tag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post3572408008167653474..comments2023-11-03T19:09:37.429+05:30Comments on ॥ दर्शन-प्राशन ॥: नृत्य-सामप्रतुल वशिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-20478889486749214502010-08-03T16:36:29.374+05:302010-08-03T16:36:29.374+05:30कविता आकर्षण हीन हुई
पटुता पद-द्वय सम्मुख तेरे
रसत...कविता आकर्षण हीन हुई<br />पटुता पद-द्वय सम्मुख तेरे<br />रसता छोडी, तुम घूम-घूम कर<br />लगा रही रसवत घेरे.<br /><br />सौंदर्य छलक है वैसे पूरी कविता में, पर मुझे यह पद सबसे अधिक भाया.. पद-द्वय का यह प्रयोग..अहा!<br />और उसके बाद...<br /><br />द्विगूढ़क में नर-नारि सद्य<br />बन-बन करते हो नृत्य-साम.Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.com