tag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post1634247648244584214..comments2023-11-03T19:09:37.429+05:30Comments on ॥ दर्शन-प्राशन ॥: छंद-चर्चा ... हमारे भाव-विचारों के साँचे ............. पाठ ६प्रतुल वशिष्ठhttp://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comBlogger27125tag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-47906614132412120522011-08-10T22:20:46.800+05:302011-08-10T22:20:46.800+05:30@ प्रिय सुज्ञ जी,
आपने अपने मन को यथावत बिम्बित ...@ प्रिय सुज्ञ जी, <br />आपने अपने मन को यथावत बिम्बित किया और मुझे प्रेरित किया कि साँचों को व्यावहारिक रूप में समझाऊँ... अरे प्राइवेट ट्यूशन करेंगे तो 'पाठशाला' के एकमात्र शिक्षक को स्वैच्छिक अवकाश लेकर जाना पड़ जायेगा. मतलब कि वे मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. अभी मुझे ही इस दिशा में मेहनत करनी होगी कि कैसे अपनी बात को सरल और सुबोध और सर्वग्राह्य बना पाऊँ. ... आपकी मनःस्थिति कतई दोषी नहीं... दोष 'साँचों' की रूढ़ता का है... उसके अर्थ को विस्तार देना चाहता था... इसलिये परेशानी खड़ी हो गयी.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-64041957716801017262011-08-10T22:12:04.487+05:302011-08-10T22:12:04.487+05:30@ अनुराग जी,
'सुन्दर' शब्द हमारे प्रोत्साह...@ अनुराग जी,<br />'सुन्दर' शब्द हमारे प्रोत्साहन भाव का 'गद्य साँचा'.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-41601266559538059002011-08-10T22:09:30.819+05:302011-08-10T22:09:30.819+05:30@ चन्दन जी, मेरी हार्दिक इच्छा है कि भविष्य के प्र...@ चन्दन जी, मेरी हार्दिक इच्छा है कि भविष्य के प्रधानमंत्री से विभिन्न मसलों पर उलझ जाऊँ ... किन्तु इस उलझन से एक भय रहता है कि चन्दन से सुगंध गायब न हो जाये.<br /><br />... मुझे आपका आगमन ऐसा लगा जैसे मलय गिरि से आया पवन का एक हलका झोंका.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-67486789709111182072011-08-10T21:58:45.604+05:302011-08-10T21:58:45.604+05:30@ इंजीनियर दिवस जी,
आप तो भलीभाँति जानते होंगे .....@ इंजीनियर दिवस जी, <br />आप तो भलीभाँति जानते होंगे .... जब एक भवन बनाना होता है तब छोटे-बड़े साँचों की सहायता लेनी होती है.... <br />कुछ साँचों की प्रत्यक्ष नुमाइश नहीं की जाती... यथा ईंटों का निर्माण साँचों से आकार पाकर भट्टों में मजबूती पाता है .... <br />जो साँचे दिखायी देते हैं.... वे पिलर्स और छत में ही भवन का ढाँचा खड़ा करते हैं. <br />कविता की भी यही तकनीक है... पहले हम उसके पिलर और छत तय कर लेते हैं.<br />यथा : हम अपनी बात के पहले वाक्य को एक व्यवस्था देते हैं... फिर हम उस वाक्य के अंतिम शब्द की तुक के कई अन्य शब्द ढूँढते हैं...<br />फिर हम ये देखते हैं कि हम कहना क्या चाहते हैं... अपने विचारों को उन्हीं शब्दों में कहने की चुनौती स्वीकार करके अपने भाव का भवन खड़ा करते हैं..<br />समझ गये न... इंजीनियर साहब! सभी का निर्माण एक विशेष तकनीक की अपेक्षा रखता है... एक विशेष आँख से देखें तो पाओगे कि उन सबकी तकनीक एक-सी ही है. <br />कोई अल्पज्ञानी नहीं... जिसको जिसका अभ्यास अधिक होता है उसे वह सरल लगता है. बस इतनी-सी बात है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-41825148790383515662011-08-10T21:42:14.033+05:302011-08-10T21:42:14.033+05:30@ प्रिय सञ्जय जी,
मेरी कोशिश है कि अपने आस-पास की ...@ प्रिय सञ्जय जी,<br />मेरी कोशिश है कि अपने आस-पास की ही बात करूँ और जगती के समस्त कार्यों में छंद के दर्शन करा दूँ. <br />जब हम एक भाव को व्यक्त करने में कुछ ठहराव लेते हैं... तो वह एक साँचा हो जाता है यदि हम उसी क्रम में बात को उतनी ही दूरी पर ठहराव देते हुए बात आगे बढाते हैं.... तब वह एक सम्पूर्ण साँचे के रूप में ख्यात हो जाता है. किसी भी रचना (कविता) की संरचना पर ध्यान दो तो पाओगे कि कोमल भावों के साँचे एक निश्चित शेप (आकार) लिये होंगे और जटिल भावों के साँचे प्रायः गद्यमय होते हैं... किन्तु सप्रयास जटिल भावों का प्रवाह किसी प्रचलित साँचे में ढला भी दिखायी दे सकता है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-81785080851646764832011-08-10T21:31:08.281+05:302011-08-10T21:31:08.281+05:30@ झंझट जी, छंद के साँचों की बात करते-करते मैं जगत ...@ झंझट जी, छंद के साँचों की बात करते-करते मैं जगत के प्रत्येक कार्य-व्यापार में साँचों को देखने लगा.<br />अब लगता है 'साँचों' का अर्थ जो मानस में स्थिर है उसे प्रकट करना 'कविता की कार्यशाला' की नवीनतम खोज होगा.<br /><br />जब हम अपनी अभिव्यक्ति को कुछ शब्दों में निर्धारित कर देते हैं अथवा बाँध देते हैं तब वह कुछ समय बाद एक साँचे का रूप ले लेती है.<br />— वैसे तो 'गद्य' साँचे से मुक्त हुआ करता है किन्तु कभी-कभी गद्य भी अपने साँचे बना लेता है यथा हम किसी की प्रशंसा में या दुत्कारने में अथवा किसी अन्य भाव में कुछ निर्धारित वाक्य बोलते देखे जाते हैं. किसी के शौर्य कर्म को देखकर हम अपने विस्मय भाव को प्रायः 'वाह!', 'सुन्दर!', 'अद्भुत' शब्दों में बांधते हैं.<br />किसी को सृजन को प्रोत्साहन देने में हम 'उम्दा', 'अति सुन्दर', 'मनमोहक', 'बढ़िया' आदि शब्द अपनी आदतानुसार बोलते हैं. <br />............ सचमुच बड़ी झंझट है... इन साँचों की परिभाषा को व्याख्यायित करने में.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-73306321749166658792011-08-10T21:29:13.361+05:302011-08-10T21:29:13.361+05:30@ विद्या जी,
भूखे को 'भोजन' प्रायः रोजमर...@ विद्या जी, <br />भूखे को 'भोजन' प्रायः रोजमर्रा के साँचों में याद आता है मतलब भरी प्यालियों से सजी थाली उसकी स्मृति में रहती है.<br />ज्ञान के पिपासु को (जिज्ञासु) को 'प्रायः 'पुस्तकों' के रूप में ज्ञान के साँचे दिखायी देते हैं.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-26900641772016927662011-08-10T17:06:53.923+05:302011-08-10T17:06:53.923+05:30@ दिव्या जी,
नमस्ते,
आपके किये तत्काल संकल्प क...@ दिव्या जी, <br /><br />नमस्ते, <br /><br />आपके किये तत्काल संकल्प को विलंबित बधाई देता हूँ. मुझे विश्वास है कि मैं अपनी बातों को सरल रास्ते पर चला पाउँगा जिसमें आपकी स्मृति की सहायता भी अवश्य लूँगा.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-91029187769752840522011-08-10T17:06:16.811+05:302011-08-10T17:06:16.811+05:30@ आदरणीया संगीता जी,
आपने हमेशा मुझे प्रोत्साहित ...@ आदरणीया संगीता जी, <br />आपने हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया है और मुझे बार-बार मंच देकर वरिष्ठ और मंजे हुए ब्लोग्गर्स के श्रेणी में लाने का उत्साह दिया है. आपके प्रोत्साहन में नवोदितों को मार्जन का भाव निहित है. कभी-न-कभी हम आपकी अपेक्षाओं के साँचे में फिट होकर आपको सही साबित करेंगे.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-35676197961851658772011-08-10T17:05:54.441+05:302011-08-10T17:05:54.441+05:30@ डॉ. मोनिका जी,
आपके दो-तीन शब्दों में ही आपकी प...@ डॉ. मोनिका जी, <br />आपके दो-तीन शब्दों में ही आपकी प्रशंसा के भाव समाहित हैं... यह एक आपके भाव का 'गद्य-साँचा' है.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-10541554475019935292011-08-10T17:05:35.007+05:302011-08-10T17:05:35.007+05:30@ प्रिय सुमन जी,
आप हमेशा से मुझे प्रिय रहे ... ब...@ प्रिय सुमन जी, <br />आप हमेशा से मुझे प्रिय रहे ... बहुतों को घर का खाना खाने में मेहनत करनी पड़ती है इसलिये वे होटल या ढाबे पर जाकर बैठ जाते हैं... वहाँ खाना बना-बनाया और बर्तन भी नहीं मांजने पड़ते... मुझे भी यह कभी-कभी भाता है... ढाबे वालों के साँचों (बर्तनों) में भोजन करना सभी को पसंद है... यदि हम अपने घर में ढाबे से खाना लेकर आयें तो क्रेडिट ढाबे वाले को ही दें.. नहीं तो कइयों का हाजमा बिगड़ जाता है. पहले ही बता देने से कमज़ोर हाजमे वाले ज़रा सावधानी बरतेंगे.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-87166380999133020422011-08-10T17:05:04.002+05:302011-08-10T17:05:04.002+05:30@ रविकर जी,
हम मूक हुए तो आपने भी 'एक शब्द...@ रविकर जी, <br />हम मूक हुए तो आपने भी 'एक शब्द' से मित्र-धर्म निभाना शुरू कर दिया. रविकर को तो हमेशा मैंने सामान्य बातों को भी अपने स्व-निर्मित साँचों में ढालते पाया है और आज की खामोशी... मुझे शर्मिन्दा करने को है शायद.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-12045198460223659322011-08-10T16:35:13.529+05:302011-08-10T16:35:13.529+05:30गुरूवर साँचे समझ नही आ रहे।
कठिनता है या मनस्थिति ...गुरूवर साँचे समझ नही आ रहे।<br />कठिनता है या मनस्थिति का दोष!! पता नही।<br />प्राईवेट ट्युशन लेंगे?सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-89320639823928115522011-08-09T09:11:15.468+05:302011-08-09T09:11:15.468+05:30सुंदर!सुंदर!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-7231519599686131832011-08-07T22:41:10.064+05:302011-08-07T22:41:10.064+05:30उदाहरण प्रवाहमय लगे।उदाहरण प्रवाहमय लगे।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-9102808899840246792011-08-07T22:38:29.032+05:302011-08-07T22:38:29.032+05:30अच्छा कर रहे हैं। छंदों की शिक्षा देकर लोगों को।अच्छा कर रहे हैं। छंदों की शिक्षा देकर लोगों को।चंदन कुमार मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/17165389929626807075noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-3163886396281101602011-08-04T01:13:49.359+05:302011-08-04T01:13:49.359+05:30आदरणीय प्रतुल भाई मैं भी दिव्या जी की टिपण्णी को प...आदरणीय प्रतुल भाई मैं भी दिव्या जी की टिपण्णी को पेस्ट करना चाहूँगा...<br />दरअसल मैं तकनीकी का छात्र रह चूका हूँ...साहित्य व दर्शन में अल्पज्ञानी हूँ...भारी भरकम भाषा मुझे आसानी से समझ नहीं आती...आप इसे अन्यथा न लें...<br />किन्तु आपकी रचनाएं बेहद सुन्दर लगती हैं, इन्हें पढने में बड़ा आनंद आता है...<br />जितना भी समझ आता है वह बेहतरीन लगता है...<br />धन्यवाद...दिवसhttps://www.blogger.com/profile/07981168953019617780noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-56213448993863480972011-08-03T16:57:07.614+05:302011-08-03T16:57:07.614+05:30suprabhat guruji,
komal se komaletar ki or..........suprabhat guruji,<br /><br />komal se komaletar ki or.......achha<br />laga......<br /><br /><br />pranam.सञ्जय झाhttps://www.blogger.com/profile/08104105712932320719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-12340357117729893652011-08-03T15:15:09.375+05:302011-08-03T15:15:09.375+05:30कविता की कार्यशाला ......बहुत अच्छी और ज्ञानवर्धककविता की कार्यशाला ......बहुत अच्छी और ज्ञानवर्धकसुरेन्द्र सिंह " झंझट "https://www.blogger.com/profile/04294556208251978105noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-87242183882714903562011-08-03T13:39:14.928+05:302011-08-03T13:39:14.928+05:30शानदार ||शानदार ||vidhyahttps://www.blogger.com/profile/04419215415611575274noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-41516275972433853322011-08-03T12:40:28.390+05:302011-08-03T12:40:28.390+05:30'komaletar' matlab .... komal + itar .... ...'komaletar' matlab .... komal + itar .... komal ke alaawaa.... jaise 'vyangya', 'visangatiyon par aakrosh', 'aakshep-pryaakshep'<br />kavi 'dinkar' kavi 'nirala', kavi 'harioudh' ne bahu bhaavii jatil vichaaron ko 'maatrik' aur 'varnik' chhandon me vykt kiyaa hai. unkii kavitaayen iske achchhe udaaharan hain.<br />__________________<br />naagari lipi kaam nahin kar rahii.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-67060728341753988212011-08-03T11:24:53.487+05:302011-08-03T11:24:53.487+05:30आज 03- 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है...आज 03- 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....<br /><br /><br /><a href="http://tetalaa.nukkadh.com/2011/08/blog-post_03.html" rel="nofollow"> ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर </a><br />____________________________________संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-76130775734777942382011-08-03T10:33:12.091+05:302011-08-03T10:33:12.091+05:30.
गुरुदेव,
प्रणाम
यह पहला पाठ है जिसमें मुझे क....<br /><br />गुरुदेव, <br />प्रणाम <br /><br />यह पहला पाठ है जिसमें मुझे कुछ समझ आया है आसानी है ! बधाई आपको दूँ या फिर स्वयं को ? शीघ्र ही कोमलेतर भावों को छंद रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास करके प्रस्तुत करुँगी ! <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-62001357919577671662011-08-03T10:26:21.842+05:302011-08-03T10:26:21.842+05:30भावों के सांचें .. अच्छी प्रस्तुति समझने का प्रयास...भावों के सांचें .. अच्छी प्रस्तुति समझने का प्रयास जारी हैसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7213487349598555645.post-66934655998951014972011-08-03T08:59:42.248+05:302011-08-03T08:59:42.248+05:30बहुत ही सुंदर ....बहुत ही सुंदर .... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.com