tag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post7869960962582130534..comments2023-11-03T19:09:37.429+05:30Comments on ॥ दर्शन-प्राशन ॥: स्वर का थर्मामीटरप्रतुल वशिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-70843607404797813262010-11-26T08:52:04.873+05:302010-11-26T08:52:04.873+05:30.
सुज्ञ जी,
इस तरह के विषाणु देश के कौने-कौने मे....<br /><br />सुज्ञ जी, <br />इस तरह के विषाणु देश के कौने-कौने में फ़ैल चुके हैं. ज्वर आना स्वाभाविक है. <br />हर बार सामान्य हो जाना - यह हमारा स्वभाव है. <br /><br />.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-18291795693925706642010-11-24T01:37:34.817+05:302010-11-24T01:37:34.817+05:30गुरुजी,
आपकी कृपा निरंतर बहती रहे तो हमारे लिये श...गुरुजी,<br /><br />आपकी कृपा निरंतर बहती रहे तो हमारे लिये शीतल बयार है। फिर कैसे तापमान नियंत्रण के बाहर जा सकता है।<br />भारत भारती वैभव पर ज्वर विषाणु ने हमला किया था।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-77591259733913759222010-11-24T00:26:09.064+05:302010-11-24T00:26:09.064+05:30..
# संयत स्वर ही सराहनीय तथा अनुकरणीय है।
दिव.....<br /><br /># संयत स्वर ही सराहनीय तथा अनुकरणीय है। <br /><br />दिव्या जी, <br />@ संयत स्वर का अनुकरण केवल विवेक को ही साथ लेकर किया जा सकता है. आपने अपेक्षित उत्तर दिया. <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-49290362842869498712010-11-24T00:21:27.067+05:302010-11-24T00:21:27.067+05:30..
सुज्ञ जी,
ईश्वर करे आपको स्वर का बुखार कभी ना.....<br /><br />सुज्ञ जी, <br />ईश्वर करे आपको स्वर का बुखार कभी ना हो! शांत स्वर के लिये साधना की आवश्यकता है. निरंतर एक तापमान में रहना भी साधना है. वह भी आज़ के समाज में जहाँ कभी-भी कोई भी क्रोध का कारण बन जाता है.<br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-51494917420449110082010-11-24T00:17:44.778+05:302010-11-24T00:17:44.778+05:30..
मजाल जी,
वजा फरमाते हैं.
स्वर के ...'समय.....<br /><br />मजाल जी, <br />वजा फरमाते हैं. <br />स्वर के ...'समय अनुसार प्रयोग में' आप कतई गँवार नहीं. तापमान जब वातावरण का घट-बड़ सकता है तब क्या हमारे स्वर का तापमान घटे-बड़े बिना रह सकता है? बिलकुल नहीं.<br />लेकिन तनावों से बचने की निरंतर कोशिश हमारे स्वास्थ्य को बरकरार रखती है. इसलिये ४० से ८० तापमान के मध्य स्वर वाले सामाजिक कहे जाते हैं. शांत स्वर वालों को समाज के लोग प्रायः साधु या भक्त मान लेते हैं. <br />और अपशब्द भाषी को असभ्य या जाहिल मान लिया जाता है. <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-42850232638654187522010-11-23T23:58:06.186+05:302010-11-23T23:58:06.186+05:30..
प्रिय संजय जी,
आशा है कि आप स्वस्थ हो गये हों.....<br /><br />प्रिय संजय जी, <br />आशा है कि आप स्वस्थ हो गये होंगे. लगता है आपकी अभी भी तकनीकी समस्या दूर नहीं हो पायी है. जो भी स्थिति हो... लिखना.<br />पिछले दिनों मैं अपनी पाठशाला में अधिक समय नहीं दे पाया क्योंकि जब वैचारिक युद्ध छिड़ा हो तब कैसे छंद की बात करता, काव्य जगत में घूम भी नहीं पाया. फिलहाल भी वही हाल हैं. आशा है आप क्षमा भाव रखेंगे. <br />आपके शुभ-प्रभात का हमेशा मैं शुभ-रात्रि में जवाब दिया करता हूँ. ... मजबूरी है. <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-36320818336828723632010-11-23T23:47:44.026+05:302010-11-23T23:47:44.026+05:30..
प्रिय विरेन्द्र जी,
आपकी 'बधाई और शुभकामन.....<br /><br />प्रिय विरेन्द्र जी, <br />आपकी 'बधाई और शुभकामनाएँ' मैं अपने भविष्य में किये जाने वाले साहित्यिक कार्यों के पीछे और आगे लगा लेता हूँ. <br />प्रिफिक्स और सफिक्स की तरह से, प्रत्यय और उपसर्ग की तरह से. <br />कुछ समय से मेरे ह्रदय में आपके लिये विशेष स्थान बन गया है. मैं जब भी आपको देखता हूँ मुख पर स्मिति आ ही जाती है. <br /><br />..प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-68483225919425514452010-11-23T23:37:09.400+05:302010-11-23T23:37:09.400+05:30.
प्रिय बेनाम टिप्पणीकर्ता
अच्छा हुआ आपने अपने प....<br /><br />प्रिय बेनाम टिप्पणीकर्ता <br />अच्छा हुआ आपने अपने पूछे सवाल में प्रेम को स्पष्ट कर दिया. अब मैं आपको शुद्ध मानव प्रेम की ही परिभाषा बताऊँगा. <br />मानव प्रेम — जो प्रेम मनु की संतानों से ही किया जाये. <br /><br />.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-62480698758797018942010-11-23T21:13:06.818+05:302010-11-23T21:13:06.818+05:30भाई साहब कृपया प्रेम की परिभाशा बतायें प्रेम के क्...भाई साहब कृपया प्रेम की परिभाशा बतायें प्रेम के क्याा गुण होते हैं मै मानवप्रेम की बात कर रहा हूंAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-18066584559332622202010-11-22T14:06:58.543+05:302010-11-22T14:06:58.543+05:30आपने तो बहुत ही सार्थक और ज्ञानबर्धक लेख लिखा है.
...आपने तो बहुत ही सार्थक और ज्ञानबर्धक लेख लिखा है.<br />आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा. आपको बधाई और ढेरों शुभकामनाएँ.वीरेंद्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/17461991763603646384noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-56072385262888984052010-11-22T12:11:34.785+05:302010-11-22T12:11:34.785+05:30SUPRABHAT GURUJI
ATI SUNDAR PATH - VIVECHAN........SUPRABHAT GURUJI<br /><br /><br />ATI SUNDAR PATH - VIVECHAN......<br /><br /><br />PRANAMसञ्जय झाhttps://www.blogger.com/profile/08104105712932320719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-52346890557428348662010-11-21T18:37:39.808+05:302010-11-21T18:37:39.808+05:30हमारे हिसाब से तो स्वर वो ही ठीक है जो मौके के हि...हमारे हिसाब से तो स्वर वो ही ठीक है जो मौके के हिसाब से खुद को ढाल ले, जब जैसे तापमान की आवश्यकता हो वैसा संतुलन बना ले, बाकी भाषा हमारे लिए विचारों का आदान प्रदान का माध्यम है, तो जो स्वर सामने वाला सुलभता से समझ ले, हमारे लिए तो वहीँ श्रेष्ट ...<br />किताबी ज्ञान के मामले में तो मियां मजाल गँवार ही है ... उस लिहाज़ से आपकी जानकारी तो हमेशा दिलचस्प ही लगती है.. जारी रखिये ....Majaalhttps://www.blogger.com/profile/08748183678189221145noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-17989130110207174782010-11-21T13:48:39.318+05:302010-11-21T13:48:39.318+05:30गुरु जी,
यह तो भाव-अभिलेख है,क्या खूब स्वर का थर्...गुरु जी,<br /><br />यह तो भाव-अभिलेख है,क्या खूब स्वर का थर्मामीटर!! हमें तो, 020 = शांत स्वर ही भाता है, पर तापमान संयत स्वर और शांत स्वर के मध्य उपर नीचे होता है, कभी बुखार आ जाये सो अपवाद।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-79566713284736769442010-11-21T07:55:57.366+05:302010-11-21T07:55:57.366+05:30.
एक बेहद खूबसूरत लेख के लिए हार्दिक आभार। संयत....<br /><br />एक बेहद खूबसूरत लेख के लिए हार्दिक आभार। संयत स्वर ही सराहनीय तथा अनुकरणीय है। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.com