tag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post1647731650574844183..comments2023-11-03T19:09:37.429+05:30Comments on ॥ दर्शन-प्राशन ॥: ये था दिव्या जी का दिव्य सूक्ष्मतम चिंतन — जिस पर बहस ज़ारी है....प्रतुल वशिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-44637992426382266562010-06-12T07:52:31.628+05:302010-06-12T07:52:31.628+05:30बहुत सुंदर और प्रभावशालीबहुत सुंदर और प्रभावशालीआदेश कुमार पंकजhttps://www.blogger.com/profile/09800781193845173200noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-12433797953065697522010-06-06T12:24:02.321+05:302010-06-06T12:24:02.321+05:30इनमोतियों को ढूढ़कर लाने और सार्वजनिक करने के लिये ...इनमोतियों को ढूढ़कर लाने और सार्वजनिक करने के लिये साधुवाद।अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-79452319613949419472010-05-30T19:03:20.482+05:302010-05-30T19:03:20.482+05:30Pratul ji,
You have translated it wonderfully. Es...Pratul ji,<br /><br />You have translated it wonderfully. Essence is not lost.<br /><br />Its more appealing in Hindi. I must admit.<br /><br />Thanks to Arvind ji, for giving me the link.<br /><br />I tried hard to understand Amrendra ji's point, but failed. I will appreciate if he can make it more simple.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-60663287986869998772010-05-29T22:08:27.989+05:302010-05-29T22:08:27.989+05:30हुजूर , यूँ ही आ गया आपकी ब्लॉग - दुनिया में , लज्...हुजूर , यूँ ही आ गया आपकी ब्लॉग - दुनिया में , लज्जा पर कुछ कहने में पुरुष होकर भी मुझे <br />लज्जा आती है ! ( कुछ कहा क्या मैंने ! ) <br />हाँ , इस खण्ड को कोट करके कुछ जरूर कहना चाह रहा हूँ ! <br />@ ..... .... किन्तु इसके विपरीत प्रेम और परवाह करने वाला [loving and caring] पुरुष <br />नारी को प्रेम की अनुभूति देता है जो नारी को स्वयं समर्पण के लिये उत्प्रेरित करता है, जिसमें <br />समाहित होता है पुरुष के प्रति पूर्ण अटूट विश्वास.<br /><br />------- प्रेम ( जिसकी परिभाषा हर व्यक्ति की निजी सी है ) समर्पण की अनिवार्य पीठिका <br />से विलग है , यह तो व्यक्तित्व का विलयन है , व्यक्तित्व निजत्व के तिरोहन में नहीं बल्कि <br />उसके रक्षण में है , तब तो और जब कोई ''बुद्धि'' का आग्रही हो ! <br />प्रेम भाव का वह क्षेत्र है जिसकी थिअरी शायद यही है कि इसकी कोई थिअरी नहीं है ! <br />किसी का शेर याद आ रहा है ---<br />'' मुझे इश्तेहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियां ,<br />जो कहा नहीं वह सुना करो जो सुना नहीं वह कहा करो | ''<br />अनकहेपन का सौन्दर्य !!! <br /><br />बड़ी डमप्लाट निर्देशावली आपने पोस्ट के अंत में दे दी है , जिसकी वजह से अभिव्यक्ति को <br />भी लज्जा आ जाती है ! फिर भी अगर कुछ निर्देश 'फालो' नहीं हो सके हों तो क्षमा कीजिएगा ..<br />लगता है आपको लज्जा बहुत प्रिय है -:) ! आभार !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-70263389779760416632010-05-29T21:03:41.925+05:302010-05-29T21:03:41.925+05:30दिव्य(i) चिंतन ! इसे फेसबुक पर भी डाल रहा हूँ !दिव्य(i) चिंतन ! इसे फेसबुक पर भी डाल रहा हूँ !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com