकसाने वाली चाँदनी, अपना कोमल हाथ बढ़ा ही डालो।<br /><br />आइये और मेरे ह्रदय रूपी पुष्प पर विराजिये। तनिक आराम से बैठिये। पंख खोलकर बैठिये। वक्ष को थोड़ी हवा लगने दीजिये। मुझपर इतनी कृपा तो करिए। (वैसे यहाँ अर्थ और अधिक स्पष्ट किया जा सकता है)<br /><br /><br />इस बहाने आपके दैहिक सौंदर्य को निहार लेना चाहता हूँ। केवल इस बार ही ऐसा अनुरोध कर रहा हूँ। बार-बार नहीं कहूँगा। बस इस बार की झलक को सदा-सदा के लिए बाँध कर रखूँगा। या, आगे से संयम रखूँगा कि ऎसी इच्छा दोबारा न हो।<br /><br />दूसरा अर्थ : [कवि रात्रि में आकाश की ओर मुँह किये उडु-समूह (तारों) को इंगित करके याचना स्वर में टेर लगा रहा था, --- हे चारों ओर छिटकी हुई चाँदनी, कुछ देर मेरे पास बैठ। मधुमयी (मधुर) बातें करेंगे। थोड़ा समय प्रेमपूर्वक बिताते हैं। लाओ अपना हाथ मुझे दो। [कवि मन निराश है। अंतस में अन्धेरा है। इसलिए वह छिटकी चाँदनी से अनुरोध कर रहा है।] <br /><br />आओ, इधर आओ, मेरे ह्रदय में झाँको। थोड़ा-सा अपने ह्रदय में स्नेहिल भाव लाओ। मेरे लिए कृपया आज संकोच को त्याग दो। तभी मेरे अंतस तक तुम्हारा सौंदर्य पहुँच पायेगा। <br /><br />ये अनुरोध पहला और अंतिम है। आज के बाद मैं फिर कभी तुम्हें बाध्य नहीं करूँगा। आज जीभर के मुझे देख लेने दो। आँखों में भर लेने दो।<br /><br />तीसरा अर्थ : बहुत व्यक्तिगत है और अटपटा है इसलिए यदि उसे कहा तो कविता-कथ्य के भी दोष नज़र आने लगेंगे। अतः यहाँ मैं मौन रहूँगा।प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-53436192880252040572012-11-05T18:49:26.205+05:302012-11-05T18:49:26.205+05:30@ संजय जी, गुरु का ये भी तो दोष ही है कि वह अपने छ...@ संजय जी, गुरु का ये भी तो दोष ही है कि वह अपने छात्रों में 'अभिवादन' के अलावा कुछ न बोलने देने का भय बनाकर रखे। वास्तव में यह सबसे बड़ा दोष है कि गुरु इतना ऊँचा दिखायी दे कि धरातल पर खड़ा छात्र उससे प्रश्न करने अथवा दोष बताने का साहस न कर सके। ... आप अपनी मौन उपस्थिति से ये मुझे महसूस कराते रहे हैं। काव्य का ये भी दोष है कि वह सहजता से समझ न आये। काव्य की 'गूढ़ता' जहाँ एक वर्ग के लिए काव्य का 'गुण' है तो वह एक अन्य वर्ग के लिए काव्य का 'दोष' भी तो है। चलिए यहाँ अब छोटे-छोटे 'दोष' को मैं खुद अनदेखा किये देता हूँ। <br />प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-17645869502288259332012-11-05T18:49:09.883+05:302012-11-05T18:49:09.883+05:30@ सुज्ञ जी, गुरु की गुरुता तभी तक मान्य है जब तक व...<br />@ सुज्ञ जी, गुरु की गुरुता तभी तक मान्य है जब तक वह निर्दोष हो। <br /><br />इसलिए अपनी गुरुता की रक्षा के लिए समय-समय पर 'काव्य-दोष' वाली प्रविष्टियाँ आमंत्रित करवा लेता हूँ।प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-56563255387227371652012-11-02T19:51:15.203+05:302012-11-02T19:51:15.203+05:30 सराहनीय प्रस्तुति....!!! सराहनीय प्रस्तुति....!!!संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-76603859542134130732012-10-20T16:27:26.925+05:302012-10-20T16:27:26.925+05:30manmohak....manmohak....मुकेश कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/14131032296544030044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-66645309503644023292012-10-20T15:39:41.095+05:302012-10-20T15:39:41.095+05:30दोष की बात गुरु ही जाने ...सार सार गहि रहे थोथा दे...दोष की बात गुरु ही जाने ...सार सार गहि रहे थोथा देय उडाय ......मदन शर्माhttps://www.blogger.com/profile/07083187476096407948noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-75146207212825431192012-10-20T05:24:56.055+05:302012-10-20T05:24:56.055+05:30अब ये दोष तो कोई गुरु ही आकर बताएगा.....अपने को तो...अब ये दोष तो कोई गुरु ही आकर बताएगा.....अपने को तो समझ नहीं आया.....वैसे अपन ने पंत जी की छाया से निकल कर आपकी इस कविता को पढ़ा है..पर सच में कुछ समझ में आता है तो अटक जाता है। कविता का भावार्थ समझाएं तो प्रसन्नता होगी। Rohit Singhhttps://www.blogger.com/profile/09347426837251710317noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-40976465820246206292012-10-19T10:41:56.310+05:302012-10-19T10:41:56.310+05:30suprabhat guruji,
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pranam.suprabhat guruji,<br /><br />.........<br />.........<br /><br /><br />pranam.सञ्जय झाhttps://www.blogger.com/profile/08104105712932320719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-86004978241126905032012-10-18T19:33:09.039+05:302012-10-18T19:33:09.039+05:30गुरू में काव्य-दोष निकाले कौन ? :)
मनमोहक मनुहार!...गुरू में काव्य-दोष निकाले कौन ? :)<br /><br />मनमोहक मनुहार!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.com