tag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post6836250223804527430..comments2023-11-03T19:09:37.429+05:30Comments on ॥ दर्शन-प्राशन ॥: न्यायकारी की भेद दृष्टिप्रतुल वशिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-89830087745927344062012-11-03T09:28:01.570+05:302012-11-03T09:28:01.570+05:30ये न्याय तुम्हारा कैसा!
दोनों के तुम हो माली!!
बह...ये न्याय तुम्हारा कैसा!<br />दोनों के तुम हो माली!!<br /><br />बहुत खूब .....जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में.... शुभकामनाएं...!संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-49686439680781304682012-08-24T19:07:41.378+05:302012-08-24T19:07:41.378+05:30बहुत बढ़िया प्रस्तुति ...आभार बहुत बढ़िया प्रस्तुति ...आभार Ayodhya Prasadhttps://www.blogger.com/profile/00220293033943017179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-90777659652382254332012-08-22T16:42:30.434+05:302012-08-22T16:42:30.434+05:30दूसरी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया
@ सञ्जय जी, नमस्ते.
...दूसरी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया <br />@ सञ्जय जी, नमस्ते.<br />:) आपका कॉपीराइट यदि 'प्रणाम' शब्द पर है तो हमारी भी इतनी ड्यूटी है कि आपसे झूठी तकरार करते रहें.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-18210157679987842462012-08-22T16:36:31.047+05:302012-08-22T16:36:31.047+05:30@ प्रिय विरेन्द्र जी,
आपके हृदय में उतरी कविता सम...<br />@ प्रिय विरेन्द्र जी,<br /><br />आपके हृदय में उतरी कविता समस्त भावों के साथ पीड़ा 'तरी' पर सवार थी. आश्चर्य है कि 'तरी' इतने सारे बोझ के साथ आपके हृदय-सागर में डूबी क्यों नहीं? :)प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-25588947807366833962012-08-22T16:25:25.078+05:302012-08-22T16:25:25.078+05:30ईश्वर से यदि मिलन का, मन में हो सुविचार
तो ईश्वर य...ईश्वर से यदि मिलन का, मन में हो सुविचार<br />तो ईश्वर याचक मन की, सुनता शीघ्र पुकार।<br /><br />@ मनोज जी, बड़ों का आशीर्वाद यही है कि वे कष्टकारी क्षणों में और करीब आ जाते हैं और मीठे बोल बोलते हैं.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-24419434932989587992012-08-22T16:21:13.061+05:302012-08-22T16:21:13.061+05:30@ कुमार राधारमण जी,
आपने 'न्यायकारी' विश...<br />@ कुमार राधारमण जी, <br /><br />आपने 'न्यायकारी' विशेषण को एक अन्य 'समद्रष्टा' विशेषण से बदलने की उपदेशात्मक कोशिश की... यह बात मन में अच्छे से बैठी. <br /><br />दूसरी बात, आपकी कवित्व शैली में 'प्रसाद' सुख है..... यह पीड़ित हृदय को बहुत दिलासा देता है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-54528535218880110452012-08-22T16:16:11.878+05:302012-08-22T16:16:11.878+05:30@ प्रिय सञ्जय जी, सुप्रभात.
आप सच्चे अभ्यासी है.....<br />@ प्रिय सञ्जय जी, सुप्रभात.<br /><br />आप सच्चे अभ्यासी है.... पंक्तियों को दोहराना 'गुरु' को यह प्रतीति जो जरूर कराता है कि 'विद्यार्थी' ने पाठ को ज्यों का त्यों ग्रहण कर लिया है. इससे उसका मुग्ध(मूर्ख)मन बेहद प्रसन्न होता है. :)प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-26381777194982668462012-08-22T16:11:38.822+05:302012-08-22T16:11:38.822+05:30@ शांति गर्ग जी,
जीवन में जब अनायास 'किसी...<br />@ शांति गर्ग जी, <br /><br />जीवन में जब अनायास 'किसी' का अभाव खलने लगे तब शिकायत लेकर किसके पास जाएँ... यही विचार (प्रश्न) इस भाव-कविता का हेतु है. आपके ब्लॉग-मंदिर में घूमा-फिरा... लेकिन बिना घंटा-घड़ियाल हिलाए लौट आया... अभावों ने मुझे अजपाजप कराने की आदत जो डाल दी है. देखता हूँ कब तलक मन अभावों से अशांत रहता है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-17123429336992520112012-08-22T16:01:47.661+05:302012-08-22T16:01:47.661+05:30@ अपनी प्रस्तुति को भारतीय दर्पण में निहारकर मुझे ...@ अपनी प्रस्तुति को भारतीय दर्पण में निहारकर मुझे अत्यंत हर्ष हुआ.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-33821186495402000642012-08-22T16:00:33.735+05:302012-08-22T16:00:33.735+05:30@ दिव्या जी, आपने जगत प्रसिद्ध चिर परिचित रहीम जी ...<br />@ दिव्या जी, आपने जगत प्रसिद्ध चिर परिचित रहीम जी के दोहे से मार्गदर्शन किया... इसी कारण अपनों की जरूरत हमेशा बनी रहती है.<br /><br />हताशा निराशा में तो अच्छे-अच्छों की अक्ल पर परदा पड़ जाता है... इस बात से मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ ---<br />जब कभी 'रहीम' स्वयं हताश हुए होंगे तो उनको किसी आत्मीय ने ही उनके दोहे से मार्गदर्शन किया होगा.<br /><br />ईश्वर को कोसने वाले या उसे अपशब्द निकालने वाले उसकी वजूद को स्वीकारते हैं तभी शायद उसे इतना सब कह जाते हैं.<br />अन्यथा 'नास्तिक' लोग तो उससे तटस्थ ही बने रहते हैं. प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-72255724508698560082012-08-22T15:59:30.774+05:302012-08-22T15:59:30.774+05:30@ रमाकांत जी, ऊसर ऊसर ही क्यों रहे? उर्वर उर्वर ही...@ रमाकांत जी, ऊसर ऊसर ही क्यों रहे? उर्वर उर्वर ही क्यों बना रहे?? ये न्यायकारी की कैसी व्यवस्था.. जिसमें 'अभाव'(ग्रस्त) को हर बार गुहार ही लगानी पड़े???प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-36297539437323899432012-08-22T15:59:18.017+05:302012-08-22T15:59:18.017+05:30@ रविकर जी, आपने अपनी दूसरी कवित्त प्रतिक्रिया में...@ रविकर जी, आपने अपनी दूसरी कवित्त प्रतिक्रिया में पुरोहिती उपदेश कर सामान्य सांसारिक गुण-धर्म से विरक्ति को प्रेरित किया.आभार.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-73885325184048407902012-08-22T15:58:55.892+05:302012-08-22T15:58:55.892+05:30
@ रविकर जी,
जिसकी नित वंदना ही होती हो.. क्या उ...<br />@ रविकर जी, <br /><br />जिसकी नित वंदना ही होती हो.. क्या उसकी वंदना होती रहे?<br /><br />शिकायतें कहाँ की जाएँ.... मूलभूत जरूरतें तो उसे पूरी करनी ही चाहिए.<br /><br />नहीं तो वह काहे का न्यायकारी? काहे का परमपिता? काहे का करुणानिदान?प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-17151127600469857492012-08-10T21:07:16.005+05:302012-08-10T21:07:16.005+05:30वाह जी!
उर्वरा पे है हरियाली
ऊसर की गोदी खा...वाह जी! <br /><br /> उर्वरा पे है हरियाली <br /> ऊसर की गोदी खाली <br /> ये न्याय तुम्हारा कैसा!<br /> दोनों के तुम हो माली!!<br /><br />आपकी ये कविता हृदय में उतर गई। <br />आपको ढेरों शुभकामनाएं...!वीरेंद्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05613141957184614737noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-88556883688914602322012-08-10T10:29:46.261+05:302012-08-10T10:29:46.261+05:30suprabhat guruji....
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pranam...suprabhat guruji....<br /><br />.........<br />.........<br /><br /><br />pranam.<br /><br />p.s-pichle post ki prati-tippani se<br />sahmat....sach na hote hue bhi.....<br />lekin, pranam aswikar-khed sahit is<br />shabd par hamara copyright hai....सञ्जय झाhttps://www.blogger.com/profile/08104105712932320719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-31090643390804729202012-08-07T21:53:29.817+05:302012-08-07T21:53:29.817+05:30ईश्वर से मिलन का हो यदि मन में हो विचार
तो ईश्वर य...ईश्वर से मिलन का हो यदि मन में हो विचार<br />तो ईश्वर याचक के मन की सुनता है पुकार।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-26604353348405078612012-08-07T17:18:35.011+05:302012-08-07T17:18:35.011+05:30रहा देख जो ऊर्वर-ऊसर,
समद्रष्टा के दृष्टि-पार
समरस...रहा देख जो ऊर्वर-ऊसर,<br />समद्रष्टा के दृष्टि-पार<br />समरस है रसहीन,समझता<br />मगर उसे है चमत्कार !कुमार राधारमणhttps://www.blogger.com/profile/10524372309475376494noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-88929349263942745132012-08-07T15:27:13.230+05:302012-08-07T15:27:13.230+05:30suprabhat guruji,
ये भेद दृष्टि अनुचित है
ऊसर में...suprabhat guruji,<br /><br />ये भेद दृष्टि अनुचित है<br />ऊसर में भी संचित है<br />अंकुरित करन की इच्छा<br />पर रोध हुआ किञ्चित है.......<br /><br /><br />pranam.सञ्जय झाhttps://www.blogger.com/profile/08104105712932320719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-45625930901264777032012-08-06T14:19:07.338+05:302012-08-06T14:19:07.338+05:30बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
बधाई
इंडि...बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....<br />बधाई<br /><a href="http://indiadarpan.blogspot.com" rel="nofollow"><br />इंडिया दर्पण</a> पर भी पधारेँ।India Darpanhttps://www.blogger.com/profile/14088108004545448186noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-14876837039075580492012-08-05T10:17:31.135+05:302012-08-05T10:17:31.135+05:30ईश्वर में आस्था बनी रहनी चाहिए हर परिस्थिति में। द...ईश्वर में आस्था बनी रहनी चाहिए हर परिस्थिति में। दुःख में सुमिरन सब करैं , सुख में करै न कोई , जो सुख में सुमिरन करें तो काहे का होए ..??ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-53745725536050021452012-08-05T07:19:16.207+05:302012-08-05T07:19:16.207+05:30इश्वर की लीला अपरम्पार है .उसर उसर ही रह जाता है औ...इश्वर की लीला अपरम्पार है .उसर उसर ही रह जाता है और उर्वरा उर्वरा ही रहता जाता है ...<br />तभी तो आपने कहा <br /><br />कैसे भी उसे हटाओ<br />तुम जिस ही रस्ते आओ<br />मैं तुझे पा सकूँ ईश्वर!<br />कुछ चमत्कार दिखलाओ!!Ramakant Singhhttps://www.blogger.com/profile/06645825622839882435noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-28823511201159150492012-08-04T19:10:30.996+05:302012-08-04T19:10:30.996+05:30वर्षा होती एक सी, उर्वर लेती सोख |
ऊसर सर सर दे बह...वर्षा होती एक सी, उर्वर लेती सोख |<br />ऊसर सर सर दे बहा, रहती बंजर कोख |<br />रहती बंजर कोख, कर्म कुछ अच्छे कर ले |<br />बड़ा हृदय-विस्तार, गढ़न गढ़ करके भर ले |<br />कोमल-आर्द्र स्वभाव, उगेंगे अंकुर प्यारे |<br />मत चल हरदम दांव, सही कर रखो किनारे ||रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-16675770133741911842012-08-04T18:46:57.037+05:302012-08-04T18:46:57.037+05:30सदा सर्वदा वन्दना, ईश्वर को मत कोस |
महिमामंडित प्...सदा सर्वदा वन्दना, ईश्वर को मत कोस |<br />महिमामंडित प्रभु नए, इन पर कर अफ़सोस |<br />इन पर कर अफ़सोस, बना धंधा जादूगर |<br />धर्म-दंड का जोर, चमत्कारों का आदर |<br />रहे ऐश्वर्य भोग, लोक-हित नहीं सूझता |<br />ये आकर्षक ढोंग, भक्त क्यूँ नहीं बूझता ??रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.com